कल की पोस्ट "उचित कारण से क्रोध" पर काफी टिप्पणियाँ, प्रश्न और प्रतिक्रियाएँ आईं हैं।
पहली बात - वह प्राचीन यूनानी दार्शनिक, अरस्तू का एक सीधा उद्धरण था।
दूसरी बात - आम तौर पर क्रोध अच्छा नहीं होता और हमें इससे बचना और उस पर काबू पाना सीखना चाहिए।
लेकिन कभी-कभी, ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जहाँ सही कारण और सही समय पर किए हुए क्रोध को उचित ठहराया जा सकता है।
बल्कि कई बार तो सही समय पर क्रोध न करना भी नुकसानदेह और हानिकारक हो सकता है - उसका परिणाम प्रतिकूल हो सकता है।
जब पांडव शतरंज के खेल में हार गए, तो दुर्योधन ने आदेश दिया कि द्रौपदी को दरबार में लाया जाए और सबके सामने निर्वस्त्र किया जाए।
जब इस तरह द्रौपदी का अपमान किया जा रहा था - जब भरे दरबार में उसे सार्वजनिक रुप से लज्जित और अपमानित किया जा रहा था - तब भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे प्रख्यात विद्वान और नैतिकता के दिग्गज भी वहां मौजूद थे।
लेकिन उन्होंने कौरवों की ऐसी दुर्भावनापूर्ण, अनैतिक कार्रवाई के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई।
वह समय और कारण उनके क्रोध के लिए उचित थे और दुर्योधन उस समय सही मायने में उनके क्रोध का सही पात्र था।
लेकिन उन्होंने क्रोध नहीं किया। वे चुप रहे - जो कि समय के अनुसार ठीक नहीं था।
उस समय एक असहाय महिला को खुले शाही दरबार में सबके सामने इस तरह अपमानित होने से बचाने के लिए किया गया क्रोध पूरी तरह से उचित - जायज और न्यायसंगत होता।
जब आप किसी का अवैध शोषण होते हुए देखते हैं - किसी के साथ धोखा - नाजायज मारपीट अथवा बलात्कार होते हुए देखते हैं, तो उस समय आपके लिए क्रोध करना और अपनी अस्वीकृति दिखाना सही है - न्यायोचित एवं न्यायसंगत है।
ऐसे और भी कई उदाहरण हो सकते हैं।
जैसे कि माता-पिता का अपने बच्चों के दुर्व्यवहार करने पर उनके सुधार के लिए - उनकी ग़लतियों को ठीक करने के लिए क्रोध करना - जो सही कारण से हो और थोड़े ही समय के लिए हो - लाभदायक ही होता है।
इसी तरह कभी कभी गुरु और शिक्षक - मित्र और शुभचिंतक भी अपने शिष्यों और मित्रों पर क्रोध करके अपनी नाराज़गी प्रकट करते हैं लेकिन वह ग़ुस्सा उनकी सहायता और उन्हें सही दिशा में ले जाने के लिए होता है।
आवश्यकता इस बात की है कि सही समय पर सही फैसला लिया जाए।
बोलना या न बोलना - क्रोध करना या न करना - यह सब परिस्थिति पर निर्भर करता है।
और इसका चुनाव भी बुद्धिमानी से - अक़्लमंदी से - बहुत सोच समझ कर किया जाना चाहिए।
' राजन सचदेव '
Absolutely Right 🌺🙏🌸
ReplyDeleteIt’s logically, rationally , ethically and morally correct approach, Rajan ji. 👍🙏
ReplyDeleteSatbachan ji...fully agreed.
ReplyDeleteWell defined
ReplyDeleteVery Well explained
Balanced