निस बासुर बिखिअन कउ धावत किहि बिधि रोकउ ताहि ॥1॥रहाउ॥
बेद पुरान सिम्रिति के मत सुनि निमख न हीए बसावै ॥
पर धन पर दारा सिउ रचिओ बिरथा जनमु सिरावै ॥1॥
मदि माइआ कै भइओ बावरो सूझत नह कछु गिआना ॥
घट ही भीतरि बसत निरंजनु ताको मरमु न जाना ॥2॥
जब ही सरनि साध की आइओ दुरमति सगल बिनासी ॥
तब नानक चेतिओ चिंतामनि काटी जम की फासी ॥3॥
7॥632॥
हे मेरी माई - हे माता, मेरा मन मेरे वश में नहीं है
रात-दिन विषय-विकारों में डूबा रहता है इन के पीछे भागता रहता है।
इसे कैसे रोकूं? इसे कैसे दसमार्ग पर लाऊँ?
वेदों, पुराणों और स्मृतियों के उपदेशों को सुनता तो हूँ लेकिन वो वचन हृदय में ठहरते नहीं हैं -
उनके वचनों पर एक निमख - क्षणमात्र भी चल नहीं पाता। हृदय में धारण नहीं करता।
पर-धन और पर-स्त्री की कामना में ही ये जीवन व्यर्थ बीता जा रहा है।
माया के नशे में चूर इस मन को कुछ भी ज्ञान नहीं - रत्ती भर भी समझ नहीं।
प्रभु का निवास ह्रदय में ही है लेकिन यह इस मर्म को समझ नहीं पाया - उसे देख नहीं पाया और उस से प्रेम नहीं कर पाया।
(लेकिन) जब संतों की शरण में आया तो सारी दुरमत खत्म हो गई - दूर हो गई।
हे नानक - तब, चिंतामणि - सभी इच्छाओं को पूरा करने वाले ईश्वर का ध्यान आया और जम की फ़ासी कट गई
जन्म मरण का फंदा कट गया।
🙏🙏
ReplyDeleteNirankar kripa kare man isi se juda rahe ji.
ReplyDeleteTabhi man ki avasatha anand wali banti hai.🙏🌹🙏🌹
Man beche satguru ke pass tis sewak ke karaz raas
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