Friday, December 16, 2022

क्या सब कुछ ईश्वर की इच्छा से होता है ?

अक़्सर ये बात सुनने में आती है कि : 
"ईश्वर की इच्छा के बिना कुछ नहीं हो सकता - 
कि ईश्वर की मर्ज़ी से ही सब कुछ होता है और उसकी मर्जी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता।

यह एक गलत अवधारणा है - वास्तविक उद्धरण है ......
"परमात्मा के बिना कुछ नहीं हो सकता"
"ईश्वर के बिना कुछ नहीं हो सकता"

एक अन्य लोकप्रिय मुहावरा:
"परमात्मा की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता"

लेकिन वास्तविकता ये है कि :
"ईश्वर के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता।"

पता नहीं इन मुहावरों में "इच्छा" शब्द कब और कैसे जुड़ गया।

कोई पूछ सकता है - "लेकिन दोनों में अंतर् ही क्या है?" 

"बहुत बड़ा अंतर है।"

और इसीलिए भ्रम पैदा होता है। कई प्रकार के प्रश्न पैदा होते हैं। 

"ईश्वर की इच्छा" कहने से न केवल हम यह कहते और समझते हैं कि ईश्वर की भी अपनी इच्छाएं और प्राथमिकताएं हैं - बल्कि वह भी इच्छाओं और प्राथमिक्ताओं के आधीन है - उनमे बंधा हुआ है।

इसका अर्थ हुआ कि ईश्वर निष्पक्ष और न्यायी नहीं है -
वह कुछ खास लोगों से प्रेम करता है - उनका पक्ष लेता है। 
और कुछ लोगों से नफरत करता है उन का विरोध करता है - 
अपनी मर्ज़ी से किसी को ऊँचा उठा देता है और किसी को नीचे गिरा देता है - 
किसी को बना देता है और किसी को बर्बाद कर देता है। 

दूसरी बात -- 
यदि परमात्मा की इच्छा या अल्लाह की मर्ज़ी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता - तो दुनिया में पाप और बुराई क्यों मौजूद है?
इसका अर्थ तो यह हुआ कि सभी बुरे काम - लड़ाइयाँ, झगड़े - हत्याएं, क़त्लेआम और घृणा आदि सब ईश्वर की इच्छा या अल्लाह की मर्ज़ी से ही हो रहे हैं।
लोग ये सब कुछ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि क्योंकि वह ऐसा चाहता है। 

लेकिन दूसरी तरफ -- जब हम ये कहते हैं कि  "ईश्वर के बिना कुछ भी नहीं हो सकता" तो इसका अर्थ कुछ और है- जो कि सही भी है और पूरी तरह से वैज्ञानिक भी है।

हमारे घरों में हर गैजेट और उपकरण बिजली से चलते हैं।
हम उपकरणों को काम करते हुए देखते हैं लेकिन उनके पीछे काम कर रही ऊर्जा को नहीं देखते।
उदाहरण के लिए, हम केवल एक प्रकाश बल्ब को चमकते हुए देखते हैं, उसमें बहने वाली बिजली को नहीं - क्योंकि प्रकाश बल्ब साकार है, और बिजली निराकार है।
हमें बिजली दिखाई नहीं देती - फिर भी हम जानते हैं कि बिजली के बिना बल्ब नहीं चमक सकता।

क्या हम कभी ये कहते हैं - या कह सकते हैं कि 'बिजली की इच्छा' के बिना बल्ब नहीं चमक सकता?

हम बिजली को चमकते, गर्म या ठंडा होते या बहते हुए भी नहीं देखते - लेकिन कोई भी घरेलू उपकरण इसके बिना काम नहीं कर सकता।

और बिना किसी संदेह के, हम सब जानते हैं कि यह बिजली है जो उपकरणों को चलाती है या काम करवाती है - बिजली की इच्छा नहीं ।
बिजली केवल ऊर्जा प्रदान करती है।
शाइनिंग, हीटिंग या कूलिंग - चमक, गर्मी, और ठंडक गैजेट के - उपकरण के  डिजाइन और प्रोग्रामिंग पर निर्भर करता है, बिजली की इच्छा पर नहीं।

इसी तरह, भगवान, ईष्वर या परमात्मा तो  निरंकार और निर्गुण है - निराकार और गुण-रहित है - जो जगत एवं प्रकृति का मूल स्रोत है।

ईश्वर की ऊर्जा के बिना कुछ भी नहीं हो सकता - न चल सकता है न काम कर सकता है ।
लेकिन प्रेम या घृणा, दया या क्रूरता, उदारता या स्वार्थ, मदद करना और बचाना या यातना देना और मारना - ये सब कुछ तो हम पर - व्यक्तियों पर निर्भर करता है। 
 तथाकथित 'ईश्वर की इच्छा' पर नहीं।

हम सब ईश्वर की शक्ति से चल रहे हैं।  
इस शक्ति को हम किस ढंग से इस्तेमाल करते हैं - ये हम पर निर्भर करता है। 
ईश्वर की दी हुई शक्ति को सही ढंग से और सही समय पर सबके भले के लिए इस्तेमाल करने में ही सबकी भलाई है। 
                                      ' राजन सचदेव '

15 comments:

  1. Thank you ji 👍🙏

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  2. 🙏🏻👌🏻👍🏻Thank you🙏🌹
    Bahut kirpa ji🙏🏻

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  3. इस विषय पर सदियों से चर्चा हो रही है जब की यह बात प्रमाणिकता के साथ वणि॔त है, जीवन-मृत्यु, लाभ-हानी,यश-अपयश, यह परमात्मा के हाथ है, सबकुछ तो इसमे समाहित है.🙏🙏🙏माफी सहित.

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    1. आपके विचारों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। लेकिन असहमति के लिए क्षमा प्रार्थना के साथ -
      पहली बात तो ये है कि इस आर्टिकल में प्रश्न जन्म मृत्यु या यश अपयश विधि हाथ" का नहीं बल्कि ईश्वर की इच्छा का है। मालूम नहीं कि आप किन प्रमाणिक ग्रंथों का हवाला दे रहे हैं - अगर आप उन प्रमाणिक शास्त्रों का रिफरेन्स भी दे दें तो बहुत कृपा होगी। वैसे ये वाक्य किसी श्रुति उपनिषद अथवा भगवद गीता में तो नहीं है। मेरी समझ में यह लोकोक्ति के आधार पर तुलसीदास जी की रचना है।
      दूसरा - अगर इसे प्रमाणिक मान भी लिया जाए तो विधि कर्म से बनती है ईश्वर की इच्छा से नहीं। अगर आप ये कह रहे हैं कि परमात्मा की इच्छा के बिना कुछ भी नहीं हो सकता तो सोचने की बात यह है कि अगर यह प्रमाणिक है कि सब कुछ परमात्मा के हाथ में ही है - हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है तो फिर शुभ कर्म सत्संग भक्ति इत्यादि करने का - बल्कि कुछ भी करने का कोई प्रयोजन नहीं है। परमात्मा अपनी इच्छा और preference के अनुसार जिसे देना चाहेगा घर बैठे ही बिना कोई काम अथवा बिज़नेस किये दे देगा और जिसे गिराना चाहे गिरा देगा। अगर सब लड़ाई झगड़े कत्लेआम वही करवा रहा है तो हमें कुछ भी सोचने और करने की ज़रूरत ही नहीं।
      अगर ये बात शास्त्रों में प्रमाणिक होती तो भगवद गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को अपने अधिकार के लिए अन्याय के विरुद्ध युद्ध करने के लिए प्रेरणा क्यों देते?
      क्योंकि मेरी तुच्छ बुद्धि के अनुसार तो भगवद गीता कर्म पर ज़ोर देती है और कहती है " नादत्ते कस्य चित्पापं न चैव सुकृतं विभुः " (अध्याय 5 - श्लोक 15 )
      कृपया इन बातों पर भी गहराई से विचार करिये। धन्यवाद

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  4. Great thoughts 👍😊🙏🏻

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  5. I had this discussion here with few mahapurashes, different occasions. No body wanted to realize this. Now I have one big vote from you, at least somebody said some positive thing 🙏

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  6. Wonderful ji , uncle ji where you get these amazing thoughts from. ( I would say amazing is a very minute word to be used the way you describe it).

    What you’re giving to society of humanity is amazing

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  7. Dnj Bhai sahib ji… you are the best teacher.. Thank you

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  8. Kind request for any references and/or supporting information on this ji...would love to read more about it 🙏

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    1. Are you asking for the references where it says " Nothing happens without the will of God"?
      In my knowledge (which is limited of course) no authentic Hindu or Sanatan holy scripture says that everything happens according to the will of God. This concept is influenced by and borrowed from Western Semitic religions. The phrases like "परमात्मा की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता" are folklores - certain people's beliefs and concepts - not from the ancient Indian scriptures. The points in this article are my personal views based upon the Sanatan holy scriptures which say that Brahm - the Supreme Lord - creator and source of energy and everything in nature is Formless - Nirakar and Nirgun - Without form and attributes - without any desires or favoritism.
      You can do some research on Sanatan thoughts on the qualities and attributes of Brahm or Ishvar. What God is and what he does.... etc. Thanks.

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    2. My interest was more towards the supporting data behind your clarification on the "God's Will" part of the mentioned statement.

      I've never quite understood how nor agreed with the concept that everything is God's "Will" for the same reasons you mentioned in your piece amongst other reasons.

      I've used this statement many many times, especially in difficult circumstances. And it is a fact that given our limited knowledge, capacity and understanding of how, what, when, where and why things happen in life, it's much easier and convenient to attribute this to God's Will.

      As an example, if we closely examine the current state of people and environment (during and post-pandemic) with millions of lives lost and health and psychological effects on human beings, it's much easier to let go and move forward by accepting that it's "God's Will". That doesn't mean the statement is accurate in the context being discussed however.

      I also have only seen or heard the "Will" concept in the translations of western scriptures and maybe Islamic (I think, but could be wrong).

      Anyway, I was hoping you had a reference or two (website, book, etc) which would be a bit more convenient for me to find. But thanks for mentioning where more information can be found, possibly the Sanatam Holy Scriptures.

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    3. 1. You can start with Bhagavad Geeta -- it's comparatively simpler than the Upanishads and contains both Advaita and Samkhya philosophies.
      2. You are right that it's easier to accept the things that are unexplainable or beyond our control by believing it's the will of God. At times, we all do that to console ourselves - instead of searching deep into the situation and circumstances.
      Dil kay behlaanay ko Ghalib ye khyaal achha hai (दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है)

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    4. Ek brahamin ne kaha hai ke ye saal achha hai.....

      Hum ko malum hai jannat ki hakikat lekin.....

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