Monday, July 31, 2023

महात्मा दिलवर जी की याद में

                                     महात्मा दिलवर जी की याद में 
                                     लेखक - अमित चव्हाण - मुंबई 

"वो मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते है ? मै बहुत दुःखी हु, आखिर मैने उनका क्या बिगाड़ा है?"

किसी घटना और व्यक्ति के शब्द सुनके मेरा ह्रदय बहुत पीड़ा महसूस कर रहा था। अक्सर पीड़ा, क्रोध में रूपांतरित हो ही जाती है, ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हो रहा था।

मन रो रहा था, और मन का विद्रोह उमड़ कर बाहर आ रहा था । आख़िर मेरी कोई गलती नही , मैंने उनके साथ शायद कुछ बुरा बर्ताव भी नही किया फिर भी मेरे बारे में वो ऐसा मत क्यों बना रहे है?

इतने सारे सवाल मन मे थे, शायद चेहरे पर भी वो दिख ही गए होंगे, और दिलवर जी ने सहज में ही मुझे समझाना शुरू किया...

"अमित जी, मैं आपकी तरह जवान था तब मैं आपसे भी ज्यादा असंतोष से भर जाता था, जैसे उबल उबल ही जाता था" 
(मुझे मन ही मन यह बात पता थी कि दिलवर जी केवल मुझे शांत करने के लिए अपने आपको ऐसे पेश कर रहे है)

आगे उन्होंने समझाना शुरू किया, "अमित जी, अभी समय है मोटी चमड़ी के बन जाओ, सबकी बात सिर्फ सुननी ही नही, अगर कुछ आपके बारे में गलत भी बोल रहा है, तो उसे सहना भी पड़ेगा"

"लेकिन, लेकिन फिर लोग मुझे गलत समझेंगे, वो मेरे बारे में क्या धारना बना रहें है, देखो ना?" मैंने जल्दी-जल्दी में उनको यह प्रश्न पूछ लिया ...

दिलवर जी ने मुझे बहुत प्रेम से देखा और कहा, "अमित जी आपकी जवाबदेही निरंकार से है, अपने आप से है, आपको किसी को कोई जवाब देने से पहले अपने आपको पूछना है, की क्या मेरे भाव सही थे, यदि जवाब हाँ है, तो उस भाव को निरंकार में डाल दो, इस पर विश्वास तो रक्खो"

मुझे इन शब्दों से बहुत धीरज प्राप्त हुआ, आत्मबल भी बढ़ा और इसका भी एहसाह हुआ कि मेरा विश्वास तो छोटी-छोटी बातों से भी डोल जाता है किन्तु दिलवर जी बड़े से बड़े तूफान को भी बहुत सहजता से मुस्कुराकर सहन कर जाते थे। शारिरिक पीड़ा हो, उतार चढ़ाव से भरी तन-मन-धन की परिस्थितिया हो, उन्होंने कभी भी उन परिस्थितियों को control करने की कोशिश नही की।
हाँ, जो बातें उनके control से बाहर थी, उन्हें सहजता से स्वीकार किया और साथ ही यह बात भी उतनी ही सच है कि वो उन कर्तव्यों से कभी पीछे  नही हटे, जिनको निभाने की जिम्मेदारी उनके हिस्से आयी.

समर्पण और कर्मनिष्ठता का समतोल थे, आ. दिलवर जी, आज 30 जुलाई 2023 को उनका दूसरा स्मृतिदिन है किंतु आपके यह प्रेरक प्रसंग हर दिन प्रेरणा देते रहेंगे।
                                                     लेखक - अमित चव्हाण - मुंबई 
                           

Saturday, July 29, 2023

जिस की जैसी धारणा

कौन जानता है कि वास्तव में कोई कैसा है  
जैसी जिस की धारणा - उसके लिए वैसा है 
           ~~~~~~~~~~~~~~~~~

किसी की वास्तविकता को कौन जानता है?
कौन जानता है कि असल में कोई कैसा है?
हर व्यक्ति को हम अपनी-अपनी धारणा के अनुसार देखते और समझते हैं।
जैसी हमारी उनके प्रति धारणा है - वैसे ही वे हमें दिखाई देते हैं।

अक़्सर हम अपने मन में हर व्यक्ति की एक ख़ास छवि बना लेते हैं 
और एक बार जो छवि हमारे मन में बन गयी -
वे हमें सदैव वैसे ही प्रतीत होते हैं।             
                                                 " राजन सचदेव "


Friday, July 28, 2023

वो सामने होते हैं तो खुलती नहीं ज़ुबां

हाल अपने दिल का हम कैसे करें बयां
वो सामने होते हैं तो खुलती नहीं ज़ुबां 

फिर ये ख्याल भी मगर आता है ज़ेहन में
बिन कहे ही जानते हैं सब वो मेहरबां

बस यही ख्वाहिश है 'राजन ये ही इल्तेज़ा
इस एक से जुड़ा रहे साँसों का कारवां
                           ~~~~
पर एक बात सोचने की ये भी है 'राजन
इस एक को हम छोड़ के जाएंगे भी कहां?
                 " राजन सचदेव "

How to convey the feelings? Haal apnay dil ka

Haal apnay dil ka ham kaisay karen bayaan 
Vo saamnay hotay hain to khulti nahin zubaan 

Phir ye khyaal bhi magar aata hai zehan mein 
Bin kahay hee jaantay hain sab vo Meharbaan 

Bas yahi khwaahish hai 'Rajan' ye hee ilteza 
Is ek say judaa rahay saanson ka kaarvaan 
                              ~~~~~~
Par ek baat sochnay kee ye bhee hai 'Rajan'
Is ek ko ham chhod kay jayengay bhee kahaan?
                                             " Rajan Sachdeva "


         English Translation

How can I convey the feelings of my heart?
Whenever they are in front of me, my tongue becomes speechless.

But then - a thought comes to my mind.
That without even being told, the Benevolent One already knows everything. 
(There is no need to say anything)

Now - the only desire - the only plea is left is this -
That the caravan of my breaths stays connected to the Omnipresent Almighty One.

Then again, there is another thing to think about - 
Where else can we go by leaving the 'One'?
(We can not - because nothing is outside this Absolute One) 
                 "Rajan Sachdeva "

Wednesday, July 26, 2023

हर शंका का समाधान नहीं होता

हर शंका का कोई समाधान नहीं होता 
सत्य के लिए कोई प्रमाण नहीं होता 

घाव शब्दों के बहुत ही गहरे होते हैं 
अपशब्दों सा तीखा कोई बाण नहीं होता 

प्रभु  कभी किसी की परीक्षा नहीं  लेते 
गुण अवगुण जो देखे वो भगवान नहीं होता 

सार जीवन का तो अनुभव से ही मिलता है 
केवल बातों से इस का अनुमान नहीं होता 

एक दिन तो सब यहीं पे छोड़ जाना है 
इस बात से अनजान कोई इन्सान नहीं होता 

विनम्रता ही विद्वता का लक्षण है  'राजन '
पोथी पढ़ लेने से कोई विद्वान नहीं होता 
                      " राजन सचदेव " 

Every doubt may not have answer-- Har Shankaa ka Samaadhaan nahin

Har Shankaa ka koyi Samaadhaan nahin hota 
Satya kay liye koyi Pramaan nahin hota 

Ghaav Shabdon kay bahut hee gehray hotay hain 
Upshabdon saa teekhaa koyi Baan nahin hota 

Prabhu kabhi kisi ki Pareekshaa nahin letay
Gun-Avgun jo dekhay vo Bhagvaan nahin hota 

Saar jeevan ka to anubhav say hee miltaa hai 
Keval baaton say is ka anumaan nahin hota 

Ek din to sab yaheen pay chhod jaana hai 
Is baat say anjaan koyi insaan nahin hota 

Vinamrataa hee Vidvataa ka lakshan hai 'Rajan'
Pothi padh lenay say koyi Vidvaan nahin hota
                               " Rajan Sachdeva "

                             Translation

Every doubt may not have an answer or solution.
(On the other hand)
Truth does not require any evidence or proof.

The wounds caused by words are always too deep
There is no arrow as sharp as bad or foul words

God never tests anyone.
One who sees merits and demerits - is not God.

The essence of life comes from experience.
It's not knowable or predictable from mere dialogues.

One day everyone has to leave this world.
No one is unaware of this fact of life. 

Humility is a sign of wisdom and scholarship.
One does not become a scholar just by reading a holy book.
                                                      "Rajan Sachdeva "

Shankaa             =  Doubt 
Samaadhaan     =  Solution, Answer 
Satya                  =  Truth
Pramaan           = Evidence, Proof
Ghaav                =  Wound
Upshabdon      =  Bad, Foul words 
Baan                 = Arrow
Pareekshaa      = Test, Exam
Saar                  = Essence 
Anumaan        = Experience 
Vinamrataa    = Humility, Humbleness, Politeness
Vidvataa         =  Wisdom 
Lakshan         = Sign, Characteristic, Trait, Attribute, Feature 
Pothi              =  Book, Holy Religious Book
Vidvaan         =   Wise, Scholar,  

Thursday, July 20, 2023

Radhakrishna Rao - Receives Nobel Prize at the age of 102


C Radhakrishna Rao was born on 10 September 1920 - to a Telugu family in Hadagali, Karnataka.
His schooling was done in Andhra Pradesh.
He retired at the age of sixty and went to live with his daughter in America and his grandchildren.
At the age of 62, he became a professor of statistics at the University of Pittsburgh, and at the age of 70, he became the head of the department at the University of Pennsylvania.
US citizenship at the age of 75.
National Medal For Science at the age of 82 - a White House honor.
Now, at the age of 102, he received the Nobel Prize in Statistics.

Currently, he is a professor emeritus at Pennsylvania State University and Research Professor at the University at Buffalo. Rao has received many honors. He was awarded the title of Padma Bhushan by the Indian Government (1968) and Padma Vibhushan in 2001.

At the age of 102, receiving a Nobel while in good physical condition is probably the first example - An event that should be considered a moment of pride by all of us, especially Indians!
                                                          Taken from the Web 

Wednesday, July 19, 2023

Sad Old things - Dukh Bhari Baaten

Dukh bhari baaten puraani bhool jaaiye
Meethi meethi yaadon say dil ko behlaaiye

Mushkilen maazi ki soch kay dukhi na hon 
Aanay waalay vaqt ko "Rajan ' Sajaaiye
     ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Forget the sad things that happened in the past
Cherish the old sweet memories in your heart 

Don't be sad thinking about the old hardships.
Try to make the future instead - bright and luminous. 
                               " Rajan Sachdeva "

Maazi      =  Past

दुःख भरी बातें

दुःख  भरी  बातें  पुरानी  भूल  जाइए 
मीठी मीठी यादों से दिल को बहलाईए 

मुश्किलें माज़ी की सोच के दुखी न हों 
आने वाले वक़्त को  'राजन ' सजाईऐ 
                              " राजन सचदेव "

माज़ी         =  अतीत, बीता हुआ समय 

Tuesday, July 18, 2023

Eating Free in a Restaurant

A man used to come to a restaurant every day - 
and after eating - he would take advantage of the crowd and leave quietly - without paying.

One day while he was eating - another customer went to the restaurant's owner and told him that this man would take advantage of the crowd and leave without paying the bill.
The owner said with a smile - 
Don't worry - if he leaves without paying, then let him go. We will talk about it later.

As usual, after eating - the man looked around - took advantage of the crowd, and went out quietly.
After he left, the gentleman asked the restaurant's owner - 
Why did you let that man go without stopping him - without saying anything?

The owner replied that you are not alone.
Many people have seen him doing this and told me about it.
I see him sitting in front of the restaurant every day - 
and when he sees that the restaurant is crowded - 
he comes in - eats, and quietly leaves.
But I always ignored it - never stopped him - never confronted or tried to insult him.
Do you know why?
I feel that my restaurant is probably crowded only because of him.
He is probably praying every day - sitting in front of my restaurant - that soon this restaurant be so crowded that he can sneak in - and leave discreetly after eating - without anyone noticing it.
I've noticed that ever since this guy started sitting and waiting in front of my restaurant - 
my restaurant is always crowded.
I believe that this crowd is because of him - it is because of his prayers.
That's why I don't stop him - don't say anything.
In fact - I thank him in my heart and hope he keeps coming every day like this.

Many times we think and feel proud that we are feeding someone.
But who knows - maybe we are eating because of their fate - 
Because of their prayers and good wishes. 

रेस्टोरेंट में मुफ़्त खाना

एक रेस्टोरेंट में एक व्यक्ति रोज़ आता था और खाना खाने के बाद भीड़ का लाभ उठाकर चुपके से बिना पैसे दिए निकल जाता था। 
एक दिन जब वह खाना खा रहा था तो एक अन्य ग्राहक ने चुपके से आकर दुकान के मालिक को बताया कि यह भाई भीड़ का लाभ उठाएगा और बिना बिल चुकाए निकल जाएगा।

उसकी बात सुनकर रेस्टोरेंट का मालिक मुस्कराते हुए बोला – 
कोई बात नहीं - अगर वो बिना पैसे दिए निकल जाए तो उसे जाने देना।
हम बाद में बात करेंगे। 
हमेशा की तरह भाई ने खाना खाने के बाद इधर-उधर देखा और भीड़ का लाभ उठाकर चुपचाप बाहर निकल गया। 
उसके जाने के बाद, उस सज्जन ने रेस्टोरेंट के मालिक से पूछा कि आपने उस व्यक्ति को बिना रोके - बिना कुछ कहे क्यों जाने दिया?

मालिक ने जवाब दिया कि आप अकेले ही नहीं हो - कई लोगों ने उसे ऐसा करते हुए देखा है और मुझे उसके बारे में बताया भी है। 
मैं रोज़ देखता हूँ कि वह रेस्टोरेंट के सामने बैठा रहता है और जब देखता है कि रेस्टोरेंट में काफी भीड़ हो गई है - 
तो वह आकर खाना खा कर चुपके से बाहर निकल जाता है। 
मैंने हमेशा ये देख कर नज़रअंदाज़ किया और कभी उसे रोका नहीं - 
उसे कभी पकड़ा नहीं और न ही कभी उसका अपमान करने की कोशिश की। 
जानते हो क्यों?
क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि मेरी दुकान में इतनी भीड़ शायद इस भाई की वजह से ही होती है। 
वह रोज़ मेरे रेस्टोरेंट के सामने बैठे हुए प्रार्थना करता है - कि जल्दी से इस रेस्टोरेंट में इतनी भीड़ हो जाए कि वो चुपके से अंदर आए - 
खाना खा कर चुपके से बाहर निकल जाए - और किसी को पता न चले। 
और मैंने देखा है कि जब से ये आदमी मेरे रेस्टोरेंट के सामने आकर बैठने लगा है - मेरे रेस्टोरेंट में हमेशा भीड़ रहने लगी है। 
मैं ये समझता हूँ कि ये भीड़ उसकी वजह से ही है - उसकी प्रार्थना के कारण ही है। 
इसलिए मैं उसे रोकता नहीं - कुछ कहता नहीं। 
बल्कि अपने दिल में उसका धन्यवाद करता हूँ और आशा करता हूँ कि वो रोज़ इसी तरह आता रहे। 

कई बार हम सोचते हैं - घमंड करते हैं कि हम किसी को खिला रहे हैं।  
लेकिन हो सकता है कि वास्तव में हम ही उस के भाग्य के कारण खा रहे हों!

Monday, July 17, 2023

Forget the Troubles

Forget the things that made you sad
Remember the moments that made you glad 

Forget the troubles that passed away. 
Count the blessings that come each day



A mouse in a jar full of grains

A mouse was placed at the top of a jar filled with grains.
He was too happy to find so much food around him. 
Now he doesn't need to run around searching for food.
He thought - he can happily live his life now without any effort. 

However, in a few days, all the food was finished and he reached the bottom of the jar. 
Now he was trapped and could not even come out of it. 
He has to depend solely on someone to put more grains in the jar for him to survive. 
He may not even get the food of his choice.
To survive, he has to eat whatever he is given. 
He cannot even choose his food anymore.
                   ~~~~~~~~~~~~~~~~
Here are four lessons to learn from this story:

1) Short-term pleasures can lead to long-term traps
2) If things are coming easy and you are getting comfortable, you are trapped in survival mode.
3) When you are not using your skills, you will lose more
than your skills. You lose your Choices as well.
4) The right Action has to be taken at the right time or else you will lose whatever you have.
 
So, think twice when someone offers something for free - 
such as free food, water, housing, power, and other such commodities of life. 

Sunday, July 16, 2023

Ek mehal tha Raja ka ik Raj kumari thi

Ek mehal tha Raja ka ik Raj kumari hoti thi 
Us Raja ko apni Prajaa jaan say pyaari hoti thi  

Baba kehtay thay ye khandahar Sita-Ram ka mandir tha 
Us mandir ki ek pujaaran Ram Dulaari hoti thi 

Pushpa aur Radha bhi meri behanon jaisi hoti thi 
Mangal Das aur mera beta - gehari yaari hoti thi 

Ek diye ki lau mein Baba 'Meer aur Ghalib padhtay thay 
Ek angithee hoti thi aur ik almaari hoti thi 

Shaam dhalay ik lawn mein saaray baith kay chaaye peetay thay 
Maiz hamaara ghar ka tha - kursi sarkaari hoti thi 

Ek kuaan meethay paani ka aur ik boodha Bargad tha 
Ek mohabbat ka gehavaara basti saari hoti thi 

Meethay geeton ki vo risna meethi dhun aur meethay bol 
Poorn-Maashi par aangan mein shab-bedaari hoti thi 

Ab jo Mulla waiz karay to khauf saa aane lagtaa hai 
Mohan-Das say Naaten sun kar riqqat taari hoti thi

Rishton ka ehsaas lahoo kay andar rachtaa-bastaa tha 
Kab aesi nafsaa-nafsi aur maara-maari hoti thi? 
                              " Writer: Jaana Malik " 

Khandahar   = Ruins 
Pujaaran    = Lady Preist
Maize  == Table
 kursi        =  Chair
Kuuaan    = Well
Bargad  === Banyan tree 
Gehvaara = Place, cradle 
Risna   --- Ooze 
Poorn-Maashi  = full moon, the night of the full moon, the fourteenth night of the lunar month
Bedaari - Awake
Shab-bedaari = waking all night 
Waiz = Preacher, Preaching, 
khauf = Fear 
Na'at =  Songs in praise of Prophet Mohammad 
Riqqat = Wet eyes with emotions, sentiments 
Riqqat Taari hoti thi = Having tears in eyes - Being sentimental 
Nafsaa-Nafsi = Selfishness, Thinking of oneself only 

एक महल था राजा का इक राज-कुमारी होती थी

एक महल था राजा का इक राज-कुमारी होती थी
उस राजा को अपनी प्रजा जान से प्यारी होती थी

बाबा कहते थे ये खंडहर सीता-राम का मंदिर था
उस मंदिर की एक पुजारन राम-दुलारी होती थी

पुष्पा और राधा भी मेरी बहनों जैसी होती थीं
मंगल-दास और मेरा बेटा - गहरी यारी होती थी 

एक दिए की लौ में बाबा 'मीर' और 'ग़ालिब' पढ़ते थे
एक अँगेठी होती थी और इक अलमारी होती थी

शाम ढले इक लॉन में सारे बैठ के चाय पीते थे
मेज़ हमारा घर का था कुर्सी सरकारी होती थी

एक कुआँ मीठे पानी का और इक बूढ़ा बरगद था
एक मोहब्बत का गहवारा बस्ती सारी होती थी

मीठे गीतों की वो रिस्ना मीठी धुन और मीठे बोल
पूरन-माशी पर आँगन में शब-बेदारी होती थी

अब जो मुल्ला वाइ'ज़ करे तो ख़ौफ़ सा आने लगता है
मोहन-दास से ना'तें सुन कर रिक़्क़त तारी होती थी

रिश्तों का एहसास लहू के अंदर रचता-बस्ता था
कब ऐसी नफ़सा-नफ़सी और मारा-मारी होती थी?

                             " लेखक:  जानाँ मलिक "

बेदारी - जागृत  
शब-बेदारी = जागती हुई रात 
वाइ'ज़   =  धर्मोपदेश, प्रचार, धार्मिक या नैतिक उपदेश, प्रवचन देने वाला
ख़ौफ़   =   डर 
ना'तें    =  पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद की तारीफ़ में गाए जाने वाले गीत praises of Prophet Mohammad
रिक़्क़त  =  ऑंखें भर आना - दिल भर आना - आँखों में आंसू आना 
रिक़्क़त तारी होती थी  =  दिल भर आता था - आँखों में आंसू आ जाते थे 
नफ़सा-नफ़सी   =  आपा-धापी, सब को अपनी अपनी पड़ना - सिर्फ अपने हितों और आवश्यक्ताओं के बारे में सोचना, केवल अपनी फ़िक्र करना 

Saturday, July 15, 2023

Whose side will God take? kis ka paksh lengay bhagvaan?

             Please scroll down for Roman script and English translation

Kaamptaa, Thithurtaa saa koyi 
Apni jhompdi kay ek konay mein dubkaa - 
intzaar kar rahaa tha - 
            ki kab thamegi ye baarish 

Jis men doob chukay thay us kay saaray Sapnay - Armaan 
Choolha, Roti aur Makaan - Saaray ghar ka Saamaan 

Aur saamnay ki ek mehal-numaa kothi say 
jor jor say aa rahi thin, aavaazen 
Barso re megha - megha, barso re - megha, 
Zaraa jhoom kay barso, aur jhoom kay barso 

Aur vo soch raha thaa ki - 
          Kis ka paksh lengay Bhagvaan? 
                         By:  Neeraj Neer 
         ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
                          English Translation

Someone - huddled in a corner of a hut - 
Shivering - Waiting - 
Thinking - 
             "When will this rain stop?"

Rain - in which all his dreams and desires were drowned -
Chulha*, bread, and house; all household items (were drowned).

and from a large mansion in front of him -
Loud voices were coming - 
Barso re Megha, Megha - Barso re Megha
Shower a little more - and more again
with thunder and joy - shower some more rain.

And he was Wondering  -
                Whose side will God take?
  
                                         (English Translation: Rajan Sachdeva) 

*Chulha =  a small handmade wooden stove 

किसका पक्ष लेंगे भगवान्?

कांपता, ठिठुरता सा कोई
अपनी झोपडी के एक कोने में दुबका
इंतज़ार कर रहा था - कि कब थमेगी ये बारिश

जिसमें डूब चके थे उसके सारे सपने, अरमान
चूल्हा, रोटी और मकान; सारे घर का सामान

और सामने की एक महलनुमा कोठी से
जोर जोर से आ रही थी, आवाज़ें 
बरसो रे मेघा, मेघा, बरसो रे, मेघा,
जरा झूम के बरसो, और झूम के बरसो

और वो सोच रहा था, कि
               किसका पक्ष लेंगे भगवान्?
                                - नीरज 'नीर'
                                        (फेसबुक से साभार)

Do not live Half-Life

                            Half-Life
                       by: Kahlil Gibran

Do not love half-lovers
Do not entertain half friends
Do not indulge in works of the half-talented
Do not live half a life and do not die a half-death

If you choose silence, then be silent
When you speak, do so until you are finished
Do not silence yourself to say something
And do not speak to be silent

If you accept, then express it bluntly
Do not mask it
If you refuse, then be clear about it
for an ambiguous refusal
is but a weak acceptance

Do not accept half a solution
Do not believe half-truths
Do not dream half a dream
Do not fantasize about half hopes

Half a drink will not quench your thirst
Half a meal will not satiate your hunger
Half the way will get you nowhere
Half an idea will bear you no results

Your other half is not the one you love
It is you - in another time
yet in the same space
It is you when you are not

Half a life is a life you didn’t live
A word you have not said,
A smile you postponed,
A love you have not had,
A friendship you did not know
To reach and not arrive,
Work and not work,
Attend only to be absent 

What makes you a stranger to them
closest to you and they strangers to you?
The half is a mere moment of inability
but you are able for you are not half a being.
You are a whole that exists
to live a life, not half a life. 
     By: Kahlil Gibran

Friday, July 14, 2023

याद आता है मुझे रेत का घर बारिश में

याद आता है मुझे रेत का घर बारिश में
में अकेली थी सर-ए-राहगुज़र बारिश में

वो अजब शख़्स था हर हाल में ख़ुश रहता था
उस ने ता-उम्र किया हँस के सफ़र बारिश में

तुम ने पूछा भी तो किस मोड़ पे आ कर पूछा
कैसे उजड़ा था चहकता हुआ घर बारिश में

इक दिया जलता है कितनी भी चले तेज़ हवा
टूट जाते हैं  कई एक शजर  बारिश में

आँखें बोझल हैं तबीअ'त भी है कुछ अफ़्सुर्दा
कैसी अलसाई सी लगती है सहर बारिश में
                             " साहिबा शहरयार "

ता-उम्र =   सारी  उम्र - आयु पर्यन्त 
शजर    = पेड़, दरख़्त 
अफ़्सुर्दा  = उदास 
सहर      =  सुबह 

मतभेद बेशक हो - पर मनभेद नहीं

अक्सर ऐसा होता है कि जब हम हृदय से किसी का समर्थन करने लगते हैं - 
एक बार अपने मन में उन्हें अच्छा मान लेते हैं 
तो उन की हर अच्छी या बुरी - ठीक या ग़लत  बात का समर्थन करने लगते हैं। 

और अगर हम किसी के लिए कोई ग़लत राय बना लेते हैं 
जिनके लिए हमारे मन में किसी कारण से ग़लत धारणा बन जाती है  
तो हम बिना सोचे विचारे ही उनकी हर बात और हर काम का विरोध करने लग जाते हैं। 

वास्तव में समर्थन या विरोध तो केवल विचारों का होना चाहिये 
किसी विशेष व्यक्ति या किसी विशेष समाज का नहीं 

विचारों में मतभेद हो सकता है -
मत-भेद होने में कोई बुराई नहीं  - 
लेकिन मन-भेद नहीं होना चाहिए। 
मन में किसी के लिए ग़लत धारणा क़ायम कर के हमेशा उनकी निंदा करते रहना  -
और उनके हर काम का विरोध करते रहना ठीक नहीं।  
पूर्ण रुप से किसी का समर्थन या विरोध करने से पहले वर्तमान स्थिति - मौजूदा हालात का हर तरह से  गहन और निष्पक्ष विश्लेषण करने का प्रयास करना चाहिए।
                                   " राजन सचदेव "

Difference in opinions - Not in hearts

Usually, when we start liking someone - 
once we are convinced about their goodness in our hearts and minds - 
we start admiring and supporting them for whatever they say or do - good or bad - right or wrong.

And if we form a wrong opinion about someone - 
we get a not-so-good impression for some reason - 
then we start opposing their every word and every action - without even thinking or analyzing.

Support or opposition should be only to the ideas -
Not of any particular person - group, or society.
There can be a difference of opinions.
Everyone has their own views and ideas. 
There's nothing wrong with having different opinions, views, and thoughts.
But there should not be any hatred or hostility in the heart.
It's not good to keep condemning someone and opposing their every action all the time - just because we have formed a wrong impression of them in our minds. 
Before we oppose or support someone unconditionally, we should analyze each situation thoroughly and unbiasedly. 
                       "Rajan Sachdeva  "

Thursday, July 13, 2023

From dust, we come - मिट्टी से हम आते हैं

From dust, we come -  and to dust, we go 
That is why I don't dust - 
Because it might be someone I know 
                     😄😄

 मिट्टी से हम आते हैं -
और मिट्टी में मिल कर मिट्टी ही बन जाते हैं 
ये सोच कर मैं अपने घर की मिट्टी साफ़ नहीं करती 
कि हो सकता है कि ये मेरा कोई संबन्धी या मित्र ही हो 
                   😄😄

अगर धूल झाड़नी ही है -

अगर धूल झाड़नी ही है - तो झाड़िए 
लेकिन क्या इस से यह बेहतर नहीं होगा
कि कोई चित्र बनाएं - या कोई पत्र लिखें 
कोई केक बनाएं  - या कुछ बीज ही बो दें -
इच्छाओं और ज़रुरतों के अंतर को समझने की कोशिश करें 

अगर धूल झाड़नी ही है - तो झाड़िए 
लेकिन याद रहे - कि बहुत समय नहीं बचा है 
तैरने के लिए नदियाँ - चढ़ने के लिए पहाड़ 
सुनने के लिए संगीत, और पढ़ने के लिए किताबें
संजोने के लिए दोस्त और जीने के लिए जीवन
(कितना कुछ बाकी है अभी करने के लिए)

अगर धूल झाड़नी ही है - तो झाड़िए 
लेकिन देखिए - कि बाहर भी एक दुनिया है
आँखों में चमकता सूरज - बालों को छूती हवा 
ये बर्फ़ की झड़ी - ये बारिश की बौछार -
हो सकता है फिर देखने को न मिलें   

अगर धूल झाड़नी ही है - तो झाड़िए 
लेकिन इस बात को भी ध्यान में रखिए 
कि एक दिन बुढ़ापा आ जाएगा 
और बुढ़ापा कभी दयालु नहीं होता 
फिर जब तुम संसार से जाओगे 
 (एक दिन जाना ही पड़ेगा)
तो स्वयं भी धूल बन कर - 
कुछ और धूल ही तो यहां छोड़ जाओगे 

             इंग्लिश में मूल लेखक: रोज़ मिलिगन
                    अनुवाद: राजन सचदेव 

Wednesday, July 12, 2023

Body is a chariot & Mind is the driver

There is a beautiful parable - a deeply meaningful analogy in ancient Indian Hindu Scriptures -
The Atman - the Self is like a king who wants to roam around and explore his kingdom.
He sits on his chariot and asks the driver to take him to different parts of the empire.
He gives control of his chariot to the driver - to take the chariot wherever he wants to go and sits in the back to enjoy the ride.

In this analogy - the body is like a chariot on wheels - which is being pulled by multiple horses.
Gyan-Indriyas - the senses (eyes, ears, nose, tongue, and skin) are the horses, 
and Karm-Indriyaas - the organs of action - are the wheels of this chariot.

The mind is the driver of this chariot - which controls the horses (senses) with the ropes of thoughts, desires, beliefs, perceptions, and concepts.

The Self - the Atman sits in the back enjoying the ride - simply witnessing everything - the panorama and all sorts of incidents happening on the way.

The driver - the mind chooses the route it wants to take.
Horses (senses) move in the direction in which the mind points them to go by pulling the strings of its thoughts and desires.
Wherever the horses (senses) go, they pull the wheels - the Karm-Indriyas (organs of action) in the same direction.
Thus, the chariot drives along the different roads of the journey of life in the kingdom of this world.
Since the mind is in control of the chariot - of the horses and the wheels - it can take them in any direction it wants to.

However, when the mind is influenced and guided by the Gyana - the intellect - it controls them with the ropes of Gyan and wisdom and leads them to the right path.
In the Bhagavad Gita, Lord Krishna says -
Beyond the senses is the mind - and beyond the mind is the intellect.
Meaning - the senses can be controlled by the mind and the mind can be controlled by the intellect.

In this way, through knowledge and wisdom - the mind - the driver, can take the silent rider - the king, the Atman - on the road of peace and tranquility - instead of on the turbulent path of duality - diversity, and plurality.
                                            " Rajan Sachdeva "

शरीर एक रथ है और मन इसका चालक

प्राचीन भारतीय हिंदू ग्रंथों में एक सुंदर दृष्टान्त - एक गहन अर्थपूर्ण उपमा है -

आत्मा - एक राजा की तरह है जो अपने राज्य में घूमना चाहता है।
वह अपने रथ पर बैठता है और चालक से उसे साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में ले जाने के लिए कहता है।
वह अपने रथ का नियंत्रण चालक को दे देता है - कि जहां भी वह जाना चाहे, रथ को ले जाए। 
और स्वयं यात्रा का आनंद लेने के लिए पीछे बैठ जाता है।

इस सादृश्य में - शरीर एक रथ की तरह है - जिसे कई घोड़े खींच रहे हैं।
और वो घोड़े हैं - ज्ञान-इंद्रियाँ (आँख,कान ,नाक,जिह्वा और त्वचा)
और कर्म-इंद्रियाँ इस रथ के पहिये हैं।
मन इस रथ का चालक है - जो विचारों, इच्छाओं, धारणाओं - आस्था और अवधारणाओं की रस्सियों से रथ के घोड़ों अर्थात ज्ञान इंद्रियों को नियंत्रित करता है।

आत्मा पीछे बैठकर यात्रा का आनंद लेती है - साक्षी भाव से सब कुछ देखती रहती है - रास्ते के सब दृश्य और मार्ग में होने वाली सभी प्रकार की घटनाओं को साक्षी बन कर देखती है ।
और चालक - अर्थात मन वही मार्ग चुनता है जिस पर वह जाना चाहता है।
मन अपने विचारों और इच्छाओं की रस्सियाँ खींचकर जिस दिशा में जाने का इशारा करता है - ज्ञानइंद्री रुपी घोड़े उसी दिशा में चल पड़ते हैं।
और जिस तरफ घोड़े - अर्थात ज्ञान इंद्रियाँ जाती हैं, उसी दिशा में वे पहियों अर्थात कर्म-इंद्रियों को खींच कर ले जाते हैं।
इस प्रकार, शरीर रुपी रथ जीवन की इस यात्रा में संसार रुपी साम्राज्य में भिन्न भिन्न मार्गों पर चलता रहता है।
चूंकि जीवन का रथ - इसके घोड़े और पहिये - मन के नियंत्रण में है - इसलिए मन इन्हें किसी भी दिशा में ले जा सकता है - और ले जाता है।

लेकिन जब यह मन - ज्ञान और बुद्धि से प्रभावित और निर्देशित हो - तो यह इन्हें ज्ञान एवं विवेक की रस्सियों से खींच कर कण्ट्रोल करता है और सदमार्ग पर ले जाता है।
भगवद गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि इन्द्रियों से परे मन है - और मन से परे है बुद्धि।
अर्थात - इन्द्रियों को मन से और मन को बुद्धि के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।

इस प्रकार - ज्ञान और विवेक के द्वारा मन रुपी चालक - राजा अर्थात आत्मा को द्वंद्व और अनेकता के अशांत मार्ग की बजाय शांति और मुक्ति के मार्ग पर ले जा सकता है।
                                                " राजन सचदेव "

Tuesday, July 11, 2023

हमारे अस्तित्व की विडम्बना

हमारे अस्तित्व की विडम्बना ये है - 
कि हम लोहे के ऐसे छोटे छोटे टुकड़ों के समान हैं - जो सबसे विशाल - सबसे शक्तिशाली चुंबक - 
अर्थात माया के खिंचाव का प्रतिरोध करने का प्रयत्न कर रहे हैं।

अमीर हो या गरीब, बड़ा हो या छोटा, शक्तिवान हो या दुर्बल - ताकतवर हो या कमजोर   - हर व्यक्ति माया के वशीभूत दिखाई देता है।
यहाँ तक कि बड़े-बड़े ऋषि-मुनि और संत महात्मा भी सांसारिक सुख - धन, प्रसिद्धि और शक्ति आदि के आकर्षण से बचने में असमर्थ प्रतीत होते हैं।
हर कोई अधिक धन संचय करना चाहता है - और अधिक संपत्ति और जायदाद इकट्ठी करना चाहता है ।
हर व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की शक्ति प्राप्त करना चाहता है - अन्य लोगों पर नियंत्रण रखना चाहता है।
ऐसे लोग विरले ही हैं जो इस आग्रह का प्रतिरोध कर पाते हैं -  
- जो माया के आकर्षण से बच पाते हैं  और इस से अप्रभावित रह सकते हैं।
                                               " राजन सचदेव "

We are like tiny pieces of iron

The irony of our existence is that -
We are just like tiny pieces of iron - trying to resist the pull of the most enormous -  the most powerful magnet i.e. Maya.

Rich or poor, Big or small, Strong or weak - everyone seems to be under its spell.
Even great sages and saints seem to be unable to resist the attraction of worldly pleasures - wealth - name & fame, and power, etc.
Everyone wants to accumulate more wealth - more riches & assets. 
Everyone wants to have some sort of power – to have control over other people.
Rare are those who can resist this urge – who can escape the allure of Maya and remain unaffected by it.
                                              "Rajan Sachdeva "

Monday, July 10, 2023

Haath milaatay rahiye -- Do Shake hands at least

Baat kam keejay zehaanat ko chhupaatay rahiye 
Ye ajnabi shehar hai kuchh dost banaatay rahiye 

Dushmani laakh sahi - khatm na keejay rishta 
Dil milay ya na milay haath milaatay rahiye 
                           By: " Nida Fazli"

Zehaanat     = Intelligence, what is in the mind 

                               Translation
Speak less, and keep your thoughts to yourself.
This is a strange world - make some friends (and keep them).
Even if there is some animosity, Do not end the relationship
Whether the hearts meet or not - keep shaking hands with them at least. 
                                                 " Rajan Sachdeva "

हाथ मिलाते रहिए

बात कम कीजे ज़ेहानत को छुपाते रहिए 
ये अजनबी शहर है कुछ दोस्त बनाते रहिए 

दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता 
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए 
                     निदा फ़ाज़ली 

ज़ेहानत  = बुद्धिमता - सोच-विचार, अक़्लमंदी - जो ज़ेहन में हो  Intelligence, Thoughts

Greatness comes from Action बड़प्पन कर्म से है

बड़प्पन कर्म से होता है 
न कि शक्ति, क़द या पदवी से 
Greatness comes from action
Not by power, stature, or position 

Sunday, July 9, 2023

Eat First - Then Work

A newspaper seller - about ten years of age - was ringing the bell of a house.
(Perhaps the newspaper was not published on that day)
The mistress opened the door and asked, "What is it?
Child - "Aunty ji - May I clean your garden?
Mistress - No - we don't need it.
Boy - folding hands in a pitiful voice -
"Please, Aunty ji - 
Let me do it, please -  I will clean it really nicely.
The lady was moved by his pleadings  - "Oh ok, how much money will you take?
Child - No money Ma'am - just give me some food - that's all.
Mistress - Ok then. But do a good job...

She thought - Looks like the poor boy is hungry - 
I should give him food first.
"Hey boy - come and eat first - then you can work..."
Child - "No Auntie - first let me do the work - then you give me food."
Mistress - ok! 
After an hour -
 "Aunty ji - please see if the cleaning is done well."
Mistress - Oh wow! You have cleaned it very well. 
You even put the plants neatly in the pots. 
Now come and sit here - I will bring food for you.
As soon as the mistress gave him the food - the boy pulled a foil from his pocket and started wrapping it in the foil paper.
Mistress - I know you are hungry.
Sit down and eat here, and I will give you more if you want."

Boy - Actually, my mother is sick at home. 
I got the medicine for her free from the government hospital. 
The doctor said the medicine must be taken with the food - not on an empty stomach. 
That is why I came to work - to get food for her."
Mistress cried.. then scolding with love, she said -
Come and sit here - first, you eat - then I will give you more to take home for your mother."
She fed that innocent child with her own hands as his mother.
Then made fresh rotis for his mother.
She went to his house with him. Gave food to his mother and said - you are a very rich woman. 
We could not provide our children the wealth you have given to your son. 
Very fortunate people get such children.
                   ~~~~~~~~~~~~~~~~~
Also -- 
Despite being wealthy - 
those who have such compassion, love, and kindness in their heart are, in fact, the real rich.
                                                "Rajan Sachdeva "

पहले काम - फिर खाना

लगभग दस साल का अखबार बेचने वाला बालक एक मकान का गेट बजा रहा था ..
(शायद उस दिन अखबार नहीं छपा होगा)
मालकिन ने बाहर आकर पुछा "क्या है ?
बालक - "आंटी जी - मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं?
मालकिन - नहीं, हमें नहीं करवाना..
बालक - हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में..
"प्लीज आंटी जी - करा लीजिये न, बहुत अच्छे से साफ करूंगा।
मालकिन - द्रवित होते हुए "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा?
बालक - पैसा नहीं आंटी जी, - बस खाना दे देना..
मालकिन- ठीक है !! आ जाओ अच्छे से काम करना....
(लगता है बेचारा भूखा है पहले खाना दे देती हूँ.. मालकिन बुदबुदायी)
मालकिन- ऐ लड़के.. पहले खाना खा ले, फिर काम करना...
बालक - नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना...
मालकिन - ठीक है ! कहकर अपने काम में लग गयी..
बालक - एक घंटे बाद "आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं...
मालकिन -अरे वाह ! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी करीने से जमा दिए.. यहां बैठ, मैं खाना लाती हूँ..
जैसे ही मालकिन ने उसे खाना दिया.. बालक जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा..
मालकिन - भूखे काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठकर खा ले.. और चाहिए तो और दे दूंगी।
बालक - नहीं आंटी जी - मेरी बीमार माँ घर पर है..
सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है, पर डाॅ साहब ने कहा है दवा खाली पेट नहीं खानी है..
मालकिन रो पड़ी.. फिर प्यार से झिड़कते हुए बोली -
चल इधर बैठ। पहले तू खा - फिर माँ के लिए भी ले जाना।
और अपने हाथों से उस मासूम को उसकी माँ बनकर खाना खिलाया..
फिर उसकी माँ के लिए रोटियां बनाई..
और साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियां दे आयी....
और कह आयी -
"बहन जी - आप तो बहुत अमीर हो..
जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है वो हम अपने बच्चों को नहीं दे पाए "

बहुत नसीब वालों क़ो ऐसी औलाद मिलती है।
और धन से अमीर होते हुए भी जिनके दिल में ऐसी करुणा - प्रेम और दया के भाव होते हैं - 
वास्तव में वो लोग ही असली अमीर होते हैं।

Dust If You Must

While searching the web - found this beautiful & meaningful English poem

                             Dust If You Must
                            By:  Rose Milligan

Dust if you must, but wouldn't it be better
To paint a picture, or write a letter,
Bake a cake, or plant a seed;
Ponder the difference between want and need?

Dust if you must, but there's not much time,
With rivers to swim, and mountains to climb;
Music to hear, and books to read;
Friends to cherish, and life to lead.

Dust if you must, but the world's out there
With the sun in your eyes, and the wind in your hair
A flutter of snow, a shower of rain,
This day will not come around again.

Dust if you must, but bear in mind,
Old age will come and it's not kind.
And when you go (and go you must)
You, yourself, will make more dust.
                      By: Rose Milligan
              (Taken from the internet)

This poem first appeared in The Lady (September 1998).
It is now believed to be in the public domain.

Friday, July 7, 2023

Zindagi hai to - The sad days will pass

Zindagi hai to khizaan kay din guzar hee jaayengay 
Waqt kay haathon ye dil kay zakhm bhar hee jaayengay 

Jis jagah deepak jalegaa - jis jagah ho raushani 
Baat ye tay hai ki parvaanay udhar hee jaayengay 

Ek hai apni zameen aur ek hee hai aasmaan 
Baat ye gar sab na samajhay to bikhar hee jaayengay  

Chaltay chaltay raah mein gar paanv yaaro thak gaye 
Raastay kay saath phir hum bhee thehar hee jaayengay  

Gar kabhi mushkil padegi raah chunanay mein hamen 
Jis taraf tera ishaara ho - udhar hee jaayengay  

Laakh tum roko - ginaao laakh iskay aib par 
Aaye hain duniya mein to kuchh dekh kar hee jaayengay  

Un kay dar pay to rasaai ho na payegi kabhi 
Apnay dardo-gam kay naalay be-asar hee jaayengay  

Us nagar kee tang see taareek galiyon mein agar 
Raaston say bekhabar hongay to dar hee jaayengay  

Maut ka dar kyon rahega phir unhen 'Rajan' bhalaa 
Jaantay hain jo ki aakhir apnay ghar hee jaayengay  
                               " Rajan Sachdeva " 

Rasaayi = Access, Approach
Taareek = Dark 

                                       English Translation 

If some life is left, the days of sadness will eventually pass.
In the hands of time, the wounds of the heart will finally heal.
 
The place where the lamp is lit - wherever there is a burning flame -
It is certain that the moths will surely come there.

There is one earth for all - all are under the same sky 
If everyone does not understand this - all will be lost - scattered and dispersed.

If our feet get tired while traveling toward the destination 
We'll also become dormant like the path itself. 

If we ever find it difficult to choose our path
We will go in whichever direction you point us to go. 

You may stop us a million times - may recount its million faults 
Since we have come to the world, we will leave only after experiencing some things 
 - (At least we would like to enjoy it)

We have no access to them. We know we can never reach and approach them. 
The cries of our pain and sorrow will go unheard - unanswered. 

In the narrow and dark streets of that city - of that world 
Those who are unaware of the track - will be fearful and lost.

Why would there be fear of death in the minds of those - 
who know that they are going back to their home?
                       "Rajan Sachdeva "

ज़िंदगी है तो ख़िज़ां के दिन गुज़र ही जाएँगे

ज़िंदगी है तो ख़िज़ां के दिन गुज़र ही जाएँगे
वक़्त के हाथों ये दिल के ज़ख्म भर ही जाएंगे
 
जिस जगह दीपक जलेगा जिस तरफ हो रौशनी 
बात ये तय है कि परवाने उधर ही जाएंगे 

एक है अपनी ज़मीं और एक ही है आसमां 
बात ये गर सब न समझे तो बिखर ही जाएंगे 

चलते चलते राह में गर पाँव यारो थक गए 
रास्ते के साथ फिर हम भी ठहर ही जाएँगे 

गर कभी मुश्किल पड़ेगी राह चुनने में हमें 
जिस तरफ तेरा इशारा हो उधर ही जाएंगे 

लाख तुम रोको - गिनाओ लाख इसके ऐब पर 
आए हैं दुनिया में तो कुछ देख कर ही जाएंगे 

उनके दर पे तो रसाई हो न पाएगी कभी 
अपने दर्दो-ग़म के नाले बेअसर ही जाएंगे 

उस नगर की तंग सी तारीक़ गलियों में अगर 
रास्तों से बेख़बर होंगे  तो डर ही जाएंगे 

मौत का डर क्यों रहेगा फिर उन्हें 'राजन भला 
जानते हैं जो  कि आख़िर अपने घर ही जाएंगे  
                      " राजन सचदेव "

रसाई       = पहुँच - असर, रसूख, Access - Approach 
तारीक़    =  अँधेरी   Dark 

Thursday, July 6, 2023

धैर्य रखो

धैर्य रखो। 
हर काम पहले कठिन लगता है 
लेकिन धीरे धीरे अभ्यास के साथ वही आसान लगने लगता है। 

Have Patience

Have patience.
All things are difficult before they become easy.
At first, everything seems hard
But slowly, everything becomes easier with practice.

Wednesday, July 5, 2023

Taiyyaar baithay hain - Ready to leave

Kamar baandhay huye chalnay ko yaan sab yaar baithay hain 
Bahut aagay gaye - baaqi jo hain taiyyaar baithay hain

Na chhed ae Nikahat-e-baad-e-bahaari raah lag apni
Tujhay atkheliyaan soojhi hain ham be-zaar baithay hain

Najeebon ka ajab kuchh haal hai is daur mein yaaro
Jisay poochho yahi kehtay hain hum bekaar baithay hain
                                 ~ Insha Allaah Khaan 'Insha' ~

Nikahat-e-baad-e-bahaari = Fragrance of spring breeze
Atkheliyaan    = Mischiefs, Pranks
Be-Zaar          = displeased, unhappy, pathetic, miserable 
Najeeb            =  Genuine, Wise, Noble, Generous, Honest, Sincere, praiseworthy, Learned, etc.
Bekaar            = Idle. Inactive, without any work or job

                                   English Translation

All my friends are sitting here - equipped and prepared.
Many have already gone  - those who are left are also ready to leave. 

Don't disturb me, O' beautiful, pleasant morning breeze - continue to your way. 
I am sitting here sad and restless - and you want to play some mischief with me? 

The state of the genuinely wise and intellectuals is strange in this era, my friends.
Whomever you ask, they say we are sitting idle - inactive - nothing to do. 
(No one cares for them anymore.)

कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं

कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए -- बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं

न छेड़ ऐ निकहत-ए-बाद-ए-बहारी राह लग अपनी
तुझे अटखेलियाँ सूझी हैं - हम बे-ज़ार बैठे हैं

नजीबों का अजब कुछ हाल है इस दौर में यारो
जिसे पूछो यही कहते हैं - हम बेकार बैठे हैं
                         इंशा अल्लाह ख़ान इंशा



निकहत-ए-बाद-ए-बहारी = बसंत रुत में - बहार में चलने वाली हवा की ख़ुशबू
बे-ज़ार = निराश, परेशान, दुखी
नजीब = कुलीन, सच्चे, नेक, उदार, निष्कपट, प्रशंसनीय, प्रशंसा-योग्य इत्यादि

Tuesday, July 4, 2023

Swami Vivekanand ji

Today - July 4th - is the day when Swami Vivekanand ji left this mortal world.

Swami Vivekanand was one of the most distinguished disciples of Shri Ramakrishna Paramhans -  and the greatest and foremost exponent of Vedanta in present times - who always emphasized the universal and humanistic side of the Vedas.
He was an activating force in the movement to promote Vedanta philosophy (one of the six schools of Indian philosophy).

Swami Vivekananda wanted to infuse strength and dynamism into Hindu thought, replacing the prevailing pacifism and escapism. 
He emphasized that attaining knowledge and service to humanity and nature is more important than simply following dogmas, superstitions, and rituals. 
When he appeared in Chicago as a spokesman for Hinduism at the World’s Parliament of Religions in 1893, he captivated the assembly with his dynamic personality and groundbreaking energetic speech. 
The newspapers described him as “an orator by divine right and undoubtedly the greatest figure at the Parliament.” 
Later, he lectured throughout the United States and England, presenting the Hindu thought and ideology of the Vedanta.
He left the mark of his personality on East and West alike.

After returning to India in January 1897, he started delivering a series of lectures in different parts of India, which created a great stir all over the country.

Through his inspiring and profoundly significant lectures, Swamiji attempted to uplift the consciousness of the people of India - to take pride in their deep ideology and cultural heritage. 

He emphasized acquiring the Tattva Gyana - the True knowledge and applying the principles of Practical Vedanta - – and urged the educated people to focus on the plight of the oppressed and downtrodden masses and strive for their upliftment.
He left his mortal body on July 4, 1902. 
                 Shat-Shat Naman to such great teachers and Gurus.
                                                         " Rajan Sachdeva "

What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...