यदि मन अपनी प्राकृतिक अवस्था में हो - अर्थात बिखरे हुए विचारों की भीड़ से घिरा हुआ न हो - तो हमेशा शांत ही रहता है।
अनेक बिखरे हुए विचारों का अनियंत्रित रुप से मन में दौड़ते रहना तो वैसा ही है जैसे कोई कार ड्राइवर के बिना - बगैर किसी लक्ष्य - बगैर किसी एड्रेस के ही तेज गति से दौड़ी जा रही हो। अगर उसे नियंत्रित न किया जाए तो कोई दुर्घटना हो सकती है।
इसीलिए कारों में और अन्य सभी वाहनों में ब्रेक लगाए जाते हैं ताकि ज़रुरत पड़ने पर उन्हें रोका जा सके या धीमा किया जा सके।
इसी प्रकार यदि हमारा मन भी अनचाही दिशाओं में - अपने लक्ष्य से दूर - उलट दिशा में भागने लगे -
तो उसे रोकने या धीमा करने के लिए हमें उस पर ब्रेक लगाने की आवश्यकता होती है।
मुक्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग में मन पर नियंत्रण रखना सबसे महत्वपूर्ण कदम है।
हालांकि मन को नियंत्रित रखना अत्यंत कठिन है - बहुत मुश्किल काम है लेकिन ये आध्यात्मिक यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण और आवश्यक हिस्सा है।
इसीलिए भगवद गीता, उपनिषद, गुरबाणी एवं अन्य सभी धर्म ग्रंथ मन को जीतने अर्थात नियंत्रित करने की बात करते हैं।
बुद्ध ने भी कहा: "हजारों युद्ध जीतने की तुलना में अपने मन को जीतना कठिन है - लेकिन बेहतर है"।
'मन जीते जग जीत'
जो अपने मन को काबू कर लेता है - जो अपने मन का स्वामी बन जाता है वह अपने संसार - अपनी सृष्टि का भी स्वामी बन जाता है
और अंततः परम् शांति और मोक्ष पद को प्राप्त कर लेता है।
" राजन सचदेव "
🙏Absolutely right ji..🙏 ਮਃ ੩ ॥ ਮਨੁ ਕੁੰਚਰੁ ਪੀਲਕੁ ਗੁਰੂ ਗਿਆਨੁ ਕੁੰਡਾ ਜਹ ਖਿੰਚੇ ਤਹ ਜਾਇ ॥ ਨਾਨਕ ਹਸਤੀ ਕੁੰਡੇ ਬਾਹਰਾ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਉਝੜਿ ਪਾਇ ॥੨॥
ReplyDeleteSatya aur sanaatan
ReplyDeleteJust awesome ji
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