Monday, July 31, 2023

महात्मा दिलवर जी की याद में

                                     महात्मा दिलवर जी की याद में 
                                     लेखक - अमित चव्हाण - मुंबई 

"वो मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते है ? मै बहुत दुःखी हु, आखिर मैने उनका क्या बिगाड़ा है?"

किसी घटना और व्यक्ति के शब्द सुनके मेरा ह्रदय बहुत पीड़ा महसूस कर रहा था। अक्सर पीड़ा, क्रोध में रूपांतरित हो ही जाती है, ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हो रहा था।

मन रो रहा था, और मन का विद्रोह उमड़ कर बाहर आ रहा था । आख़िर मेरी कोई गलती नही , मैंने उनके साथ शायद कुछ बुरा बर्ताव भी नही किया फिर भी मेरे बारे में वो ऐसा मत क्यों बना रहे है?

इतने सारे सवाल मन मे थे, शायद चेहरे पर भी वो दिख ही गए होंगे, और दिलवर जी ने सहज में ही मुझे समझाना शुरू किया...

"अमित जी, मैं आपकी तरह जवान था तब मैं आपसे भी ज्यादा असंतोष से भर जाता था, जैसे उबल उबल ही जाता था" 
(मुझे मन ही मन यह बात पता थी कि दिलवर जी केवल मुझे शांत करने के लिए अपने आपको ऐसे पेश कर रहे है)

आगे उन्होंने समझाना शुरू किया, "अमित जी, अभी समय है मोटी चमड़ी के बन जाओ, सबकी बात सिर्फ सुननी ही नही, अगर कुछ आपके बारे में गलत भी बोल रहा है, तो उसे सहना भी पड़ेगा"

"लेकिन, लेकिन फिर लोग मुझे गलत समझेंगे, वो मेरे बारे में क्या धारना बना रहें है, देखो ना?" मैंने जल्दी-जल्दी में उनको यह प्रश्न पूछ लिया ...

दिलवर जी ने मुझे बहुत प्रेम से देखा और कहा, "अमित जी आपकी जवाबदेही निरंकार से है, अपने आप से है, आपको किसी को कोई जवाब देने से पहले अपने आपको पूछना है, की क्या मेरे भाव सही थे, यदि जवाब हाँ है, तो उस भाव को निरंकार में डाल दो, इस पर विश्वास तो रक्खो"

मुझे इन शब्दों से बहुत धीरज प्राप्त हुआ, आत्मबल भी बढ़ा और इसका भी एहसाह हुआ कि मेरा विश्वास तो छोटी-छोटी बातों से भी डोल जाता है किन्तु दिलवर जी बड़े से बड़े तूफान को भी बहुत सहजता से मुस्कुराकर सहन कर जाते थे। शारिरिक पीड़ा हो, उतार चढ़ाव से भरी तन-मन-धन की परिस्थितिया हो, उन्होंने कभी भी उन परिस्थितियों को control करने की कोशिश नही की।
हाँ, जो बातें उनके control से बाहर थी, उन्हें सहजता से स्वीकार किया और साथ ही यह बात भी उतनी ही सच है कि वो उन कर्तव्यों से कभी पीछे  नही हटे, जिनको निभाने की जिम्मेदारी उनके हिस्से आयी.

समर्पण और कर्मनिष्ठता का समतोल थे, आ. दिलवर जी, आज 30 जुलाई 2023 को उनका दूसरा स्मृतिदिन है किंतु आपके यह प्रेरक प्रसंग हर दिन प्रेरणा देते रहेंगे।
                                                     लेखक - अमित चव्हाण - मुंबई 
                           

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Jab tak saans chalti hai - As long as the breath continues

      Uthaana khud hee padta hai thakaa toota badan 'Fakhri'       Ki jab tak saans chalti hai koi kandhaa nahin detaa              ...