मनस्य एकं वचस्य एकं कर्मण्य एकं महात्मनाम्
मनस्य अन्यत वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यत् दुरात्मनाम्
महात्मा लोग - अर्थात महानआत्मा, महांपुरुष अथवा महान व्यक्ति मन वचन और कर्म से एक होते हैं।
महान व्यक्तियों के मन में भी शुद्ध विचार होते हैं -
वो वही बोलते हैं - उनके वचन सुंदर, शुद्ध और प्रेरणादायक होते हैं।
और वो वैसे ही कर्म करते हैं - उनके कर्म भी सुंदर और पवित्र होते हैं जो किसी के दुःख का कारण नहीं बनते।
वह मनसा वाचा कर्मणा - तीनों में ही शुद्ध और पवित्र होते हैं।
लेकिन इस के विपरीत - दुरात्मा अर्थात बुरे एवं स्वार्थ भाव रखने वाले लोगों के मन में कुछ और होता है और वचन एवं कर्म में कुछ और।
ऐसे लोग न तो स्वयं ही प्रसन्न और संतुष्ट रह सकते हैं - और न ही किसी और का भला कर सकते हैं।
" राजन सचदेव "
Bahut hee sunder bachan ji. 🙏
ReplyDelete