पुनरपि जननं पुनरपि मरणं - पुनरपि जननीजठरे शयनम् ।
इह संसारे बहुदुस्तारे - कृपया पारे पाहि मुरारे ॥ २१॥
(आदि शंकराचार्य - भज गोविन्दं - 21)
बार-बार जन्म - बारंबार मरण - बारम्बार माँ के गर्भ में शयन
इस अंतहीन चक्र को तोड़ना बहुत दुश्वार है - अत्यंत कठिन है।
हे मुरारी! हे प्रभु - कृपा करके मुझे इस संसार सागर से पार करो।
🙏🏻🙏🏻
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