युवावस्था में - जवानी में हम बहुत से दोस्त और एक बड़ा सा सामाजिक दायरा चाहते हैं।
सोशल मीडिया पर हमें जितने अधिक फॉलोअर्स और लाइक मिलते हैं, हम उतना ही रोमांचित और ख़ुशी महसूस करते हैं।
लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं - हमारे लिए अधिक मित्रों और परिचितों की बजाए असली और सच्चे दोस्तों का होना अधिक महत्वपूर्ण होता जाता है।
जैसे-जैसे हम अधिक अनुभवी होते जाते हैं - मात्रा से अधिक गुणवत्ता - गिनती की बजाए गुण - Quantity की जगह Quality ज़्यादा महत्वपूर्ण और अर्थपूर्ण हो जाती है।
जीवन के हर पड़ाव में कई दोस्त आते हैं और चले जाते हैं - कुछ दोस्त बनते हैं और कुछ छोड़ जाते हैं
- और फिर हम नए दोस्तों की तलाश शुरु कर देते हैं।
लेकिन असली दोस्त तो वही होते हैं जो हमेशा आपके साथ रहते हैं।
जो सुख-दुःख में - ख़ुशी और ग़मी में - अच्छे और बुरे समय में - दुःख और मुसीबत में कभी आपका साथ नहीं छोड़ते।
जो मुश्किल पड़ने पर हमेशा काम आते हैं।
अगर ऐसे दोस्त मिल जाएं तो उनकी क़दर करें - उन्हें छोड़ें नहीं - उनका हाथ थामे रहें।
उन्हें कभी दूर न होने दें।
याद रखें - महत्ता और सार्थकता गुणों की होती है - गिनती की नहीं।
achhe dost. right & real.🙏🙏
ReplyDelete'A friend in need is a friend indeed" Apt proverb supporting your contention.
ReplyDeleteRight
Deletejindagi mein Achhe dost hone chaiyen lekin achhe dost milte kahan hein
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