आज बचपन में सुनी एक कहानी याद आ गई।
एक आदमी घोड़े पर जा रहा था।
घोड़े को प्यास लगी थी। आदमी ने देखा कि कुछ दूर कुएँ पर एक किसान रहट चलाकर अपने खेतों में पानी लगा रहा था।
मुसाफिर कुएँ पर आया और घोड़े को रहट से पानी पिलाने लगा।
पर जैसे ही घोड़ा झुककर पानी पीने की कोशिश करता, रहट की ठक-ठक की आवाज से डर कर पीछे हट जाता। फिर आगे बढ़कर पानी पीने की कोशिश करता और फिर रहट की ठक-ठक से डरकर हट जाता।
मुसाफिर ने यह देख कर किसान से कहा कि भाई - थोड़ी देर के लिए अपने बैलों को रोक लो ताकि रहट की ठक-ठक बन्द हो जाए और घोड़ा पानी पी सके।
किसान ने रहट रोक दिया - लेकिन रहट के रुकते ही पानी आना भी बंद हो गया। इसलिए किसान ने फिर बैलों को हाँक कर रहट चला दिया।
और रहट के शोर से डर कर घोड़ा फिर पीछे हट गया। ये सिलसिला कुछ देर तक चलता रहा।
बड़ी दुविधा बनी।
रहट चले तो घोडा डरे - और रुके तो पानी बंद।
किसान ने कहा कि भाई - जैसे तुमने घोड़े को सवारी के लिए ट्रेंड (Trained) किया है वैसे ही इसे रहट या अन्य चीज़ों के शोर में ही पानी पीने के लिए भी ट्रेंड करो अन्यथा ये दुविधा हमेशा ही बनी रहेगी। इसे ठक-ठक में ही पानी पीना पड़ेगा।
इसी तरह हम भी अक़्सर ये सोचते हैं कि जीवन की ठक-ठक - हलचल और शोर शराबा बन्द होगा तभी हम ध्यान सुमिरन इत्यादि कर सकेंगे।
लेकिन यह हमारी भूल है।
जब तक जीवन है - संसार की हलचल - ये सुख दुःख का चक्र और आशा-निराशा का खेल तो चलता ही रहेगा।
हमें जीवन की हलचल और संसार के शोर शराबे में रह कर ही भक्ति - ध्यान एवं सुमिरन करना पड़ेगा तभी हम अपने सही मार्ग पर चल कर मंज़िल को पा सकेंगे अन्यथा कहीं सही और उपयुक्त समय की इंतज़ार में जीवन ही समाप्त न हो जाए।
Bahut hee uttam ji 🙏
ReplyDeleteVery true and practical Bhaisahib ji 👍🤲🤲🙏🏻
ReplyDeleteSatbachan ji
ReplyDeleteEko naam dhiyaye man Mere Karaz Tera hoye poora!
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