मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्
मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे ॥
(यजुर्वेद ३६/१८)
अर्थात :
सब मुझे मित्रता (प्रेम) की दृष्टि से देखें
मैं सबको मित्रता की दृष्टि से देखूं
हर प्राणी सब को मित्रता एवं प्रेम की दृष्टि से देखे
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