Thursday, November 18, 2021

गोविन्दम् भज मूढ़मते

एक बार, आदि शंकराचार्य ने देखा कि एक पुजारी अपने शिष्यों को मंत्रों का पाठ करते समय व्याकरण और उच्चारण की गलतियों के लिए डांट रहा था ।
यह देखकर शंकराचार्य ने कहा:

         भज गोविन्दम् भज गोविन्दम् - गोविन्दम् भज मूढ़मते
         संप्राप्ते सन्निहिते काले न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे
                                              (आदि शंकराचार्य )

अर्थ :
हे मूढ़ - माया ग्रसित मोहित मित्र - 
गोविंद गोविंद जप - गोविंद का नाम जप -  (शुद्ध प्रेम और भक्ति के साथ) गोविंद को याद कर।
केवल (मंत्रों का शुद्ध - सही उच्चारण) - उपयुक्त व्याकरण ही अंतकाल में (जन्म मरण के बंधन से) रक्षा नहीं कर सकता। 

ऊपर लिखित घटना की तरह आज भी कुछ लोग ग्रंथों और शास्त्रों में लिखे गए शब्दों के शुद्ध उच्चारण और व्याकरण की तरफ ज़्यादा ध्यान देते हैं और ऐसा न करने पर नाराज़ हो जाते हैं। 
निस्संदेह, शब्दों को बदलना या कुछ शब्दों और मात्राओं को छोड़ देना - या शब्दों का उच्चारण इस तरह से करना जिससे उस का अर्थ ही बदल जाए - ये अच्छा नहीं होता। 
लेकिन मंत्रों और महावाक्यों के वास्तविक अर्थ और सार को समझना और उस पर विचार करना अन्य बातों से अधिक महत्वपूर्ण है।
बिना किसी भावना और श्रद्धा के मंत्रों या वाक्यांशों को दोहराते रहने का कोई फायदा नहीं  - चाहे उनका उच्चारण कितना भी सही और शुद्ध क्यों न हो।

भक्ति में श्रद्धा और प्रेम भावना का महत्व है - नियमों, व्याकरण या शब्दों के उच्चारण का  नहीं।
भले ही जाने या अनजाने में किसी भक्त के मुख से कोई गलत शब्द निकल जाए -
लेकिन सर्वज्ञ एवं अन्तर्यामी ईश्वर जानते हैं कि उन के दिल में क्या है।
                                                          ' राजन सचदेव ' 

7 comments:

  1. It's True 🌸🙏🌺सर्वज्ञ एवं अन्तर्यामी ईश्वर जानते हैं कि उन के दिल में क्या.... भक्ति में श्रद्धा और प्रेम भावना का महत्व है

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  2. Wah ji wah.. True ji.. keep blessing ji 🙏🏻🙏🏻😊😊💐💐

    Satyavan

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  3. सटीक एवं सार्वभौमिक भाव एवं शिक्षण आपके द्वारा श्रद्धेय,

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  4. That reminds me of sometimes kids doing Simiran as tu hai sada bhulanhar and main hain bakhshanhar and Baba ji would give a big smile, though words were incorrect but sentiments were pure.

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  5. That reminds me of sometimes kids doing Simiran as tu hai sada bhulanhar and main hain bakhshanhar and Baba ji would give a big smile, though words were incorrect but sentiments were pure.

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