Wednesday, January 25, 2023

महानता और बड़प्पन का प्रतीक

एक बार एक राजा अपने महल में भोजन कर रहा था।
भोजन परोसते समय - अचानक सेवक के हाथ से थोड़ी सी सब्जी राजा के कपड़ों पर गिर गई।

राजा की त्यौरियां चढ़ गयीं। उसने गुस्से से सेवक की तरफ देखा।
सेवक घबरा गया और डर के मारे कांपने लगा। 
लेकिन कुछ सोचकर उसने झट से बर्तन में बची हुई बाकी सब्जी भी राजा के कपड़ों पर उंडेल दी।
अब तो राजा के क्रोध की सीमा न रही।
वह आग बबूला हो कर चिल्लाया: 'तुम्हारी ये ज़ुर्रत - तुमने ऐसा करने का दुस्साहस कैसे किया?

सेवक ने अत्यंत शांत भाव से उत्तर दिया - 
महाराज ! पहले जब ग़लती से मेरे हाथ से कुछ सब्ज़ी आपके कपड़ों पर गिरी तो मैंने आपका क्रोध देखकर समझ लिया था कि अब मेरी जान नहीं बचेगी। 
लेकिन तभी मुझे ध्यान आया कि जब लोगों को इस बात का पता चलेगा तो वो कहेंगे कि देखो - राजा ने एक छोटी सी ग़लती पर एक बेगुनाह सेवक को मौत की सजा दे दी। 
ऐसे में आपकी बदनामी होगी ।
लोग आप को एक दयालु राजा के रुप में नहीं - बल्कि एक अत्याचारी के रुप में देखने लगेंगे। 
इसलिए मैनें सोचा कि सारी सब्जी ही आप पर उंडेल दूं। 
ताकि लोग इसे मेरी धृष्टता - मेरी गुस्ताख़ी समझ कर मुझे ही अपराधी समझें और आपको बदनाम न करें।'

ये सुन कर राजा चौंक गया।
वह सेवक में मन में अपने प्रति प्रेम और समर्पण की गहराई को देख कर हैरान रह गया।
और उसे सेवक के जबाव में एक गंभीर संदेश के भी दर्शन हुए।
उसे अहसास हुआ कि एक सेवक - जो दिन रात मालिक की हर बात का - हर सुविधा का ध्यान रखते हुए जी जान से सेवा करता है - उसकी किसी छोटी सी बात पर क्रोध करना शक्ति का नहीं - बल्कि हीनता और कमजोरी का प्रमाण है।
वास्तव में ऐसे सेवक तो सेवा करवाने वाले मालिक से कहीं अधिक महान हैं।

और फिर - सिर्फ सेवक भाव से - बिना 
पारिश्रमिक के - बिना किसी वेतन या शुल्क के हर समय सेवा करना तो और भी कठिन है।
निःस्वार्थ भाव से सेवा करना कोई आसान काम नहीं है। हर इंसान ऐसा नहीं कर सकता। 
साथ ही ये भी ध्यान रहे कि जो बिना किसी तनख़्वाह अथवा प्रतिफल के - बिना किसी लालच के - केवल निष्काम भाव से समर्पित हो कर सेवा करते हैं - उनसे कभी गलती भी हो सकती है। 
पूर्ण तो कोई भी नहीं होता।
इसलिए मालिक को दयालु, उदार और क्षमाशील होना चाहिए।
चाहे वह कोई अधीनस्थ हो, सेवक हो, अनुयायी हो - या मित्र और परिवार का ही कोई सदस्य हो - ऐसे समर्पित लोगों की छोटी छोटी ग़लतियों पर नाराज नहीं होना चाहिए - बल्कि उनके प्रेम व समर्पण के भाव का सम्मान करना चाहिए।

1 comment:

Naam letay hain vo mera (They mention my name with.... )

Naam letay hain vo mera kyon dushnaam say   (Disdain) Miltay hain jin say hamesha hum ikraam say    (Respectfully) Beqaraari me na aayi ne...