"मैं पल दो पल का शायर हूँ पल दो पल मेरी कहानी है "
पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मेरी जवानी है "
साहिर साहिब ने तो ये नज़म ना जाने किस ख़्याल से लिखी होगी।
लेकिन हर पढ़ने और सुनने वाला हर चीज़ को अपनी समझ
और अपने interest के मुताबिक़ सुनता और समझता है।
मैं समझता हूँ कि साहिर साहिब ने इस नज़म में जाने या अनजाने में
रुहानियतअथवा आध्यात्मिकता के चारों पहलूओं को यानि चारों steps को छूआ है।
रुहानियत का पहला कदम है जीवन की क्षणभंगुरता का अहसास हो जाना -
यानि इस सच्चाई को समझ लेना कि ये संसार और यह जीवन स्थाई नहीं है।
"मै पल दो पल का शायर हूँ पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मेरी जवानी है "
दूसरा कदम है अहम भाव (ego) का त्याग।
ये अहसास हो जाना कि मेरे जैसा सिर्फ मैं ही नहीं हूँ
कई और भी थे, कई और भी होंगे। बल्कि मुझसे बेहतर थे और होंगे भी ।
"मुझसे पहले कितने शायर आए और आ कर चले गए
कुछ आहें भर कर लौट गए ,कुछ नग़मे गा कर चले गए "
" कल और आएंगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले "
तीसरा कदम है वैराग्य ; एक किस्म का depression ....
कि यह संसार असार है। सब अस्थाई और बेकार है।
जब मैं जाऊंगा तो सब यहीं रह जाएगा
और मेरे ना रहने से कोई भी काम रुकने वाला नहीं।
फिर मेरे होने या न होने से क्या फ़र्क़ पड़ता है।
"कल कोई मुझको याद करे , क्यों कोई मुझको याद करे
मसरुफ़ ज़माना मेरे लिए क्यों वक़्त अपना बर्बाद करे "
चौथी स्टेज (stage) में विरह यानि longing पैदा होती है।
संसार की असारिकता समझ में आ जाने के बाद 'सत्य ' को जानने की तीव्र इच्छा
पैदा होती है।
शायद यही स्टेज सबसे मुश्क़िल है। अक़सर बहुत से लोग पहले ही कहीं रुक
जाते हैं।
लेकिन इन चारों stages को पार करके जब सत्य का सही ज्ञान हो जाए तो दॄष्टि बदल जाती है।
संसार अनेक से एक दिखने लगता है।
ब्रह्माण्ड का एक एक कण एक दूसरे से connected, जुड़ा हुआ महसूस होता है
जब सब कुछ एक दूसरे से मिला हुआ है तो मैं भी किसी से अलग नहीं हूँ
तब विशालता के इस भाव से विभोरित कवि अनायास ही कह उठता है :
"मै हर इक पल का शायर हूँ, हर इक पल मेरी कहानी है
हर इक पल मेरी हस्ती है, हर इक पल मेरी जवानी है
इक फूल में तेरा रुप बसा, इक फूल में मेरी जवानी है
इक चेहरा तेरी निशानी है, इक चेहरा मेरी निशानी है"
तब वो सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि सारे संसार के लिए मांगने लगता है
"तू अपनी अदाएं बख्श इन्हें, मैं अपनी वफ़ाएं देता हूँ
जो अपने लिए सोचीं थी कभी, वो सारी दुआएं देता हूँ"
इस स्टेज पर पहुँच कर हर भक्त, हर संत , हर महाँपुरुष, चाहे वो किसी
भी धर्म से संबंध रखता हो, उस की भावना और कामना यही हो जाती है कि;
भी धर्म से संबंध रखता हो, उस की भावना और कामना यही हो जाती है कि;
"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् " (ऋग्वेद )
"नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाने सरबत का भला" (गुरबाणी )
"तेरा रुप है यह संसार , सब का भला करो करतार " (अवतार वाणी )
“Rajan Sachdeva”
Note ;
आपकी सुविधा के लिए पूरी नज़्म या कविता यहाँ दोबारा लिख रहा हूँ ।
"मै पल दो पल का शायर हूँ पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है, पल दो पल मेरी जवानी है "
मुझसे पहले कितने शायर आए और आ कर चले गए
कुछ आहेँ भर कर लौट गए कुछ नग़मे गा कर चले गए
वो भी इक पल का किस्सा थे मैं भी इक पल का किस्सा हूँ
कल तुम से जुदा हो जाऊँगा गो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ
पल दो पल मैं कुछ कह पाया इतनी ही सआदत काफी है
पल दो पल तुमने मुझको सुना इतनी ही इनायत काफी है
कल और आएँगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले तुम से बेहतर सुनने वाले
हर नसल इक फसल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महंगी मदिरा है जो क़तरा क़तरा बटती है
सागर से उभरी लहर हूँ मै सागर में फिर खो जाऊँगा
मिट्टी की रुह का पसीना हूँ फिर मिट्टी में सो जाऊँगा
कल कोई मुझको याद करे क्यों कोई मुझको याद करे
मसरुफ़ ज़माना मेरे लिए क्यों वक़्त अपना बरबाद करे"
Part 2
रिश्तों का रुप बदलता है, बुनियादें खत्म नहीं होतीं
ख़्वाबों और उमँगों की मियादें खत्म नहीं होतीं
इक फूल में तेरा रुप बसा, इक फूल में मेरी जवानी है
इक चेहरा तेरी निशानी है, इक चेहरा मेरी निशानी है
तुझको मुझको जीवन अमृत अब इन हाथों से पीना है
इनकी धड़कन में बसना है, इनकी साँसों में जीना है
तू अपनी अदाएं बख़श इन्हें, मैं अपनी वफ़ाएं देता हूँ
जो अपने लिए सोचीं थी कभी, वो सारी दुआएं देता हूँ
मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
हर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है
(अब्दुल हयी "साहिर लुध्यानवी")
Wow ! How easily uncle ji you elaborate every situation in simple words!
ReplyDeleteAlso bless to understand every situation in right way
Thanks uncle ji!
Bahut hee sunder ji🙏
ReplyDelete𝓫𝓮𝓪𝓾𝓽𝓲𝓯𝓾𝓵
ReplyDeleteBeautiful explanation of transition from I am nothing and no one to realization that I am everything and everyone. pure spirituality. Thank you Ji 🙏🙏
ReplyDeleteMarvelous explanation.
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteWhat a wonderful elaboration ji. Thanks for your kind blessings ji 🙏🙏
ReplyDelete🙏
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