Tuesday, April 18, 2023

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं - पुनरपि जननीजठरे शयनम् ।
इह संसारे बहुदुस्तारे - कृपया पारे पाहि मुरारे ॥ २१॥
             (आदि शंकराचार्य - भज गोविन्दं - 21) 

बार-बार जन्म -  बारंबार मरण - बारम्बार माँ के गर्भ में शयन 
इस अंतहीन चक्र को तोड़ना बहुत दुश्वार है - अत्यंत कठिन है।
हे  मुरारी! हे प्रभु  - कृपा करके मुझे इस संसार सागर से पार करो। 

1 comment:

हर काम की तदबीर - Tadbeer - The ways of the world

दुनिया में हर काम की तदबीर बदलती रहती है अक़्सर ही इंसान की  तक़दीर बदलती रहती है  आती जाती रहती हैं 'राजन' ये शान और शोहरतें  शीशा रह...