Friday, June 30, 2023

माया महा ठगनी हम जानी

माया महा ठगनी हम जानी।।
तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले माधुरी बानी।।

केशव की कमला बन बैठी शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरत बन बैठी तीरथ में भई पानी।।

योगी के योगन बन बैठी राजा के घर रानी।।
काहू के हीरा बन बैठी काहु के कौड़ी कानी।।

भगतन की भगतिन बन बैठी बृह्मा की बृह्माणी।।
कहे कबीर सुनो भई साधो यह सब अकथ कहानी।।
                                 " सद्गुरु कबीर जी "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


सद्गुरु कबीर जी फरमाते हैं कि -
ये माया मनुष्य तो क्या - विष्णु को ठगने के लिए लक्ष्मी
और शिव को ठगने के लिए भवानी बन जाती है।
ब्रह्मा को ठगने के लिए ब्रह्माणी बन जाती है।
एक सेठ हीरे-मोतियों के मोह में बंधा है
तो ग़रीब भी अपने दो पैसों का मोह भला कहां छोड़ सकता है?
भक्तों के मन में भी कुछ न कुछ पाने की लालसा बनी ही रहती है
ये एक अकथ कहानी है - किस किस का नाम लें - हर प्राणी माया के बंधन में बंधा है।
संत कबीर जी के कथन अनुसार - कोई भी प्राणी जो शरीरधारी है - चाहे वह ब्रह्मा विष्णु महेश ही क्यों न हों -
किसी न किसी रुप में माया के अधीन हो ही जाते हैं।
                                      " राजन सचदेव "

2 comments:

न समझे थे न समझेंगे Na samjhay thay Na samjhengay (Neither understood - Never will)

न समझे थे कभी जो - और कभी न समझेंगे  उनको बार बार समझाने से क्या फ़ायदा  समंदर तो खारा है - और खारा ही रहेगा  उसमें शक्कर मिलाने से क्या फ़ायद...