अक़्सर जब हम किसी की परवाह अथवा देखभाल करते हैं - उन्हें संरक्षण देते हैं तो हम उनके जीवन को नियंत्रित भी करना चाहते हैं।
किसी भी परवाह अथवा स्नेह के साथ ही उन पर नियंत्रण रखने का एक सूक्ष्म भाव भी पैदा हो जाता है।
हर प्रकार के प्रेम के साथ कुछ न कुछ अधिकार की भावना भी जुडी रहती है ।
जैसे माता पिता अपने बच्चों की देखभाल करते हैं - उन्हें भरपूर प्रेम देते हैं किंतु साथ ही वह उनके जीवन को नियंत्रित भी करना चाहते हैं।
इसी तरह बड़े भाई बहन, शिक्षक,अधिकारी,नेता इत्यादि भी अपने छोटे भाई बहन, शिष्यों ,अनुयायियो, कनिष्ठ कर्मचारियों को अपने नियन्तण में रखना चाहते हैं।
वे ऐसा इसलिए करते है क्यूंकि वो उन्हने संरक्षण देते हैं - उनकी परवाह और देखभाल करते हैं। इसलिए उन्हें अपने कण्ट्रोल में भी रखना चाहते हैं।
लेकिन कभी कभी यह नियंत्रण ज़रुरत से ज्यादा भी होने लगता है।
परंतु हर चीज की एक सीमा होती है।
यह जानना भी ज़रुरी है कि किसे, कब, और कहां तक नियंत्रित रखा जा सकता है -
और किस बात को - किस व्यवहार और किन गतिविधियों को नियंत्रित करना चाहिए और किस को नहीं।
किसी की परवाह और चिंता करना, उन्हें संरक्षण देना - या फिर किसी के सम्पूर्ण जीवन को ही अपने नियंत्रण में कर लेना - इन दोनों बातों में बहुत अंतर है।
जहां परवाह' प्रेम की एक अभिव्यक्ति है, - वहीं दूसरी ओर नियंत्रण अभिमान को दर्शाता है।
परवाह से रिश्ते मजबूत होते हैं - और अधिक नियंत्रण से बिखर जाते हैं।
स्नेह और परवाह दो दिलों को करीब लाती है - लेकिन नियंत्रण से दूरियां और बढ़ जाती हैं।
देखभाल और परवाह से हर जख्म भर जाते हैं - नियंत्रण केवल पीड़ा देने का काम करता है।
ज़रुरत से ज्यादा नियंत्रण नकारात्मकता को जन्म देती है - इससे अपने भी दूर हो जाते हैं।
इसलिए बच्चे हों या बड़े - सब की देखभाल और परवाह तो ज़रुर करें पर ज़रुरत से ज्यादा नियंत्रित रखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए - क्योंकि कोई भी इंसान नियंत्रण में रहना पसंद नहीं करता। हर इंसान को स्वतंत्रता और आज़ादी प्रिय है।
क्योंकि स्वतंत्रता मनुष्य का स्वभाव है - आज़ादी इंसान की फितरत है।
और मानव जीवन का मूल लक्ष्य भी यही है - मुक्ति - स्वतंत्रता - मोक्ष।
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