हम अक़्सर ये सोचते और समझते हैं कि हमें सब पता है - हम सब कुछ जानते हैं।
हम सोचते हैं कि हम सही हैं और बाकी सब ग़लत हैं।
हम अक़सर अपने मिलने वाले और आसपास के लोगों को गलत समझ कर उनके बारे में गलत राय बना लेते हैं।
किसी बात को देख कर या सुन कर - बिना उस पर अच्छी तरह विचार किये ही जल्दी से किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं
और उन पर बुरे इरादों का आरोप लगा देते हैं।
लेकिन हो सकता है कि हम ही गलत हों।
और कभी कभी ऐसा भी होता है कि जब हमें सच्चाई का पता चलता है - अपनी ग़लती का एहसास होता है तो बहुत देर हो चुकी होती है।
उनसे क्षमा मांगे का अवसर भी हाथ से निकल चुका होता है।
इसलिए - किसी के बारे में कोई राय बनाने और अपना फैसला सुनाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
इस विषय पर वैलेरी कॉक्स की लिखी हुई एक बहुत सुंदर हृदयस्पर्शी अंग्रेजी कविता पढ़ने को मिली - जो कल के ब्लॉग में पोस्ट भी की थी।
कुछ पाठकों ने उसके हिंदी अनुवाद के लिए अनुरोध किया है।
ओरिजिनल इंग्लिश कविता का अनुवाद कविता में तो नहीं हो सकता -
कम से कम मेरे लिए तो उस भाव को उसी सुंदरता के साथ कविता रुप में बांधना सम्भव नहीं है -
इसलिए उस कविता का सारांश प्रस्तुत है।
बिस्कुट -चोर
एक महिला हवाईअड्डे पर प्रतीक्षा कर रही थी
उसकी उड़ान में अभी कुछ घंटों का समय था ।
उसने हवाई अड्डे के स्टोर से एक किताब खरीदी
और साथ ही एक बिस्कुट का पैकेट भी खरीद लिया
और एक बेंच पर बैठ कर विमान की प्रतीक्षा करने लगी
बैंच पर बैठ कर किताब पढ़ते हुए
साथ ही रखे हुए पैकेट में से एक एक बिस्कुट निकाल कर खाने लगी।
वह किताब पढ़ने में तल्लीन थी - और अचानक उसने देखा
कि उसके बगल में बैठे हुए आदमी ने भी उस पैकेट में से एक बिस्कुट निकाला और खा लिया।
महिला को बहुत बुरा लगा मगर फिर भी उस ने कुछ कहना ठीक नहीं समझा।
लेकिन जैसे ही वो पैकेट में से एक बिस्कुट निकालती - वो आदमी भी एक बिस्कुट निकाल कर खा लेता।
वह किताब पढ़ती हुई - बिस्कुट खाती हुई बार बार अपनी घड़ी देख रही थी।
जैसे-जैसे मिनट बीतते जा रहे थे, उसका गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था
क्योंकि वह बिस्कुट-चोर उसका स्टॉक खत्म करता जा रहा था।
वो सोच रही थी कि यह आदमी कितना ढ़ीठ और बदतमीज़ है।
"अगर मैं एक अच्छी और सभ्य नारी न होती तो अभी इस के मूंह पर एक तमाचा जड़ देती "
तभी उसने देखा कि पैकेट में एक ही बिस्कुट बचा है।
वो सोचने लगी - देखें - अब वो क्या करता है?
उसकी हैरानी की हद न रही जब उसने देखा
कि उस बिस्कुट-चोर ने वह आखरी बिस्कुट भी उठा लिया
फिर उसने उस बिस्कुट के दो टुकड़े किए
और मुस्कुराते हुए आधा बिस्कुट महिला को पेश कर दिया।
"इस आदमी में इतनी हिम्मत? इतनी असभ्यता?"
ये सोच कर महिला ने एक झटके से वह आधा बिस्कुट उसके हाथ से छीन लिया
फिर अपना सामान समेटा और अपने विमान के गेट की ओर चल पड़ी।
उसने पीछे मुड़कर उस बदतमीज़ बिस्कुट-चोर को देखना भी अपना अपमान समझा।
बोर्डिंग शुरु हो गयी थी।
वह विमान में चढ़ी और अपनी सीट पर बैठ गई।
थोड़ी देर बाद किताब निकलने के लिए अपने बैग में हाथ डाला
तो आश्चर्य चकित हो गई - उस की ऑंखें खुली की खुली रह गईं
जो बिस्कुट का पैकेट उसने हवाई अड्डे पर खरीदा था
वो उसके बैग में उसकी आँखों के सामने पड़ा था !
"अगर मेरा पैकेट यहां मेरे बैग में है -
तो इसका मतलब है कि वो पैकेट तो उस आदमी का था।
उसके होठों से एक आह निकली - और सोचने लगी कि
असल में बिस्कुट-चोर वो नहीं - बिस्कुट-चोर तो मैं थी -
असभ्य वो नहीं - असभ्य तो मैं थी।
वो तो एक भला आदमी था जो बिना कुछ कहे -
अपने बिस्कुट मेरे साथ सांझा कर रहा था !"
लेकिन अब देर हो चुकी थी। विमान उड़ चुका था।
अब वो जा कर उस सज्जन को ढूंढ कर उस से माफ़ी भी नहीं मांग सकती थी।
उसका धन्यवाद भी नहीं कर सकती थी।
अपनी ग़लती के लिए पश्चाताप करते हुए वह बार बार यही सोचने लगी कि असभ्य, कृतघ्न, और चोर तो वह स्वयं थी।
उसकीआँखों में आंसू थे - लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था।
क्षमा मांगने का अवसर भी हाथ से निकल चुका था।
इसलिए - किसी के बारे में कोई राय बनाने में कभी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
" राजन सचदेव "
Very touching
ReplyDeletebilkul sahi kaha hai bhapa ji
ReplyDeleteVery touching story ji and Good lesson to learn. Thank you so much ji🙏
ReplyDeleteAnil Gambhir
Wah wah very touching story 🌹🌹🙏🙏
ReplyDeleteMost beautiful and thoughtful message
ReplyDelete"Biscuit chor" wonderful and good lesson to learn! Thanks & dhan Nirankar Ji
ReplyDelete🙏🌹👣🌹🙏
ReplyDelete🙏🏻🙏🏻🤲🤲
ReplyDelete🙏🙏
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