Tuesday, May 30, 2023

Do you know why it’s hard to be happy?

Do you know why it is hard for us to be happy 
and stay happy all the time?

Because we refuse to let go of the things that give us pain - 
We can not leave the things that cause us unhappiness. 
We keep revisiting the past and do not want to forget the memories that make us sad.
Therefore, we do not - and can not enjoy the present and what we have right now. 

हमेशा खुश क्यों नहीं रह सकते?

जानते हो हम हमेशा खुश क्यों नहीं रह सकते?

क्योंकि जो चीज़ें हमारे दुःख का कारण हैं - 
जो बातें हमें दुःख देती हैं - उन्हें हम छोड़ नहीं पाते। 
जो यादें हमें उदास कर देती हैं - हम उन्हें भूल नहीं पाते।
और इसी लिए - जो है - उसका आनंद नहीं ले पाते। 

Monday, May 29, 2023

A joke with the Light - Raushni kay saath Mazaaq

Sab nay milaaye haath yahaan teergee kay saath 
Kitnaa badaa mazaaq huaa Raushni kay saath 
                                 " Waseem Barelavi"

(Everyone has joined hands here with darkness
What a joke it is with the light)
                                           
Sometimes even after there is light, we keep running toward the darkness 
We still keep shaking hands with the darkness. 
How unfortunate it is that in spite of having the Gyana - the light of knowledge - we often wander in the darkness of delusion – remain stuck in blind faith and immersed in it.

Even after knowing the imperishable, we still remain attached to perishable things -
Remain entangled in Maya even after attaining Almighty God.
Wouldn't it be just a joke with Gyana - with the light of knowledge?

रौशनी के साथ मज़ाक़

             सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ
             कितना बड़ा मज़ाक़ हुआ रौशनी के साथ 
                                          वसीम बरेलवी

कभी कभी रौशनी होने के बाद भी हम अंधेरों की तरफ भागते रहते हैं - अंधेरों से ही हाथ मिलाते रहते हैं। 
कितने दुर्भाग्य की बात है कि ज्ञान के प्रकाश के बावजूद भी हम अक़सर भ्रम के अंधेरों में भटक जाते हैं
अंध विश्वास में फंस जाते हैं और उसी में डूबे रहते हैं।  

अविनाशी के ज्ञान के बाद भी हम नाशवान वस्तुओं में आसक्त रहें  - नाशवान के साथ ही जुड़े रहें - 
ईश्वर को पा कर भी माया में ही उलझे रहें - 
तो ये ज्ञान की रौशनी के साथ मज़ाक़ ही होगा। 

तीरगी    =  अँधेरा 

Sunday, May 28, 2023

Riots in the city

Riots broke out in the city.
Snatching and looting went on for a while.
All shops were set on fire.
The whole market got burnt.
Only one shop was left unburned - 
And it had this display board - 
             "Building construction materials are sold here."

शहर में दंगे - Shehar mein dangay

शहर में दंगे हुए। 
बहुत देर तक छीना-झपटी - लूट-मार चलती रही। 
दुकानों को आग लगा दी गई। 
सारा बाज़ार जल गया...
सिर्फ़ एक ही दुकान  बची - 
जिस के माथे पर ये बोर्ड लगा था... 
            “यहां इमारतें बनाने का सामान मिलता है।” 

Shehar mein dangay huye 
Bahut der tak chheena-jhapti - loot -maar hoti rahi

Dukaano ko aag lagaa dee gayi. 
Saara bazar jal gayaa... 
Sirf ek dukaan hee bachi - 
 jis ke maathay par ye bord laga tha... 
                 “Yahaan imaarten banaanay ka saamaan miltaa hai.”

Saturday, May 27, 2023

A dog in the well

Once upon a time, a Mahatma - a sage was passing through a village. 

He saw some people fetching water from a well and throwing it on the ground.

Mahatma asked - what are you doing?

They replied that a dog had fallen in this well - the water had become dirty. 

We will take one hundred and one buckets of water out of the well and throw it out - so that the remaining water becomes clean. 

Mahatma asked: where is the dog?

They said the dog was still inside the well.

Mahatma said that if the dog is still inside the well - if you remove one hundred or even one thousand buckets of water, its water will never become clean. 

First, get the dog out, he said. 

As long as the dog is inside the well, it can not become clean. 


Similarly, if a dog is sitting inside the well of our mind, then our mind can never become pure - no matter what we do.

              What is this dog inside the mind? Who is it?

In the holy scriptures - greed' is known as a Suan or Swan: meaning the dog.

            "Baahar gyaan dhyaan ishnaan            

             Antar byaapay lobh suaan"

                               (Sukhmani Sahib)

Meaning: Outside, we talk about Gyana and meditation - going to take holy baths on pilgrimages - but the kingdom of the dog of greed is widespread inside the mind. 

   "Hiras da kutta dil wich baithaa bhaunkay tay halkaan karay"

The dog of greed is sitting in the heart - barking - asking for more and more.

                                          (Avatar Bani)

As long as this dog of greed is inside the well of our minds, the mind cannot become pure.

If we want to purify the mind - the dog of greed must be taken out first.

If you look discreetly - and unbiasedly, then who does not have this dog of greed inside them?

Leave aside the ordinary people - even today's so-called saints are not free from this. They also seem to run after more wealth - money, resources, assets, and properties. They also want to build big houses - get expensive cars, and have more and more luxury for themselves.


The truth is that simplicity and a sense of contentment in the life of the Gyanis and Bhaktas should appear automatically.

As devotion and Sumiran increase - contentment, gratification, and patience also increase. 

But this does not mean we should give up good food, clothes, and a better or higher lifestyle.

However, the desire for excessive and more than necessary takes the form of greed - which may become an obstacle in the path of real happiness and everlasting peace. 

Adi Shankaracharya says:

     "Yallabhsay Nij Karmopatan - Vittam Teina Vinodaya Chittam"

Meaning: The Gyanis and Bhaktas always remain content and happy with the wealth they earn with honesty and the appropriate means. They do not accumulate money by fraud or cheating others - by unfair and unethical means. 

 Guru Nanak also gave a similar sermon: 

             'Ghaal kar kicch hathon day

              Nanak Rahu pachhaanay say'

Those who earn to make a living and also give to charity - says Nanak - understand the way (to God and righteousness). 


Therefore, to purify the well of the mind - it is essential to drive the dog of greed out of it. 

                                                   ' Rajan Sachdeva '

कुँए में गिरा कुत्ता

एक साधू महात्मा एक गांव में से गुजरे तो देखा कि कुछ लोग एक कुँए से पानी के डोल भर भर के बाहर ज़मीन पर फैंक रहे थे।  
महात्मा ने पूछा - क्या कर रहे हो?
उन्होंने जवाब दिया कि इस कुँए में एक कुत्ता गिर गया था जिस से इसका पानी गंदा हो गया है। 
अब हम एक सौ एक डोल पानी के भर के बाहर फैंक देंगें ताकि कुँए का बाकी पानी साफ हो जाए।  
महात्मा ने पूछा कुत्ता कहाँ है ? 
उन्होंने कहा कुत्ता तो कुँए के अंदर ही है। 
महात्मा ने कहा कि अगर कुत्ता कुँए के अंदर ही है तो चाहे आप एक सौ या एक हज़ार डोल भर के पानी निकाल दो तो भी कुऍं का पानी साफ नहीं हो सकेगा।
पहले कुत्ते को बाहर निकालो। 
जब तक कुत्ता अंदर है तो कुआँ साफ़ नहीं हो सकता।

इसी तरह यदि हमारे मन रुपी कुँए में भी कोई कुत्ता बैठा हुआ है तो हमारा मन साफ़ नहीं हो सकता - चाहे हम कुछ भी करते रहें।  

                                 कौन है ये मन रुपी कुँए में बैठा कुत्ता?
शास्त्रों में लोभ को सुआन (स्वान) अर्थात कुत्ता कहा है:
                   "बाहर ज्ञान ध्यान इसनान - अंतर ब्यापै लोभ सुआन " 
                                                                       (सुखमनी साहिब)
अर्थात बाहर से हम ज्ञान,ध्यान की बातें करते हैं - तीर्थों में इशनान करने जाते हैं लेकिन अंदर तो लोभ रुपी सुआन का साम्राज्य व्यापक है। 
                    "हिरस दा कुत्ता दिल विच बैठा भौंके ते हलकान करे"
                                                                            (अवतार बानी )
जब तक हमारे मन के कुँए में लोभ रुपी कुत्ता बैठा हुआ है - हमारा मन साफ़ नहीं हो सकता। 
इसलिए मन रुपी कुँए को साफ़ करने के लिए सबसे पहले लोभ रुपी कुत्ते को बहार निकालना पड़ेगा। 

अगर ध्यान से और निष्पक्ष रुप से देखा जाए तो कौन है जिस के अंदर ये लोभ का कुत्ता नहीं है?
साधारण लोगों की बात तो छोड़ें - आज के तथाकथित संत महात्मा भी इस से मुक्त दिखाई नहीं देते - वह भी धन के पीछे ही भागते नज़र आते हैं। 
ऐसा लगता है कि वे सब भी बड़े बड़े घर, महंगी कारें और ज़्यादा से ज़्यादा ऐशो आराम का समान इकट्ठा करने में ही लगे हुए हैं। 
सत्य तो यह है कि संतों और महात्माओं के जीवन में सादगी और संतोष का भाव सहज ही - स्वयंमेव  ही पैदा होने लगता है।
जैसे जैसे भक्ति का भाव एवं सुमिरन बढ़ता है, मन में संतोष और धैर्य भी बढ़ता चला जाता है। 
लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अच्छा खाने, पहनने,और अच्छे रहन सहन का त्याग कर दें - पर ज़रुरत से, और हद से ज़्यादा की इच्छा लोभ का रुप ले लेती है - जो कि शांति एवं परम आनन्द के मार्ग में बाधा बन जाती है। 
अदि शंकराचार्य कहते हैं :
             "यल्ल्भसे निज कर्मोपातं - वित्तम तेन विनोदय चित्तं "
अर्थात ईमानदारी - नेकनीयती एवं निष्कपटता से कमाए हुए अपने धन से ही महात्मा लोग संतुष्ट और प्रसन्न रहते हैं। 
अधिक प्राप्त करने के लोभ से किसी अनुचित कार्य द्वारा - फ़रेब  से या किसी को धोखा दे कर धन इकट्ठा नहीं करते।  
गुरु नानक ने भी ऐसा ही उपदेश दिया था :
                  'घाल खाये किछ हत्थो देह। 
                     नानक राह पछाने से "
मन रुपी  कुँए को साफ़ करने के लिए लोभ अथवा हिरस रुपी कुत्ते को बाहर निकालना आवश्यक है। 
                                             ' राजन सचदेव '

Friday, May 26, 2023

नास्ति विद्या समं चक्षु

नास्ति विद्या समं चक्षु नास्ति सत्य समं तपः ।
नास्ति राग समं दुःखम् नास्ति त्याग समं सुखम् ॥

                    ~~~~~~~~~~~~

विद्या अर्थात ज्ञान के समान कोई चक्षु नहीं 
और सत्य के बराबर कोई तप नहीं 
राग अर्थात आसक्ति के बराबर कोई दुःख नहीं 
और त्याग के बराबर कोई सुख नहीं है 
                    ~~~~~~~~

त्याग का अर्थ जीवन की सुख-सुविधाओं को त्याग देना नहीं 
बल्कि हर परिस्थिति को खुशी से स्वीकार कर लेना है 


There is no vision like knowledge - Naasti Vidya samam chakshu

Naasti Vidya samam chakshu - Naasti Satya samam Tapah
Naasti Raag samam dukham - Naasti Tyaag samam Sukham


English Translation:

There is no vision like that of knowledge and wisdom.
There is no better austerity than to embrace and harbor the Truth.
There is no sorrow like that caused by love and attachment 
And there is no happiness greater than renunciation.
                               ~~~~~~~~~~~
Renunciation does not mean abandoning the comforts of life - 
it simply means accepting everything happily.
                                              ' Rajan Sachdeva '

Thursday, May 25, 2023

Wasl ka Aasaar - Chances of Union

Wasl ka Aasaar Nazar aata hai 
Saamnay Dildaar nazar aata hai 

Lagtaa hai mil jayengi ab manzilen 
Raastaa Hamvaar nazar aata hai 

Roop Rang Aakaar say man uth gaya 
Jab say Niraakaar nazar aata hai

Azmaton aur shohraton ka shor-gul 
Ab ye sab bekaar nazar aata hai 

Ho agar Beenaayi Aankhon mein to Rab 
Har shai mein Saakaar nazar aata hai 

Dhoondhtaa hai dil sahaara jab koyi 
Ik 'Ye hee' har baar nazar aata hai 

Maut ka phir dar nahin 'Rajan' usay
Jis ko Praan-Aadhaar nazar aata hai 
                " Rajan Sachdeva "

Wasl           =  Meeting, Union
Aasaar       =  Chance, Opportunity
Hamvaar  =  Plain, Smooth, without pots or obstacles
Azmat       =  Respect, Honor, Reverence, etc.
Shohrat    =  Fame, Popularity
Shor-Gul   = Noise
Bekaar        = Pointless, Useless
Beenaayi    = Vision, Ability to see
Rab            =  Arabic word for God
Ye hee        =  This (Pointing towards Almighty God)
Praan-Aadhaar = The source and sustainer of life

                      English Translation

The chances of the union seem to be promising now
I see the beloved standing right in front of me.

It seems that the destination will be achieved now
The path ahead looks plain and smooth to me.

My mind has gone beyond the realms of form and color
Ever since it came in contact with the Formless Nirankar

The noise about name and fame - respect and honor - publicity & popularity - all seems pointless now.

If the eyes have the ability to see - 
God can be seen in everyone and everything.

Whenever my heart looks for some help and support
This' (Nirankar- God) is what I see every time in front of me - always there to take care of me.

The one who constantly sees the source and sustainer of life - does not fear death anymore. 
                                ' Rajan Sachdeva '

वस्ल का आसार नज़र आता है

वस्ल का आसार नज़र आता है 
सामने दिलदार नज़र आता है 

लगता है मिल जाएंगी अब मंज़िलें 
रास्ता हमवार नज़र आता है 

रुप रंग आकार से मन उठ गया 
जब से निराकार नज़र आता है 

अज़मतों और शोहरतों का शोर गुल 
अब ये सब बेकार नज़र आता है 

हो अगर बीनाई आँखों में तो रब         
हर शै में साकार नज़र आता है 

ढूढंता है दिल सहारा जब कोई 
इक यही हर बार नज़र आता है  

मौत का फिर डर नहीं 'राजन ' उसे  
जिस को प्राण-आधार नज़र आता है 
                        'राजन सचदेव '

वस्ल      =  मिलन, मिलाप 
हमवार   =  समतल, 
अज़मत   = इज़्ज़त ,आदर,मान-सत्कार 
बीनाई =   नेत्र ज्योति, देखने की दृष्टि, आँख की रौशनी, नज़र   vision, sight
यही        =  निरंकार ईश्वर की ओर संकेत अथवा इशारा 

Tuesday, May 23, 2023

What is in your hand?

There lived an old and wise man in a village - who was highly respected by everyone.
People thought he knew everything - that he had some spiritual powers and had all the answers. 
So they used to come to him to get help to solve their problems.
However, a few young boys did not like him very much. 
They were jealous of him.
They were always looking for ways to prove him wrong.

One day they came up with a brilliant, crafty plan. 
The plan was to take a tiny bird covered in their hand and ask the wise man if that bird was alive or dead?
If the man said it was alive, the boy would press his hands hard and kill the bird. 
But if he said it was dead, he would open his fist and let the bird fly. 
Either way, they could prove that the wise man was wrong.

So, they caught a small, tiny bird - went to the wise man, and asked if the bird in their hand was dead or alive?
The wise man smiled and said,
My dear boys - It's all in your hands.

     Remember..... many things are in your hands.
                                ' Rajan Sachdeva '

तेरी मुट्ठी में क्या है ?

एक गाँव में, एक वयोवृद्ध बुद्धिमान महात्मा रहते थे। 
सभी उन  का सम्मान करते थे।
लोगों का मानना था कि उनके पास कुछ आध्यात्मिक शक्तियां हैं और वह सब कुछ जानते हैं - उनके पास सभी प्रश्नों के उत्तर हैं। 
इसलिए बहुत से लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उनके पास आते रहते थे।
लेकिन गाँव में कुछ युवा लड़के ऐसे भी थे जो उन्हें पसंद नहीं करते थे।
वह उनसे ईर्ष्या करते थे और उन्हें गलत साबित करने के तरीके सोचते रहते थे।

एक दिन उनके दिमाग में एक योजना आई।
योजना यह थी कि एक छोटे से पक्षी को अपनी मुट्ठी में लिया जाए और उस बुज़ुर्ग महात्मा से पूछा जाए कि क्या पक्षी जीवित था या मरा हुआ ?
अगर महात्मा ने कहा कि यह जीवित है, तो लड़का अपने हाथ को जोर से दबा कर पक्षी को मार देगा।
यदि उन्होंने कहा कि पक्षी मरा हुआ है, तो वह अपना हाथ खोल देगा और पक्षी को उड़ा देगा।
दोनों तरह से ही वह महात्मा हार जाएगा। 
और इस तरह वे साबित कर सकते हैं कि महात्मा गलत है और वह कुछ भी नहीं जानता।

ऐसा सोच कर उन्होंने एक बहुत ही छोटे से पक्षी को पकड़ा और महात्मा के पास गए और कहा कि इस लड़के की मुट्ठी में एक पक्षी है। 
आप बताइये वह ज़िंदा है या मरा हुआ?
महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा -
                   "बेटा - यह तुम्हारे हाथ में है "

याद रहे ..... बहुत कुछ ऐसा है जो आपके हाथ में है।
                              ' राजन सचदेव '

Monday, May 22, 2023

Miracle

After the riots, Police started raids to recover looted goods.
Out of fear - to avoid an arrest, people started throwing the looted goods outside in the dark of night.
One man was facing difficulty.
He had two big, heavy bags of sugar, which he had looted from the grocer's shop.
Somehow, he managed to toss one of them into the nearby well in the dark of night.
But while trying to dump the other one - he also fell into the well.

Hearing the noise and cries for help, people gathered around the well.
They dropped the ropes in the well - Two men went down and brought the man out.
But he died after an hour.

The next day when people fetched water from that well for use, it was sweet.
That night - lighted lamps were placed on the man's grave. 
It was a miracle. 
The man was glorified - that he had sacrificed his life in order to provide sweet water to the people of his village. 
              (Original story in Urdu By: Saadat Hasan Manto)

करामात

लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरु कर दिए।
लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे- ताकि क़ानूनी गिरिफ़्त से बचे रहें।
एक आदमी को बहुत दिक़्क़त पेश आई। 
उसके पास शक्कर की दो बोरियां थीं जो उसने पंसारी की दुकान से लूटी थीं।
एक तो वो जैसे तैसे रात के अंधेरे में पास वाले कुएं में फेंक आया 
लेकिन जब दूसरी उठा कर डालने लगा तो ख़ुद भी कुएं में गिर गया।
शोर सुन कर लोग इकट्ठे हो गए। 
कुवें में रस्सियां डाली गईं। 
दो जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया...
लेकिन चंद घंटों के बाद वो मर गया।

दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तिमाल के लिए उस कुँवें में से पानी निकाला - तो वो मीठा था।
उसी रात उस आदमी की क़ब्र पर दिये जल रहे थे।
(घर घर में इस करामात का चर्चा था - 
कि गाँव के लोगों को मीठा पानी मुहैय्या करवाने के लिए उस शख्स ने अपने प्राणों की आहुति - अपनी शहादत, अपनी क़ुरबानी दे दी) 
                                            (मूल कहानी उर्दू में - लेखक - सआदत हसन मंटो)

Thursday, May 18, 2023

A Man and the Zoo

A man opened a zoo with an entrance fee of 100 dollars - but no one came.
The next day - he reduced it to 50 dollars - but still, no one came.
He then reduced it to 10 dollars.
But still, people didn't come.
Finally, he made it FREE.
And soon, the zoo was filled with people. 

Then he quietly locked the gate - set the lions free 
and announced the exit fee of 100 dollars.
Everyone paid!

As you go about in life, beware of cheap or free offers. They can be terrible traps.
Nothing is free my friends!
Anyone offering something free must have a hidden agenda.
There must be an ulterior motive -  
Otherwise, no one gives any free stuff. 

चिड़ियाघर

एक आदमी ने एक चिड़ियाघर खोला - 
प्रवेश शुल्क रखा - 100 डॉलर 
लेकिन कोई नहीं आया।
अगले दिन उसने घटाकर 50 डॉलर कर दिया - 
लेकिन फिर भी लोग नहीं आए।
फिर उस ने 10 डॉलर कर दिया।
लेकिन फिर भी कोई नहीं आया।
फिर अगले दिन उसने Free Entrance  (प्रवेश - मुफ़्त) का बोर्ड लगा दिया 
और देखते ही देखते चिड़ियाघर लोगों से भर गया।

फिर उसने चुपचाप गेट बंद कर दिया - 
शेरों को आज़ाद कर दिया  -  
और बाहर निकलने के लिए 100 डॉलर के निकास शुल्क की घोषणा कर दी।
सभी ने तुरंत सौ सौ डॉलर दे दिए!

जीवन में हमेशा मुफ्त ऑफ़र से सावधान रहें।
वे ख़तरनाक़ जाल भी हो सकते हैं।
संसार में कुछ भी मुफ़्त नहीं मिलता। 
अगर कोई मुफ्त में कुछ दे रहा है तो उसके पीछे ज़रुर कोई परसनल एजेंडा होगा - 
अवश्य ही कोई छिपा हुआ उद्देश्य होगा। 
अन्यथा कोई भी मुफ्त में सामान नहीं बांटता। 

Tuesday, May 16, 2023

Two short stories

                                             1
Finally, it stopped snowing after two days, and the sun was out.
Snow-covered trees and bushes looked so pretty through the window. 
The whole backyard was covered with beautiful shiny white sheets of fresh snow.
Five-year-old Bobby wanted to go out and play in the backyard.
"Mommy, Can I go in the backyard to play?' He asked his mother.
No - Mom said.
Why?
It’s too cold.
"Please, Mommy….. I will wear my jacket and hat and gloves. I will bundle up".
I said No.
But why?
Because I said so.
But why?
"I am your mother - don’t argue with me.

She continued doing her work.
Little Bobby was not happy at all. He was all grouchy and grumpy.
He kept sobbing and complaining.
Mom could not concentrate on what she was doing.
So she called Bobby:
OK. I will let you go out on one condition.
What is that?
You have to wear your jacket and hat and gloves………

Now…………….
Isn't that what Bobby had said in the first place? 
That he will wear his jacket, hat, and gloves and bundle up.

~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~

                                               2
Rita: "Mom, can we have pizza for dinner tonight?"
Mom: "No"
"Why?
"Outside food is not healthy and good for you every day.
But - it has been three weeks since we had pizza.
You have to eat what I cook and put it on the table. 
Don't argue with me.
                Next day……..
“Rita! Beta, I don’t feel like cooking today. 
  Let's order pizza for dinner”
“But last night you said outside food is not good for us.”
“I know, but it’s been three weeks since we had pizza.”
“Isn’t that what I said last night?”
“Don’t argue with me. I am your mother.”
~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~

So………. 
Is it really about the cold weather?
Or about the outside food not being good? 
Or is it about 'the control'?
In fact, most of the time - it is about 'control'.
Parents over children - and later, children over parents.
Wives over husbands & Husbands over wives 
Teachers over students and Leaders over followers 
Employers over employees - Bosses over sub-ordinates 
and Rulers over their Subjects. 
Everyone wants to control others - whoever they possibly can.
The whole world is about Control.
Ironically, no one wants to be controlled.

The other day, I said - 
I think the story of life is actually about control - My control. 
Therefore - I also want to control.

Whom do you want to control? They asked.
I said: Not Whom... What?

I want to have control over my feelings and emotions - 
Over my thoughts and beliefs - my speech and actions.
Control of what I say, control of what I do.
So ultimately, I can be free.  
                                   " Rajan Sachdeva "

दो लघु कथाएं

                                              1
आख़िर दो दिन की बर्फ़बारी के बाद बर्फ गिरना बंद हो गया और धूप निकल आई।
खिड़की में से - बर्फ से ढके पेड़ और झाड़ियाँ बहुत सुंदर दिखाई दे रहे थे।
पूरा पिछवाड़ा ताजा बर्फ की सुंदर और चमकती हुई सफेद चादर से ढका हुआ था।
पांच वर्षीय बॉबी बाहर जाकर पिछवाड़े में बर्फ से खेलना चाहता था।
"मम्मी , मैं पिछवाड़े में खेलने जाऊं? "
नहीं - माँ ने कहा।
क्यों?
बाहर बहुत ठंड है।
"मम्मी  .... मैं अपनी जैकेट - हैट और दस्ताने पहन के जाऊंगा"।
"मैंने कहा न - बाहर नहीं जाना। 
पर क्यों?
क्योंकि मैंनें कहा है।
पर क्यों?
"मुझसे बहस मत करो - मैं तुम्हारी माँ हूँ।

वह अपना काम करती रही।
नन्हा बॉबी खुश नहीं था। वह गुस्से में हाथ पाँव पटकता रहा - 
सिसकियां लेता रहा - रोता और शिकायत करता रहा।
इस सब के चलते माँ अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रही थी।
तो उसने बॉबी से कहा :
अच्छा ठीक है। तुम एक शर्त पर बाहर जा सकते हो। 
क्या?
"अपनी जैकेट टोपी और दस्ताने पहनो।"
~~~~~~~~~~~~~~ 
ज़रा सोचिए - कि 
बॉबी ने तो पहले ही कहा था - कि वह अपनी जैकेट, टोपी और दस्ताने पहन कर जाएगा।
~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~
                                      
                                            2
रीटा: - "मम्मी - आज रात के खाने के लिए पिज़्ज़ा मंगवा लें?"
माँ: "नहीं।
"क्यों?
"रोज़ बाहर का खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता।
"पर हम रोज़ थोड़े ही खाते हैं? हमें पिज्जा खाए तीन हफ्ते हो गए हैं।"
"मुझसे बहस मत करो।
वही खाओ जो मैं बनाती हूँ और मेज पर रख देती हूँ। "

                 अगले दिन……..
"रीटा - बेटा, आज खाना बनाने का मन नहीं कर रहा है।
   चलो आज खाने के लिए पिज़्ज़ा ऑर्डर कर लेते हैं ”
"लेकिन कल रात आपने कहा था कि बाहर का खाना हमारे लिए अच्छा नहीं है।"
"मुझे पता है - लेकिन हमें पिज्जा खाए तीन हफ्ते हो चुके हैं।"
"यही तो कल मैंने कहा था"
"मुझसे बहस मत करो। मैं तुम्हारी माँ हूं।"
~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~

ज़रा सोचें ………
क्या पहली कहानी में असल कारण केवल सर्दी ही था?  
और दूसरी में असली कारण केवल यही था कि बाहर का खाना अच्छा नहीं होता?
या फिर असल बात कण्ट्रोल यानी नियंत्रण की है?
वास्तव में, अधिकांश समय - हर बात के पीछे कण्ट्रोल की भावना ही होती है। 
सारे संसार में ऐसा ही देखने को मिलता है।
माता-पिता बच्चों के ऊपर कंट्रोल रखना कहते हैं - और बाद में, बच्चे माता-पिता के ऊपर।
पति पत्नि पर और पत्नी पति पर - शिक्षक छात्रों पर - 
और नेता अनुयायियों पर - 
अधिकारी अपने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर और मालिक अपने सेवादारों पर - 
अर्थात हर व्यक्ति दूसरों पर अपना नियंत्रण रखना चाहता है - जहाँ भी और जितना भी सम्भव हो सके  - अपना कण्ट्रोल रखना चाहता है। 

और विडंबना यह है कि स्वयं कोई भी किसी के आधीन - और नियंत्रित होना नहीं चाहता।

एक दिन मैंने कहा-
मुझे लगता है कि जीवन की कहानी दरअसल नियंत्रण के बारे में ही है - मेरा कंट्रोल - मेरा नियंत्रण।
इसलिए - मैं भी कण्ट्रोल करना चाहता हूँ।
किसी ने पूछा - "आप किसे कण्ट्रोल करना चाहते हो ? "
मैंने कहा: "किसे नहीं... ये पूछो कि  "क्या "?

मैं कंट्रोल करना चाहता हूँ अपनी इच्छाओं और भावनाओं पर  -
अपने विचारों और उदगारों पर - 
अपनी आस्था - अपनी मान्यताओं एवं सिद्धांतों पर - 
अपनी वाणी - अपने शब्दों और कर्मों पर।
जो मैं कहता हूं - और जो मैं जो करता हूं उस पर मेरा नियंत्रण हो - 
वही अंततः मुक्ति अथवा मोक्ष है। 
                                    " राजन सचदेव "

Sunday, May 14, 2023

Mother's Day - Blissful Memories

My mother once asked me -
Do you know why the army officers and soldiers get up early every morning, get ready in complete uniform, and do extensive exercises, and parades? Why do they regularly check and clean their weapons?"

I said, "Is it because they don't have anything else to do since there is no war"?
She smiled and said, 'No
"Then I don't know. Please tell me, Mother."

She said “Even if there is no war they know that the enemy can strike anytime so they want to stay prepared all the time. You know many great armies in the past, lost simply because they were not ready - They were suddenly attacked while they were drinking and dancing, enjoying parties, or sleeping. They lost because they had let down their guard. A Good general knows this and keeps his soldiers alert and ready all the time so they are not caught unaware or unprepared.

Similarly," she said "a Bhakta should also be always ready and prepared because the enemies such as Kaama, Krodha, and Lobha can strike at any time. Just as enemy spies can secretly enter an army camp and destroy it from the inside, similarly the ego, attachment, and jealousy can also silently penetrate an unaware and careless mind and destroy the Bhakti and Shradha (Devotion) from within.
Therefore, a Bhakta must always stay alert and keep his 'weapons' sharp.
His weapons are Satsang and Sumiran.

Even a mighty great army may lose the battle if it does not keep its weapons sharp and up to date.
Similarly, if a Bhakta does not keep his 'weapons'; "Satsang and Sumiran', strong and up to date, he might also lose the battle of conquering the 'Samsaara'."

This was a great lesson; one of the greatest gifts, my mother gave me just a few months before she left this physical world.
Today, on 'Mother's Day', I wish and pray that I may remember this great lesson she taught, till the end of my physical journey; to win the battle of 'Samsaara' and be free from bondage.
                                           ‘Rajan Sachdeva”

मातृ दिवस - Mother's Day

प्राचीन भारतीय शास्त्रों के अनुसार माता को व्यक्ति की प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण गुरु कहा गया है।
हमारे संस्कारों और शिष्टाचार का श्रेय माता को ही जाता है।
हमारे तौर-तरीके, शिष्टाचार और बर्ताव - हम अन्य लोगों के साथ कैसे व्यवहार करते हैं, यह सब बचपन से मिले हुए संस्कारों पर निर्भर करता है। 
हमारा उठना बैठना - बोलचाल, और व्यवहार हमारे जीवन के शुरुआती चरणों में मिले हुए संस्कारों का प्रतिबिंब होता है।
हर महान संत और गुरु की महानता के पीछे - महान वीरों और योद्धाओं की उपलब्धियों के पीछे - उनकी माताओं का हाथ दिखाई देता है।
अक़्सर उनकी सफलता के पीछे होती है उनकी माताओं की महत्वपूर्ण भूमिका - उनकी बचपन में दी हुई शिक्षा एवं सिखलाई।

इन्सान अपने  प्रारंभिक जीवन में जो कुछ सीखता है वह हमेशा उसके दिल और दिमाग में अंकित रहता है और उसके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
जीवन भर उसका प्रभाव बना रहता है।
इसलिए, शास्त्र हमें बच्चों के मन में बचपन से ही उचित संस्कार डालने की प्रेरणा देते हैं ।
जैसा कि गुरु कबीर जी कहते हैं:
                     जननी जने तां भगत जन - कै दाता कै सूर
अर्थात माता को ऐसी संतान को जन्म देना चाहिए - या दूसरे शब्दों में, संतान को ऐसा बनाना चाहिए - ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वह आगे चल कर भक्त - यानी एक सरल, विनम्र और आध्यात्मिक बने -
दाता - दयालु, उदार और दानी बने  
और सूर - अर्थात अटल अडिग और दृढ  - जो अपने सिद्धांतों का दृढ़ता से पालन कर सके और हमेशा सत्य पर क़ायम रह सके।  
                                          " राजन सचदेव "

Happy Mother's Day

According to ancient Indian scriptures, the mother is said to be a person's first and most important Guru - first and foremost teacher. 

The credit for our Sanskaaras -  our values and manners goes to the mother.
Our mannerisms, etiquettes - how we act and behave - all depend on the samskaras we get from childhood. They are reflections of what we have learned in the early stages of life. 
Behind the achievements of every great Saint and Guru - behind the triumph of great heroes and warriors - we see the hand of their mothers. 
We often find a vital role and teachings of their mothers behind their success. 
Whatever a person learns in early life always remains imprinted in his heart and mind and plays a crucial role throughout the rest of their life. 
Its influence remains throughout life.
Therefore, the scriptures emphasize teaching and inducting the proper Sanskaaras in children's minds. 
As Guru Kabeer ji says:
              Janani Janay taan Bhagat jan - kai daata kai Soor 
That a mother should give birth to - in other words, teach the child to become a Bhagat - that is, a simple, humble, and polite spiritual person -
A Data - a giver - kind, generous, and charitable
and Soor - strong and brave - unshakable and firm who can firmly adhere to the principles and always stick to the truth and righteousness.
                                         " Rajan Sachdeva "

Saturday, May 13, 2023

Baba Hardev Singh ji - Few Quotes & Pics

  • Some people can make everyone happy by entering a room
and some people can make others happy by leaving the room.
Choose in what category you want to be. (02.10.09)

  •  एक बूँद भी न ले सका मगरूर सर बुलंद
  • जितना भी हो सके -- सर झुका के पी
Ek boond bhi na le saka magroor sar buland,
jitna bhi ho sake -- sar jhuka ke pee.

A proud person does not get to drink even a single drop, but a humble always quenches his thirst.

  •  ज़ख्म तो एक बच्चा भी दे सकता है लेकिन ज़ख्म को सीने और मरहम पट्टी करने का काम हर कोई नहीं कर सकता - हम ने ये कठिन कार्य करना है
Zakhm to ek baccha bhi de sakta hai,
Lekin zakham ko silne aur marham-patti karne ka kaam har koi nahi kar sakta.
Humne yeh kathin karya karna hai 
                                     – Gurudev Hardev- II

Even a small child can give wounds. But not all can heal those wounds. We need to work on this difficult task.
                                    - Baba Hardev SinghJi Maharaj

















































Friday, May 12, 2023

Those who Thunder do not Rain - Neecho Vadati Na Kurutay

        "Sharadi Na Varshati Garjati - Varshati Varshasu Ni'svano Meghah
        Neecho Vadati Na Kurutay - Na Vadati Sujanah Karotyeva"
                                                                   (Subhashitam)

                         Meaning
In autumn, the clouds only thunder but do not rain.
In the rainy season, they rain but do not thunder.
Wicked people only talk and do nothing.
Good - sincere people don't announce or talk much - they do the work.
                              ~~~~~~
Ordinary or wicked people only talk and make a lot of noise like the autumn and winter clouds, but they do not take any action to fulfill their promises.
On the other hand, good and wise people don't just talk - 
They keep on doing their work silently.
Their focus is not on promotion but on action.
They care only about action, and its outcome.
                     ~~~~~~~~~~~~~~

The above analogy is based on general observation of the behavior of clouds during autumn and the rainy season.
In autumn, clouds thunder - make a lot of noise without providing much rain. 
On the other hand, during the rainy season, they fulfill their purpose of providing rain but do not make much noise. 

The author, with this analogy, suggests that there are two types of people in this world - those who only talk and do nothing - 
and those who do the work but don't boast about it.

Some individuals may talk a lot about what they intend to do but do not actually take any action toward achieving their goals. These people may make big resolutions to themselves and great promises to others - but fail to follow through with any meaningful action.

On the other hand, Good and sincere people do not boast or talk much about their good deeds. They know the importance of actions over words.
They understand that it is not enough to simply talk about doing good - that success is not achieved through words alone but through consistent effort and hard work.
Therefore, they work quietly and diligently to achieve their goals and help others as well - without boasting or seeking much praise or recognition for their efforts.
                                  ' Rajan Sachdeva '

नीचो वदति न कुरुते - जो गरजते हैं वो बरसते नहीं

        शरदि न वर्षति गर्जति - वर्षति वर्षासु नि:स्वनो मेघ: 
        नीचो वदति न कुरुते - न वदति सुजन: करोत्येव 
                                                   (सुभाषितम)

शब्दार्थ: 
शरद ऋतु में बादल गरजते हैं - बरसते नहीं  
वर्षा ऋतु में - बरसात के मौसम में बरसते हैं - गरजते नहीं । 
निम्न प्रकार के साधारण लोग बातें करते हैं - करते कुछ नहीं।
सुजन - सज्जन पुरुष बोलते नहीं - काम करते हैं।
               ~~~~~~~~~~~~~~~~~~

साधारण लोग केवल पतझड़ और सर्दियों के बादलों की तरह बातें तो बहुत करते हैं - बहुत शोर करते हैं - 
लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए कोई कर्म नहीं करते।
दूसरी ओर - सज्जन पुरुष केवल बातें नहीं करते - बल्कि चुपचाप अपना काम करते रहते हैं।
ख़ामोशी से कर्म करते रहते हैं।  
उनका ध्यान प्रदर्शन में नहीं बल्कि कर्म में होता है 
उन्हें विज्ञापन से नहीं -  कर्म से मतलब होता है 
                      ~~~~~~~~~~~~~~
   भावार्थ: 
उपरोक्त सादृश्य अथवा उपमा शरद ऋतु और वर्षा ऋतु के दौरान बादलों के व्यवहार के सामान्य अवलोकन पर आधारित है।
शरद ऋतु में, बादल गरजते हैं - बहुत शोर करते हैं - लेकिन बहुत कम बरसते हैं।
दूसरी ओर वर्षा ऋतु में ये अपना काम तो करते हैं अर्थात खूब बारिश बरसाते हैं - लेकिन अधिक शोर नहीं करते।
बादल और बारिश की उपमा देकर कवि ये कहना चाहता है कि संसार में दो तरह के लोग होते हैं -
एक वे जो केवल बातें करते हैं और करते कुछ नहीं -
और दूसरे वो जो काम तो करते हैं - लेकिन बहुत बातें नहीं करते - 
अपनी योजनाओं और उपलब्धियों का शोर नहीं करते।

कुछ लोग स्वयं अपने आप से और अन्य लोगों से बड़े बड़े वायदे तो कर लेते हैं 
अपनी और दूसरों की तरक्की के लिए नई नई योजनाएं बना कर बड़ी बड़ी बातें तो करते हैं 
लेकिन अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में कोई ठोस काम करने का प्रयास नहीं करते और किसी भी सार्थक कार्य को पूरा करने में सफल नहीं होते।

दूसरी ओर अच्छे और समझदार लोग कभी अपने कर्मों की शेखी नहीं बघारते - अधिक बात नहीं करते। 
वे जानते हैं कि सफलता केवल शब्दों से नहीं बल्कि निरंतर प्रयास और कड़ी मेहनत से प्राप्त होती है।
वे जानते हैं कि केवल लक्ष्य के बारे में बात करना और योजना बनाना ही काफी नहीं है - 
वे शब्दों से अधिक काम करने के महत्व को पहचानते हैं।
इसलिए वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए चुपचाप और लगन से काम करते रहते हैं और जहाँ तक सम्भव हो - दूसरों की मदद भी करते हैं। 
                        ' राजन सचदेव '

Jo Bhajay Hari ko Sada जो भजे हरि को सदा सोई परम पद पाएगा

जो भजे हरि को सदा सोई परम पद पाएगा  Jo Bhajay Hari ko Sada Soyi Param Pad Payega