Monday, January 2, 2023

वक़्त हाथों से निकलता जा रहा है

कब तलक है ये बहार-ए-नौजवानी 
ख़त्म हो जाएगी इक दिन ज़िंदगानी 

वक़्त हाथों से निकलता जा रहा है 
उम्र ढ़लती जा रही ज्यों बहता पानी

जिस पे इतना नाज़ है - इतना अक़ीदा 
खाक़ में मिल जाएगा ये जिस्म-ए-फ़ानी 

कौन जाने कब बुलावा आये 'राजन '
कौन जाने कब हो मर्ग-ए-नागहानी 
                      " राजन सचदेव " 

नाज़         =      गर्व, मान 
अक़ीदा    =     विश्वास, भरोसा 
जिस्म-ए-फ़ानी = नाशवान शरीर 
मर्ग          =      मौत 
नागहानी  =     अचानक, आकस्मिक 

8 comments:

  1. So true . But hame aap ki jarurat hai , duniya ko bhi itni hi jaroorat hai .
    my prayers for long life for all those who we need here

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    1. Thank you so much for your kind blessings and prayers 🙏🙏

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  2. कड़वा सत्य : beautifully narrated
    Narendra

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  3. 100% very true Rajan Shaib !
    काश हमें samaj आ जायँ

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