Tuesday, January 10, 2023

एकः सत्य - बहुधा वदन्ति विप्रः

सत्य निरंतर एकरुप और सार्वभौमिक है।
इसे शब्दों से परिभाषित नहीं किया जा सकता लेकिन फिर भी समय-समय पर संतों और विद्वानों ने इसे भिन्न-भिन्न भाषाओं में अपने-अपने ढंग से और अपने अपने मत के अनुसार समझाने का प्रयत्न किया है।
वेदों के रचयिता इस तथ्य को अच्छी तरह समझते थे।
इसीलिए उन्होंने यह घोषणा की:
                एकः सत्य - बहुधा वदन्ति विप्रः
अर्थात :  परम सार्वभौमिक सत्य एक ही है, जिसकी व्याख्या ऋषियों, संतों और विद्वानों ने अनेक प्रकार  से की है।
अर्थात एक होते हुए भी सत्य का विवरण हर विद्वान अपनी धारणाओं के अनुसार - अपनी सोच और व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर अलग अलग तरीके से करता है। 
 
लेकिन  कई लोगों ने -  विशेषकर  पश्चिमी लोगों ने, अज्ञानतावश एक ही सर्वशक्तिमान ईश्वर का - विभिन्न धारणाओं के अनुसार विभिन्न रुपों का अनुवाद - "कई ईश्वर अथवा कई प्रकार के भगवान"  में  कर दिया। 
अज्ञानतावश उन्होंने यह  मान लिया कि हिंदू एक ईश्वर नहीं बल्कि कई भगवानों में विश्वास करते हैं।
यही कारण है कि मुसलमान और ईसाई मानते हैं कि उनका ईष्ट अथवा भगवान हिंदुओं और सिखों के भगवान से अलग है - और अन्य सब से श्रेष्ठ है।
इस तरह की गलतफहमी का कारण यह है कि उन्होंने भगवद गीता या अन्य हिंदू ग्रंथों - उपनिषद, योग वशिष्ठ, अष्टावक्र गीता आदि को कभी नहीं पढ़ा।
यहाँ तक कि बहुत से सिक्ख भी अब अनजाने में यह कहने लगे हैं कि उनका ईश्वर हिन्दुओं के ईश्वर से अलग और श्रेष्ठ है। 
सही ज्ञान की कमी लोगों के दिलों में गलतफहमियाँ पैदा करती है - और इस वजह से कभी कभी विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच नफ़रत - संघर्ष और दुश्मनी का भाव भी पैदा हो जाता है।
इन मुद्दों को हल करने के लिए सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात है ज्ञान - सही और उचित ज्ञान।
दूसरों की आलोचना करने से पहले, उनके धर्मग्रंथों को स्वयं पढ़कर - उन्हें व्यक्तिगत रुप से समझने की कोशिश करके उनके धर्म की वास्तविक विचारधारा को जानना आवश्यक है। 
अगर कुछ मतभेद नज़र भी आएं तो भी अपने धर्म को मानते हुए औरों के धर्म का भी आदर करें और किसी की भावनाओं को किसी भी प्रकार की ठेस न पहुंचाएं। 

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