हसऱतों का बोझ लेकर बैठते हैं ध्यान में
फिर शिकाय़त भी है ये सुमिरन में मन लगता नहीं
बांधना मुश्किल है इसको - दौड़ता है हर घड़ी
मन वो चंचल पंछी है जो इक जगह टिकता नहीं
मन भरा है 'काम से तो - राम कैसे आएंगे
इक भरे बर्तन में 'राजन 'और कुछ पड़ता नहीं
" राजन सचदेव "
काम = कामनाएँ, वासनाएँ , इच्छाएँ
Beautiful ji💐🙏
ReplyDeleteReality
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteWonderfully explained
ReplyDeleteGreat thought
ReplyDelete👍🙏🏻wahji
ReplyDelete🙇♀️🙏👌
ReplyDeleteReal Mei jitni Der simran kar kabhi akagra nahi hota
ReplyDeleteवाह वाह! इतने बड़े बर्तन में राजन कुछ पड़ता नहीं 👌🏼
ReplyDeleteVery practical poem
ReplyDeleteBeautiful 🙏🏼🙏🏼
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