अगर धूल झाड़नी ही है - तो झाड़िए
लेकिन क्या इस से यह बेहतर नहीं होगा
कि कोई चित्र बनाएं - या कोई पत्र लिखें
कोई केक बनाएं - या कुछ बीज ही बो दें -
इच्छाओं और ज़रुरतों के अंतर को समझने की कोशिश करें
अगर धूल झाड़नी ही है - तो झाड़िए
लेकिन याद रहे - कि बहुत समय नहीं बचा है
तैरने के लिए नदियाँ - चढ़ने के लिए पहाड़
सुनने के लिए संगीत, और पढ़ने के लिए किताबें
संजोने के लिए दोस्त और जीने के लिए जीवन
(कितना कुछ बाकी है अभी करने के लिए)
अगर धूल झाड़नी ही है - तो झाड़िए
लेकिन देखिए - कि बाहर भी एक दुनिया है
आँखों में चमकता सूरज - बालों को छूती हवा
ये बर्फ़ की झड़ी - ये बारिश की बौछार -
हो सकता है फिर देखने को न मिलें
अगर धूल झाड़नी ही है - तो झाड़िए
लेकिन इस बात को भी ध्यान में रखिए
कि एक दिन बुढ़ापा आ जाएगा
और बुढ़ापा कभी दयालु नहीं होता
फिर जब तुम संसार से जाओगे
(एक दिन जाना ही पड़ेगा)
तो स्वयं भी धूल बन कर -
कुछ और धूल ही तो यहां छोड़ जाओगे
इंग्लिश में मूल लेखक: रोज़ मिलिगन
अनुवाद: राजन सचदेव
🙏🏻🥀💕
ReplyDeleteSo alarming message
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