कुछ लोग हमेशा हर बात पर दूसरों की आलोचना करते रहते हैं।
इस का कारण यह है कि उन्हें लगता है कि वे दूसरों से अधिक जानते हैं।
उन्हें लगता है कि वे उनसे बेहतर हैं।
और इसका मुख्य कारण है मन में छुपा हुआ सूक्ष्म अहंकार।
लेकिन दिलचस्प बात ये है कि हर व्यक्ति अक़्सर किसी न किसी रुप में - जाने या अनजाने में किसी न किसी की आलोचना अथवा निंदा ज़रुर करता है।
शिक्षक- छात्र, पति-पत्नी, माता-पिता और बच्चे - अधिकारी और कर्मचारी - लीडर और अनुयायी - राजनेता और जनसाधारण - हर कोई किसी न किसी बात पर एक दुसरे की शिकायत और आलोचना करते ही रहते हैं।
वैज्ञानिक धर्म की आलोचना करते हैं और धार्मिक नेता ये दावा करते हैं कि वे वैज्ञानिकों से अधिक जानते हैं।
हक़ीक़त यही है कि कमोबेश, हर व्यक्ति दूसरों की किसी बात या उनके किसी काम पर शिकायत एवं आलोचना करता है।
कुछ इसे सार्वजनिक रुप से करते हैं और कुछ चुनिंदा - अपने जाने पहचाने विश्वसनीय लोगों के साथ - और कुछ केवल अपने मन में - मुँह से एक शब्द भी बोले बिना।
इस से बचने का एकमात्र तरीका है कि हम अपने विचारों पर ध्यान दें - ईमानदारी और सतर्कता से - चेतनता के साथ बार-बार अपने विचारों और स्वभाव को परखें।
अगर हमें ये एहसास हो जाए कि हम भी शिकायत और आलोचना कर रहे हैं, तो हम उससे बचने की - और अपने स्वभाव को बदलने की कोशिश कर सकते हैं।
' राजन सचदेव '
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Kaise bataoon main tumhe Mere liye tum kaun ho Kaise bataoon main tumhe Tum dhadkanon ka geet ho Jeevan ka tum sangeet ho Tum zindagi...
🙏🏼🙏🏼
ReplyDeleteSelf realization much needed
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