Saturday, November 13, 2021

ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उलफत ही सही

दो दिन पहले ताज महल पर लिखी साहिर लुधियानवी की एक नज़्म की दो पंक्तियाँ पोस्ट की थीं 
कुछ पाठकों ने उस पूरी नज़्म के लिए फ़रमाइश की है  -- 
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ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उलफत ही सही
तुम को इस वादी-ए-रँगीं से अक़ीदत ही सही
                               मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे 

बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी
सब्त जिस राह पे हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रुहों का सफर क्या मानी

मेरी महबूब  पसे -पर्दा-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा
तूने सतवत के निशानों को तो देखा होता
मुर्दा शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली
अपने तारीक़ मक़ानों को तो देखा होता

अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उनके
लेकिन उनके लिये तश्हीर का सामान नहीं
क्यूँकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे

ये इमारात-ओ-मक़ाबिर, ये फ़सीलें , ये हिसार
मुतलक़ उल हुक्म शहँशाहों की अज़मत के सुतून
दामन-ए-दहर पे उस रँग की गुलकारी है
जिसमें शामिल है तेरे और मेरे अजदाद का ख़ून

मेरी महबूब ! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी
जिनकी सन्नाई ने बख़्शी है इसे शक़्ल-ए-जमील
उनके प्यारों के मक़ाबिर रहे बेनाम-ओ-नुमूद 
आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ँदील

ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा, ये महल
ये मुनक़्कश दर-ओ-दीवार, ये मेहराब ,ये ताक़
इक शहँशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
                      मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे 

                                                  " साहिर लुधियानवी  " 

मज़हर-ए-उलफत  = प्रणय स्थल  - प्रेम का उदगम स्थल  
अक़ीदत =   श्रद्धा 
सब्त  =   खुदे हुए  -अंकित   inscription, inscribed, engraved 
पस-ए-पर्दा-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा  = मोहब्बत के इस इश्तेहार के पर्दे के पीछे 
सतवत के निशान - वैभव का दिखावा  
मक़ाबिर   -  मक़बरे 
तारीक़     = अँधेरे 
सादिक़  =  सच्चे 
तश्हीर     = इश्तेहार , विज्ञापन 
मुफ़लिस =  ग़रीब 
इमारात-ओ-मक़ाबिर =  इमारतें और मक़बरे 
फ़सीलें     =     चारदीवारी 
हिसार      =  दुर्ग - क़िला 
मुतलक़ उल हुक्म   = स्वेच्छाचारी  -जो चाहे सो करने की ताक़त Unconditional absolute power, supreme
 command
अज़मत    = महानता  
सुतून  == मीनार , लाट , स्तम्भ ,खंबा 
दामन-ए-दहर     = दुनिया के दमन पर 
गुलकारी === मीनाकारी 
अजदाद का ख़ून  = बुज़ुर्गों का ख़ून 
सन्नाई      =  कारीगरी 
शक़्ल-ए-जमील  = सुंदर रुप 
बेनाम-ओ-नुमूद    =  नामो -निशान भी नहीं बचा  unknown, nonexistent 
क़ँदील  = चिराग़ , दीपक 
मुनक़्कश दर-ओ-दीवार  = मीनाकारी जड़ित  दरवाज़े और दीवारें   
मेहराब   = घुमावदार आकार  कक्ष Arch - chamber 
ताक़   = दीवार के अंदर बना एक खोल  (आला )

2 comments:

  1. Never before enjoyed the nazm with the meaning of words you very kindly included.
    Thanks a million.

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  2. So beautifully written Poetry!! You have explained very well. Enjoyed. ����

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ये दुनिया - Ye Duniya - This world

कहने को तो ये दुनिया अपनों का मेला है पर ध्यान से देखोगे तो हर कोई अकेला है      ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Kehnay ko to ye duniya apnon ka mela hai...