कि हम लोहे के ऐसे छोटे छोटे टुकड़ों के समान हैं - जो सबसे विशाल - सबसे शक्तिशाली चुंबक -
अर्थात माया के खिंचाव का प्रतिरोध करने का प्रयत्न कर रहे हैं।
अमीर हो या गरीब, बड़ा हो या छोटा, शक्तिवान हो या दुर्बल - ताकतवर हो या कमजोर - हर व्यक्ति माया के वशीभूत दिखाई देता है।
यहाँ तक कि बड़े-बड़े ऋषि-मुनि और संत महात्मा भी सांसारिक सुख - धन, प्रसिद्धि और शक्ति आदि के आकर्षण से बचने में असमर्थ प्रतीत होते हैं।
हर कोई अधिक धन संचय करना चाहता है - और अधिक संपत्ति और जायदाद इकट्ठी करना चाहता है ।
हर व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की शक्ति प्राप्त करना चाहता है - अन्य लोगों पर नियंत्रण रखना चाहता है।
ऐसे लोग विरले ही हैं जो इस आग्रह का प्रतिरोध कर पाते हैं -
- जो माया के आकर्षण से बच पाते हैं और इस से अप्रभावित रह सकते हैं।
" राजन सचदेव "
" राजन सचदेव "
यकीनन विरले ही हैं। जो वास्तविकता समझ जाते हैं कि सब गुजरान के लिए है। माया बस देह को सुविधा जुटा सकती है - लेकिन सकूं नहीं। जो मानव इस वास्तविकता को समझ लेता है वही मुक्त हो पाता है। आप के भाव हृदय को छू जाते हैं। 🌺
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteनावँ पाणी है , या नावँ में पाणी है
ReplyDeleteबस इतना अंतर है 😑
निरंकार द्वारा प्रदत्त कोई चीज बुरी नहीं है और दृश्यमान प्रत्येक वस्तु माया का ही रूप है इसके बिना प्राणी जीवन संभव नहीं है परंतु उपयोग या दुरुपयोग का विवेक इन्सान को प्राप्त है
ReplyDeleteUttam bachan ji🙏🙏🙏🙏
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