Monday, October 9, 2023

कल अगर दुनिया में आदमी ही न रहा

यूं ही गर चलता रहा ये नफ़रतों का दौर
एक दिन इस आग में सब ही जल जाएंगे 

मज़हबो-मिल्ल्त की दीवारें न गर हटीं 
हर तरफ फिर लाशों के ही ढेर पाएंगे 

कल अगर दुनिया में आदमी ही न रहा 
सुख के ये सामान फिर किस काम आएंगे?

बात ये अब भी अगर न समझे हम 'राजन
धरती को प्रलय से फिर बचा न पाएंगे 
                    " राजन सचदेव "

मज़हबो-मिल्ल्त   =   धर्म मज़हब साम्प्रदायिकता की दीवारें  

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