मा कुरु धनजनयौवन गर्वं
हरति निमेषात्कालः सर्वम्
मायामयमिदमखिलं बुद्ध्वा
ब्रह्मपदं त्वं प्रविश विदित्वा ॥ ११॥
(आदि शंकराचार्य - भज गोविन्दम - 11)
धन, जवानी और सामाजिक शक्ति - अर्थात मित्रों, अनुयायियों, शुभचिंतकों आदि की संख्या पर कभी घमंड न करें।
यह सब कुछ काल के एक झटके में ही नष्ट हो सकता है।
इस बात को समझ कर स्वयं को माया के भ्रम से मुक्त करें और ज्ञान के द्वारा ब्रह्मपद को प्राप्त करें।
(आदि शंकराचार्य )
यहां आदि शंकराचार्य एक चेतावनी दे रहे हैं कि किसी भी प्रकार की संपत्ति अथवा शक्ति का अभिमान एवं अहंकार केवल एक भ्रम है - मिथ्या है - झूठ है।
क्योंकि इस क्षणभंगुर संसार में कोई भी वस्तु - स्थिति या अवस्था हमेशा एक जैसी नहीं रहती।
बढ़ती उमर के साथ जवानी ढल जाती है।
धन और अन्य संपत्ति चोरी हो सकती है - खो सकती है - या खर्च करने से समाप्त हो सकती है।
सामाजिक और राजनीतिक सत्ता रातों रात बदल सकती है।
एकमात्र स्वयं - अर्थात आत्मा अथवा परम-आत्मा ही है जो स्थिर एवं कालातीत सत्य है।
ज्ञान के माध्यम से इस तथ्य को जान कर - अच्छी तरह समझ कर आत्मज्ञान की स्थिति को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।
आत्मा में स्थित हो कर ब्रह्मपद को प्राप्त करना ही ज्ञान का ध्येय है - असली मक़सद है।
' राजन सचदेव '
❤️🙏
ReplyDelete𝚂𝚘𝚘 𝚗𝚒𝚌𝚎 𝚝𝚛𝚞𝚎 𝚠𝚘𝚛𝚍𝚜❤️
ReplyDeleteBahut hee sunder bachan ji. 🙏
ReplyDelete🙏🏻🙏👣🙏🏻🌷❤️
ReplyDeleteBhut sunder bachan mahapurso ji💐🙏
ReplyDeleteBhut achsha, Bhut sunder ji👣👈🏻🙇🙏
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