एक बार की बात है, पंजाब के एक गाँव के पास एक युवा और एक वृद्ध भिक्षु मिले।
वे अलग-अलग मठों से थे - दर्शन शास्त्र के विभिन्न स्कूलों से।
औपचारिक अभिनन्दन के बाद, छोटे भिक्षु ने वृद्ध भिक्षु को शास्त्रार्थ (वाद-विवाद) के लिए चुनौती दी - जो उन दिनों, विशेष रुप से विभिन्न सम्प्रदायों - अलग स्कूलों के बीच एक बहुत ही सामान्य प्रथा थी।
बड़े भिक्षु को बहस में कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन छोटे भिक्षु ने इस पर जोर दिया।
उस ने कहा- "या तो शास्त्रार्थ करें या फिर बिना प्रतियोगिता के अपनी हार स्वीकार कर लें।"
वृद्ध भिक्षु ने कहा -
"लेकिन फ़ैसला करने के लिए हमें किसी जज की ज़रुरत है।और यहाँ तो आसपास कोई भी नहीं है।"
छोटे संन्यासी अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने के लिए बहुत ही उत्सुक थे।
उस ने चारों ओर देखा तो एक किसान को अपने खेत में हल चलाते हुए देखा।
"हम उसे जज बनने के लिए कहेंगे।"
वह उस किसान के पास गए और कहने लगे कि हम दोनों के बीच शास्त्रार्थ यानी शास्त्रों पर बहस हो रही है।
आप हमारे जज बनिए और हमारे तर्क सुन कर हार जीत का फैसला करें और बताएं कि किस को ज़्यादा ज्ञान है।
किसान हिचकिचाया और कहने लगा कि मैं तो एक अनपढ़ किसान हूं।
मैं तो शास्त्रों के बारे में कुछ नहीं भी जानता। मुझे क्या पता? मैं फैसला कैसे कर सकता हूँ ?"
लेकिन छोटा भिक्षु बहस करने के लिए बहुत ही उत्सुक और उतावला था।
वह अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने का ये अवसर खोना नहीं चाहता था।
किसान को मनाने के लिए उन्होंने कहा -
"आपको बस इतना करना है कि एक प्रश्न पूछें - कोई भी प्रश्न।
हम दोनों बारी-बारी से आपके प्रश्न का उत्तर देंगे - और फिर आप हमें बता दें कि आपको किसका उत्तर पसंद आया।
आपको बस इतना ही करना है।"
किसान ने एक पल के लिए सोचा और कहा:
"ठीक है - मैं ज्यादा तो नहीं जानता। पर मैंने सुना है कि अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो हम स्वर्ग में जाएंगे।
लेकिन मुझे नहीं पता कि स्वर्ग क्या होता है।
सो आप ये बताइए कि स्वर्ग क्या है और कैसा है ?"
क्योंकि छोटा भिक्षु बहस के लिए बहुत उत्सुक था - इसलिए बड़े भिक्षु ने कहा कि वो पहले उत्तर दे और किसान की जिज्ञासा शांत करे।
छोटे भिक्षु ने तुरंत भगवद गीता के श्लोक - कठोपनिषद के छंद और वेदों के मंत्रों को संस्कृत में पढ़ना शुरु कर दिया।
वो इस तरह बोल रहे थे जैसे किसी विशाल सभा में भाषण दे रहे हों।
ज़ाहिर था कि वह बहुत पढ़ा-लिखा और विद्वान था - उसने बहुत से शास्त्र पढ़े थे और उन्हें कंठस्थ भी कर लिया था।
वह अनपढ़ साधारण किसान आँखें झपकाते हुए बड़ी हैरानी से उसके चेहरे को देखता रहा -
भिक्षु के भाषण का एक भी शब्द उसे समझ नहीं आ रहा था।
लगभग 20 मिनट तक शास्त्रों का पाठ और व्याख्या करने के बाद वह भिक्षु रुका।
फिर उसने बड़े भिक्षु की ओर देखा, और गर्व से कहा:
"चलिए - अब आपकी बारी। देखें कि आपको कितना ज्ञान है - आप कितना जानते हैं।
वृद्ध भिक्षु ने मुस्कुराते हुए बड़ी शांति से किसान की ओर देखा और कहा:
“मेरे प्यारे किसान भाई।
आप हर रोज़ सुबह-सुबह अपने खेत में आते हो और घंटों मेहनत करते हो -
गर्मी की चिलचिलाती धूप में अपने खेत की जुताई करते हो।
दोपहर के समय - जब सूरज ठीक आपके सिर के ऊपर चमक रहा होता है और उसकी गर्मी असहनीय हो जाती है।
तब आपकी पत्नी आपके लिए दोपहर का खाना लेकर आती है।
तब आप किसी पेड़ के नीचे छांव में बैठ जाते हो और घर से एक मोटे से कपड़े में लपेट कर लाई हुईं रोटियां निकाल कर साग और अचार के साथ खाते हो - और मिट्टी के बर्तन में लाई हुई ठंडी लस्सी के कुछ घूंट पीते हो।
जब गर्मी से आपका शरीर पसीने से भरा होता है - आपके चेहरे और हाथों से पसीना गिर रहा होता है -
उस समय जब आप पेड़ की ठंडी छांव में उन रोटियों और उस ठंडी लस्सी का आनंद लेते हो - तो वही स्वर्ग है -
ऐ मित्र - बस वही स्वर्ग का आनंद है।
उस किसान की आँखों में चमक आ गई - उसके पूरे चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई।
बड़े उत्साह के साथ उसने वृद्ध साधु की ओर देखा और कहा:
"आप जीत गए - आप ही जेतु हैं - विजयी हैं "
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अपनी बात कहने से पहले अपने श्रोताओं को समझें और परख लें।
उनके बौद्धिक और मानसिक स्तर को समझने की कोशिश करें और उनकी भाषा बोलें -
अपनी बात इस तरह से समझाने की कोशिश करें जो उनकी समझ में आ सके - जो उनके लिए समझना आसान हो।
हम बहुत सारी पुस्तकों और शास्त्रों को पढ़ कर ज्ञानी तो बन सकते हैं -
लेकिन सही ज्ञान तो जीवन के रोज़मर्रा के अनुभवों से ही प्राप्त होता है -
जब ज्ञान को प्रेक्टिकल रुप से जीवन में प्रतिपादित किया जाता है।
ज्ञान का विस्तार और प्रचार दिखावे के उद्देश्य से नहीं होना चाहिए -
तर्क और बहस- मुबाहिसों के लिए नहीं। वाद-विवाद में जीतने के लिए नहीं।
ज्ञान तो इंसान को विनम्र बनाता है - दम्भी और अभिमानी नहीं।
' राजन सचदेव '
Great Lesson ji !
ReplyDeleteThanks
Absolutely right
ReplyDeleteAtti uttam! LA JAWAB!
ReplyDeleteSo muchh to learn shraddheya
ReplyDeleteज्ञान की ये परिभाषा हमें भी समझ आए🙏🏼
ReplyDeleteBeautiful 🙏🏼🙏🏼
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