पिछली पोस्ट के संबंध में कुछ प्रश्न आए -
~ रात के पिछले हिस्से में इक दौलत बंटती रहती है
जो जागे सो पावे है - जो सोवे है वो खोवे है ~
1. कृपया इसे विस्तार से समझाएं ..
2. रात्रि का अंतिम भाग क्या माना जाता है?
3. रात का पिछला हिस्सा क्या है? सुबह 4 बजे?
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भारतीय प्रणाली में दिन और रात को चार चार बराबर भागों में बांटा गया है, जिन्हें प्रहर या पहर कहा जाता है।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय को दिन माना जाता है (आधी रात 12 बजे से अगली आधी रात तक नहीं - जैसा कि आजकल का प्रचलन है)
सामान्य रुप से सुबह ६ बजे सूर्योदय का समय मान लिया गया है।
इसलिए सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक दिन और शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक रात मानी जाती है।
एक प्रहर तीन घंटे के बराबर होता है।
इस प्रकार रात्रि का चौथा या अंतिम प्रहर प्रातः 3 से 6 बजे तक होता है।
शाब्दिक रुप में ऊपरलिखित दोहे का अर्थ यह होगा कि रात के अंतिम प्रहर - अर्थात सूर्योदय से पहले उठना - तन और मन दोनों के लिए बहुत लाभदायक होता है। बहुत से विद्वानों और संतों का कहना है कि सुबह चार या साढ़े चार बजे उठ कर ध्यान करना चाहिए - शास्त्रों, पवित्र धर्म ग्रंथों, गुरबाणी इत्यादि को पढ़ना चाहिए और नाम सुमिरन करना चाहिए।
क्योंकि उस समय न तो शरीर में थकान होती है और न ही आसपास शोर होता है - इसलिए शांति से ध्यान करना और मन को सुमिरन में जोड़ना आसान होता है।
लेकिन - अगर इसे लाक्षणिक अथवा रुपक के तौर पर देखा जाए तो इसे मानव जीवन के दिन और रात के चार भागों में बांटा जा सकता है।
अगर सामान्य जीवनकाल सत्तर या अस्सी वर्ष का मान लिया जाए तो पहले के 30-40 वर्षों को दिन माना जाएगा - जिसे बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था और वयस्क - इन चार अवस्थाओं में बांटा जा सकता है।
जीवन के इन पड़ावों में शरीर मन और बुद्धि - पढ़ना,सीखना, कमाना और settle होना - हर चीज़ का रुझान बढ़ने की तरफ होता है - बढ़ता रहता है।
फिर उसके बाद हर चीज़ ढलने लगती है - हर चीज़ में झुकाव अथवा पतन शुरु हो जाता है - जिसे सूर्यास्त या रात की संज्ञा दी जा सकती है।
ज्ञानी एवं संतजन कहते हैं कि जीवन के पहले हिस्से में यदि यह अवसर चूक भी गया हो तो कम से कम जीवन के अंतिम काल में - वृद्धावस्था में तो जागना ही चाहिए।
आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने - और फिर बाद के कई संतों ने भी अपने लेखन में इस सादृश्य का - इस रुपक का इस्तेमाल किया है ।
गुरु अर्जुन देव जी भी एक शब्द में इन चार चरणों की बात विस्तार से कहते हैं जो
' पहले पहरे रैन के वणजारिया से लेकर चौथे पहरे रैन के वणजारिया* तक है।
(सिरी राग महला 5वां- पृष्ठ 77-78)
इसी तरह के कुछ अन्य शब्दों में भी इसी अवधारणा का ज़िक्र है
जिस का अर्थ रात का आखरी हिस्सा नहीं बल्कि ज़िंदगी की शाम - जीवन का अंतिम प्रहर है।
इस प्रकार - इन पंक्तियों को चाहे शाब्दिक अर्थ में देखें या लाक्षणिक, रुपात्मक रुप में - सुबह जल्दी अर्थात रात खत्म होने से पहले उठ जाना महत्वपूर्ण भी है और लाभदायक भी।
' राजन सचदेव '
🙏🙏
ReplyDelete🙏!
ReplyDeleteAnil Gambhir
🙏
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