"जो गायन मन को शुद्ध करता है वही गायन है बाकी सब अज्ञान है "
लगता है कि ज्ञान शब्द टाइप करते हुए शायद आ की मात्रा पहले लग गई होगी और वो शब्द "ग्यान से गायन " हो गया।
ध्यान आया कि बहुत बार केवल एक शब्द - और शब्द क्या - केवल एक मात्रा अथवा बिंदु के अंतर से भी अर्थ बदल जाता है।
और कई बार तो अर्थ से अनर्थ भी हो जाता है।
जैसे श्रद्धा लिखते समय कहीं ग़लती से आ की मात्रा पहले लग जाए तो श्रद्धा से श्राद्ध हो जाएगा और अर्थ से अनर्थ हो जाएगा।
उर्दू में एक शेर है:
हम दुआ लिखते रहे और वो दग़ा पढ़ते रहे
एक नुक़्ते ने महरम से मुजरिम कर दिया
ہم دعا لکھتے رہے اور وو دغا پڑھتے رہے
ایک نقطے نے محرم سے مجرم کر دیا
अगर इसे उर्दू या फ़ारसी लिपि में लिखा जाए तो "दुआ और दग़ा"
तथा "महरम और मुजरिम" में केवल एक नुक़्ते अर्थात बिंदु का ही फ़र्क़ है।
دعا - دغا
محرم - مجرم
और ये सोचते सोचते ऐसे ही कुछ और शब्द ध्यान में आते गए .......
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बिंदु हटा तो चिंता - चिता बन गई
बिंदु लगा तो पथ - पंथ बन गया
मैंने कहा उपकार - वो अपकार समझे
एक शब्द ने आदर से अनादर कर डाला
एक शब्द का ही तो अंतर है ज्ञान और अज्ञान में
तृप्त और अतृप्त में - शांत और अशांत में
एक शब्द ही रक्षक से भक्षक - सज्जन से दुर्जन
मित्र से अमित्रऔर सुपुत्र से कुपुत्र बना देता है
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बिंदु हटा तो चिंता - चिता बन गई
बिंदु लगा तो पथ - पंथ बन गया
मैंने कहा उपकार - वो अपकार समझे
एक शब्द ने आदर से अनादर कर डाला
एक शब्द का ही तो अंतर है ज्ञान और अज्ञान में
तृप्त और अतृप्त में - शांत और अशांत में
एक शब्द ही रक्षक से भक्षक - सज्जन से दुर्जन
मित्र से अमित्रऔर सुपुत्र से कुपुत्र बना देता है
अयोग्य से योग्य और अक्षम से सक्षम
धीर से अधीर और अशक्त से सशक्त -
समर्थ से असमर्थ - सक्रिय से निष्क्रिय
सफल से असफल कर देता है बस एक शब्द
शब्दों के पीछे छुपी होती हैं मन की भावनाएं
कुछ कल्पित और और कुछ संचित धारणाएं
बस एक शब्द और एक भाव से ही बदल जाती है
अक़सर जीवन की काया
भावनाओं और धारणाओं का ही खेल है
जिसे कहते हैं माया
विचार और भाव ही पवित्र को अपवित्र
योगी को भोगी और सुखी को दुखी कर देते हैं
प्रमाद - सफल को विफल बना देता है
तो भ्रम - ज्ञानी को अज्ञानी
शंका - आस्तिक को नास्तिक बना देती है
और संकल्प - विकल्प पैदा कर सकता है
अभिमान -अभीष्ट को अनिष्ट
क्रोध - शिष्ट को अशिष्ट कर देता है
और एक श्रद्धा सहित
प्रणाम - परिणाम बदल सकता है
केवल एक शब्द - हित से अहित कर देता है
और एक पल - संयोग को वियोग बना सकता है
एक अक्षर से श्रद्धा - श्राद्ध हो जाए
एक अक्षर - अर्थ से अनर्थ कर सकता है
अक्षर और क्षर में एक 'अ ' का है अंतर
एक अक्षर ही 'राजन ' को साजन बना सकता है
" राजन सचदेव "
दुआ = प्रार्थना
दग़ा = धोखा
पंथ = संस्था Organization
प्रमाद = आलस
विकल्प = साधन, तरीके, उपचार
अभीष्ट = इच्छित, मनवांछित, अपेक्षित - Wanted, Desired, Expected
अनिष्ट = बुरा, दुःखदाई
क्षर = नाशवान
अक्षर = अविनाशी
DHAN NIRANKAR JI UNCLE JI PATWARAN AUNTI JI EXPIRED IN THE MONTH OF MARCH 2023
ReplyDeleteAbove lines change the whole life of human DHAN NIRANKAR JI
Tu hi Nirankar 🙏🙏She was such a pious and loving soul - Nirankar privaar ko aur sab ko shakti pradan karay 🙏
Delete👌bahut khoob
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteBahut hi sunder explanation 🌺🌸🌼🙏
ReplyDeleteBeautiful 🙏🙏
ReplyDeleteWaah Saajan ji .. Waah .. what an insight Jì 🙏🙏🙏
ReplyDeleteBahut uttam
ReplyDeleteBahut khoob mahapurso ji👏🏾👏🏾
ReplyDeleteTremendous thoughts♥️🙏
ReplyDeleteSo very true
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