Tuesday, October 10, 2023

झूठी उम्मीदें

आशा हमदर्दी की थी इक भ्रष्टाचारी से 
न्याय मांग रहा था झूठों के प्रभारी से 

मुश्किल है रिश्वत या चापलूसी के बग़ैर  
काम करवा लेना कोई इक अधिकारी से 

मौक़ा मिलते ही  उठा लेते हैं फ़ायदा 
मज़लूम-ओ-बेबस ग़रीबों की लाचारी से 

और भला क्या निकलेगा ये सोचिए ज़रा 
सांप ही निकलेंगे सांपों की पिटारी से 

कैसे होतीं पूर्ण 'राजन' मन की आशाएँ 
हीरा मांग रहा था कोयले के व्यापारी से 
                          " राजन सचदेव " 

प्रभारी                   =    In charge अफ़सर 
मज़लूम-ओ-बेबस   =  सताए हुए - लाचार 

12 comments:

  1. Diamonds, come from Coal Mines i was told. But this trader must have kept for himself. Jokes aside..the poem flows well.

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    1. Thank you Vishnu ji --
      and you are right - I did say Coal merchants - not coal mines....😊😊🙏

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    2. विष्णु जी के टिपणी पर मेरा भी यही ,हीरा खदानों से न की कोयला व्यपारी से

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  2. Very well said 🙏🙏🙏🙏🌹

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  3. Wah ji 👍🎊🙏

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  4. 🙏Excellent ji. Bahut hee sunder Rachana. 🙏

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  5. उत्कृष्टता

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  6. उत्कृष्ट रचना

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