Wednesday, April 26, 2023

शेरऔर लोमड़ी

एक जंगल के किनारे पर एक साधू अपनी झोंपड़ी में रहता था। 
पास ही जंगल में एक लोमड़ी रहती थी जिसके आगे के दोनों पैर कटे हुए थे। 

अक्सर उसे पिछले दो पैरों पर घिसटते हुए देख कर वह साधू हैरान होता कि वो लोमड़ी अभी तक  जीवित कैसे है ? वह अपना भोजन कैसे ढूंढ़ती होगी? 
दौड़ना तो क्या - वो तो चल भी नहीं सकती - वो शिकार कैसे करती होगी? 
क्योंकि लोमड़ी घास-फूस या पत्ते तो खा नहीं सकती और कटी हुई टांगों के कारण वो शिकार भी नहीं कर सकती।  उसे भोजन कैसे मिलता होगा ?

एक दिन, उसने उस लोमड़ी को अपने दो पैरों पर खुद को घसीटते हुए - रेंगते हुए देखा तो उसका पीछा करके देखना चाहा कि वह क्या और कैसे खाएगी। 

तभी अचानक उसने एक शेर को उस तरफ आते हुए देखा और वह भाग कर झाड़ियों में छुप गया। 
शेर एक ताज़ा मारे हुए जानवर को घसीट कर ला रहा था। 
वहीं पास में एक खुली जगह देख कर शेर जमीन पर बैठ कर अपना लाया हुआ शिकार खाने लगा। 
जितना खा सकता था उसने खाया - और बाकी वहीं छोड़ कर चला गया। 
शेर के जाने के बाद लोमड़ी धीरे धीरे रेंगती हुई गई और बचा हुआ खा कर उसने अपना पेट भर लिया।

दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ। उसी शेर के द्वारा लोमड़ी को फिर से भोजन मिल गया।
वो आदमी कुछ दिन देखता रहा। वह शेर रोज़ अपने मारे हुए शिकार के साथ वहां आता - जितना खा सकता - खाता और बाकी उस लोमड़ी के लिए छोड़ कर चला जाता। 

वह साधू सोचने लगा: "देखो - ईश्वर किस तरह प्रति दिन इस असहाय लोमड़ी को उस शेर के द्वारा भोजन भेजता है। 
अगर इस लोमड़ी की इस रहस्यमय तरीके से देखभाल हो रही है - 
अगर वह महान शक्ति इस लोमड़ी को इस रहस्यमय तरीके से भोजन प्रदान करती है - इसका ध्यान रखती है तो मुझे भी कुछ करने की ज़रुरत नहीं है।  
यदि इस के भोजन का प्रबंध उस अदृश्य महान शक्ति द्वारा किया जा रहा है तो अवश्य ही वह मेरे लिए भी मेरा दैनिक भोजन प्रदान करेगा।
अब आज से मैं भी सिर्फ आराम करुंगा और इस लोमड़ी की तरह मेरे लिए भी सर्वशक्तिमान ईश्वर मेरा दैनिक भोजन किसी न किसी तरीके से उपलब्ध करवा देंगे। "

ये सोच कर वह अपनी झोंपड़ी के एक कोने में बैठ गया - और प्रार्थना करते हुए अपने भोजन की प्रतीक्षा करने लगा।
लेकिन कुछ देर बीतने पर भी कुछ नहीं हुआ। भोजन नहीं मिला।
पूरा दिन प्रार्थना करते हुए और भोजन की प्रतीक्षा करते हुए बीत गया।
मगर फिर भी कुछ नहीं हुआ। 
कहीं से भी उसके लिए भोजन नहीं आया। 

लेकिन उसने धैर्य नहीं खोया। 
उसे विश्वास था कि परमेश्वर एक दिन उसकी प्रार्थना ज़रुर सुनेंगे और उसे भोजन प्रदान करेंगे।
कई दिन बीत गए। 
लेकिन कुछ नहीं हुआ।
पर फिर भी उसने विश्वास नहीं खोया - उसे उम्मीद थी कि भगवान जल्द ही उसे भोजन प्रदान करेंगे।दिन बीतते गए - भोजन न मिलने से उसका शरीर कमज़ोर होने लगा। वो दुर्बल होता चला गया। 
लेकिन किसी भी रहस्यमय तरीके से उस के पास भोजन नहीं पहुंचा। 

एक दिन जब वह भूख से बेहाल हो रहा था तो उसे एक आवाज सुनाई दी - 
"अरे मूर्ख - तुमने देख कर भी सत्य को न देखा - न समझा !
तुम भूल गए और रास्ते से भटक गए - तुमने ग़लत मार्ग चुन लिया  - 
सत्य को देखो और समझने को कोशिश करो !
उस असहाय विकलांग लोमड़ी की नकल करने की बजाय, तुम्हें उस शेर का अनुसरण करना चाहिए था - जो न केवल अपना भोजन प्राप्त करने के लिए मेहनत करता था - बल्कि दूसरों को भी - किसी असहाय और विकलांग को भी भोजन प्रदान कर रहा था।"

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अतीत में - मैं ऐसी प्रार्थना किया करता था -  हे प्रभु - कृपा करो कि संसार में कोई भूखा नंगा न रहे - कोई बेघर न हो। 
सब पर कृपा करो -- भूखों को खाना दो - नंगों को वस्त्र प्रदान करो  - और बेघरों को आश्रय दो।
और प्रार्थना करने के बाद अपने जीवन में व्यस्त और मग्न हो जाता था।

अब मैं ऐसी प्रार्थनाओं और गीतों की जगह प्रभु से सही मार्गदर्शन और शक्ति के लिए प्रार्थना करता हूं कि जो मैं कर सकता हूं वह करुं - अपनी सामर्थ्य के अनुसार किसी का भला कर सकूं।

पहले मैं सोचता था कि हमारी प्रार्थनाएँ परिस्थितियों को बदल देंगी - केवल अरदास करने से ही परिस्थितियां बदल जाएंगी और सब ठीक हो जाएगा। 
लेकिन अब ये बात समझ आई है कि अरदासें और प्रार्थनाएँ परिस्थिति नहीं - बल्कि हमें और हमारे विचारों को बदलने में सहायता करती हैं।
हमें वो काम करने चाहिए जो हम कर सकते हैं। 
अपनी सामर्थ्य के अनुसार हमें अवांछित और कठिन परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करनी चाहिए - केवल बातें ही नहीं - बल्कि जो हम कर सकते हैं वो करने का प्रयत्न करना चाहिए ।

लेकिन जहां हम असमर्थ हों - जो हम नहीं कर सकते - 
या जिन परिस्थितियों को बदलना सम्भव न हो - जो हमारी सामर्थ्य से बाहर हों - 
उन्हें स्वीकार कर लेना ही अरदास और प्रार्थना का असल उद्देश्य है।
                                           ' राजन सचदेव '  

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