आज - 4 जुलाई - वह दिन है जब स्वामी विवेकानन्द जी ने इस नश्वर संसार से प्रस्थान किया था।
स्वामी विवेकानन्द श्री रामकृष्ण परमहंस के सबसे प्रतिष्ठित शिष्यों में से एक थे -
और वर्तमान समय में वेदांत के सबसे महान और प्रमुख प्रतिपादक थे - जो हमेशा वेदों के सार्वभौमिक और मानवतावादी पक्ष पर जोर देते थे।
स्वामी विवेकानन्द हिंदू विचारधारा में प्रचलित पलायनवाद के स्थान पर उस में शक्ति और गतिशीलता का संचार करना चाहते थे।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अन्धविश्वास और कर्म काण्ड अर्थात केवल अनुष्ठानों और धार्मिक रीति-रिवाज़ों का पालन करने की जगह तत्त्व ज्ञान की प्राप्ति और मानवता एवं प्रकृति की सेवा अधिक महत्वपूर्ण है।
जब वह सन 1893 में विश्व धर्म संसद में हिंदू धर्म के प्रवक्ता के रुप में शिकागो आये तो उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व और अभूतपूर्व एवं ऊर्जस्वी भाषण से सभी सभासद मंत्रमुग्ध हो गए।
समाचार पत्रों ने उन्हें " एक दैवीय वक्ता और निस्संदेह संसद में सबसे महान व्यक्ति" कह कर वर्णित किया।
स्वामी जी ने पूर्व और पश्चिम पर समान रुप से अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ी।
जनवरी 1897 में भारत लौटने के बाद, उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों में व्याख्यान देना शुरु किए जिससे पूरे देश में एक नई जागृति की लहर चल पड़ी।
अपने प्रेरक और अत्यंत महत्वपूर्ण व्याख्यानों के माध्यम से, स्वामी जी ने भारत के लोगों की चेतना को ऊपर उठाने का प्रयास किया -
ताकि वे अपनी गहरी विचारधारा और सांस्कृतिक विरासत पर गर्व कर सकें।
उन्होंने तत्व ज्ञान - सच्चा ज्ञान प्राप्त करने और वेदांत के व्यावहारिक सिद्धांतों को अपनाने पर जोर दिया
और शिक्षित लोगों से उत्पीड़ित और दलित जनता की दुर्दशा पर ध्यान केंद्रित करने और उनके उत्थान के लिए प्रयास करने का अनुरोध किया।
4 जुलाई, 1902 को उन्होंने अपना नश्वर शरीर त्याग दिया।
ऐसे महान व्यक्तित्व और गुरुओं को शत शत नमन।
" राजन सचदेव "
🙏🏻🌹Koti Koti Naman ❤️🙏🏻
ReplyDeleteCharanjit
Aap ji ko b Naman ese aduatmik shakti ka sansmran karane k liye
ReplyDelete🙏Great personality. Koti koti naman. 🙏
ReplyDeleteBahut ache mahatma ji
ReplyDeleteKoti koti naman aise Mahatma ko. Thank you for sharing
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