कब तलक है ये बहार-ए-नौजवानी
ख़त्म हो जाएगी इक दिन ज़िंदगानी
वक़्त हाथों से निकलता जा रहा है
उम्र ढ़लती जा रही ज्यों बहता पानी
जिस पे इतना नाज़ है - इतना अक़ीदा
खाक़ में मिल जाएगा ये जिस्म-ए-फ़ानी
कौन जाने कब बुलावा आये 'राजन '
कौन जाने कब हो मर्ग-ए-नागहानी
" राजन सचदेव "
नाज़ = गर्व, मान
अक़ीदा = विश्वास, भरोसा
जिस्म-ए-फ़ानी = नाशवान शरीर
मर्ग = मौत
नागहानी = अचानक, आकस्मिक
So true . But hame aap ki jarurat hai , duniya ko bhi itni hi jaroorat hai .
ReplyDeletemy prayers for long life for all those who we need here
Thank you so much for your kind blessings and prayers 🙏🙏
Deleteकड़वा सत्य : beautifully narrated
ReplyDeleteNarendra
Thank you
DeleteMum! Keep blessings uncle ji!
ReplyDelete100% very true Rajan Shaib !
ReplyDeleteकाश हमें samaj आ जायँ
true🙏
ReplyDeleteVery True 🙏🙏
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