Wednesday, October 27, 2021

ਇਕ ਗਿਆਨੀ ਹੀ ਕਿਸੇ ਗਿਆਨੀ ਦੀ ਪਹਿਚਾਣ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ

ਇਕ ਗਿਆਨੀ ਹੀ ਕਿਸੇ ਗਿਆਨੀ ਦੀ ਪਹਿਚਾਣ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ
ਕਿਉਂਕਿ ਗਿਆਨ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਲਈ ਵੀ ਗਿਆਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ

ਪਰ ਉਸ ਗਿਆਨ ਦਾ ਕੋਈ ਲਾਭ ਨਹੀਂ ਜਿਸ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਧਾਰਨ ਨਾ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ 

ਅਤੇ ਗਿਆਨ ਨੂੰ 
ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਲਈ
ਗਿਆਨ ਨੂੰ ਯਾਦ ਰਖਨਾ  ਅਤੇ  ਉਸਦਾ ਅਭਿਆਸ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ।
                               ' ਰਾਜਨ ਸਚਦੇਵ '

ज्ञान को समझने के लिए भी ज्ञान चाहिए

ज्ञानी की पहचान कोई ज्ञानी ही कर सकता है
क्योंकि ज्ञान को समझने के लिए भी ज्ञान चाहिए

लेकिन उस ज्ञान का कोई फ़ायदा नहीं जिसे जीवन में धारण न किया जाए
और ज्ञान को जीवन में धारण करने के लिए ज्ञान को याद रखना 
और उस का अभ्यास करना ज़रुरी है
                                                 ' राजन सचदेव '

It requires wisdom

It requires wisdom to understand wisdom 
It takes a wise man to recognize a wise man 

However - Wisdom is worthless if it is not applied in life
And it takes a lot of practice to apply wisdom in life

                                  ' Rajan Sachdeva ' 

Tuesday, October 26, 2021

Jap maray Ajapaa maray - Anahad bhi mar jaaye

Jap maray Ajapaa maray - Anahad bhi mar jaaye
Surat samaani shabd mahi ja ko kaal na khaaye
                             ' Satguru Kabeer ji '

When Jap - Chanting, Doing Sumiran loudly with the tongue has faded 

And Ajapaa - without words - without the use of the tongue (chanting in mind only) is also vanished.

Even Anhad - the sound current dies as well.

Then - 

When Surat - the consciousness merges into the Shabd - known as Naad-Brahm - 

There is no Kaal - there is no death. 

                   ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


The first stage of Sumiran is chanting a sacred word or mantra loudly -

Repeating a word, mantra, or prayer phrase over and over again.


Ajapa is the stage beyond that - the next step.

In this stage, the chanting of words or mantras quietly continues in mind without speech - 

without the use of the tongue.


Then comes the state of Anhad 

The words disappear - even the sound dies - 

Only the silent sound wave or current remains.


Here, Kabir Ji Maharaj is referring to a state in which the seeker should go beyond Jap - chanting -

and Ajapa - non-chanting. 

Even passing the state of Anahad, the consciousness should merge into the Shabd itself.

That is, going beyond the above states -

The Surti - consciousness rises so high that it merges into the Shabd itself and becomes one with it.


I remember Baba Avtar Singh Ji Maharaj also used to say similar things.

Sometimes he used to ask some people if they have experienced the Anhad Naad?

If someone said - yes - it has happened.

Then Shahenshah Baba Ji would say - Ok - That is very good -

But don't stop here - go further - go beyond it.

                         ~~~~~~~~~~~~~~

Once, someone asked Swami Ramanand ji - 

how do you do Sumiran?

Swamiji replied -

         Kar say japun na mukh say japun - ur say japun na Ram

         Ram sadaa ham ko japen aur ham paaven vishraam 


Once, someone asked Swami Ramanand ji - 

how do you do Sumiran?

Swamiji replied -

Neither I do Sumiran with (Maala - rosary in my) hands nor with my mouth (tongue)

Nor I do Sumiran of Ram - the Lord in my heart

Rather, the Lord does my sumiran, and I enjoy being at rest.


After reaching such a stage, the distinction between the devotee and the Lord ceases to exist.

Consciousness merges into the ultimate Supreme consciousness -

The individual soul becomes one with the Super Soul.


         'Ram Kabeera ek bhaye hain - koy na sakay pehchaani '


                                                     ( Rajan Sachdeva )



जप मरे अजपा मरे , अनहद भी मर जाए

सुरत समानी शबद महिं जा को काल न खाए


जप मरे अजपा मरे अनहद भी मर जाए

जप मरे, अजपा मरे , अनहद भी मर जाए
सुरत समानी 
शब्द महिं जा को काल न खाए
                                  "सद्गुरु कबीर जी "

सुमिरन की पहली अवस्था है जप 
अर्थात किसी शब्द अथवा मंत्र का जिह्वा से उच्चारण - 
किसी शब्द, मंत्र अथवा प्रार्थनात्मक वाक्यांश को बार बार दोहराना। 

अजपा उस से आगे की अवस्था है - अगली स्टेज है 
जिस में वाणी के बिना ही शब्द अथवा मंत्र का सुमिरन मन में चलता रहता है। 

फिर अनहद की अवस्था में शब्द मिट जाते हैं - ध्वनि भी मर जाती है 
रह जाती है केवल नाद-तरंग 

कबीर जी महाराज उस अवस्था का ज़िक्र कर रहे हैं जिस में जप और अजपा समाप्त हो जाएँ - 
अर्थात इन अवस्थाओं से ऊपर उठ जाएं - 
यहाँ तक कि अनहद की अवस्था को भी पार करके चेतना शब्द में विलीन हो जाए 
सुरति इतनी ऊपर उठ जाए कि स्वयं ही शब्द रुप - नाद स्वरुप हो जाए 
फिर काल वहां नहीं पहुँच सकता - काल का चक्र समाप्त जाता है।   

मुझे याद है कि बाबा अवतार सिंह जी महाराज भी यही बात कहा करते थे। 
कई बार कुछ सज्जनों से पूछ लिया करते थे कि आपको अनहद शब्द हुआ?
अगर किसी महात्मा - किसी महांपुरुष ने कहा कि हाँ जी - हुआ है -
तो शहंशाह बाबा जी कहते थे - ठीक है - बहुत अच्छा है - 
लेकिन यहाँ रुकना नहीं - इससे भी आगे निकलो -  और आगे जाओ। 

किसी ने स्वामी रामानन्द जी से पूछा कि आप सुमिरन कैसे करते हो? 
आपका जप कैसा है ?
तो स्वामी जी ने जवाब दिया -
                कर से जपूँ न मुख से जपूँ - उर से जपूँ न राम 
                राम सदा हमको जपें और हम पावें विश्राम 

ऐसी अवस्था में पहुँच कर भक्त और भगवान में भेद समाप्त हो जाता है - 
चेतना - परम चेतना में विलीन हो जाती है 
आत्म परमात्म एक हो जाते हैं 
                 राम कबीरा एक भये हैं - कोय न सके पहचानि 
                                            
                                      " राजन सचदेव " 

Monday, October 25, 2021

ਦੋ ਹੀ ਸੂਰਤਾਂ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਕਦਰ ਹਰ ਚੀਜ਼ ਦੀ

           ਦੋ ਹੀ ਸੂਰਤੋਂ ਮੇਂ ਹੋਤੀ ਹੈ ਕਦਰ ਹਰ ਚੀਜ਼ ਕੀ
          ਇਕ ਉਸ ਕੇ ਮਿਲਨੇ ਸੇ ਪਹਿਲੇ ਇਕ ਉਸ ਕੇ ਖੋਨੇ ਕੇ ਬਾਅਦ

           ਬਜੁਰਗੋਂ ਕੀ ਸੇਵਾ ਉਨਕੇ ਜੀਤੇ ਜੀ ਕਰ ਲੋ  'ਰਾਜਨ '
           ਵਰਨਾ ਪਛਤਾਓਗੇ ਉਨ ਕੀ ਆਂਖ ਬੰਦ ਹੋਨੇ ਕੇ ਬਾਅਦ
            
                            ~ ~ 
        ~ ~

ਦੋ ਪਰਿਸਥਿਤੀਆਂ ਵਿੱਚ ਹਰ ਚੀਜ਼ ਦੀ ਕੀਮਤ ਵੱਧ ਜਾਂਦੀ ਹੈ – 
ਇੱਕ ਉਸਦੇ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਤੇ ਦੂਸਰਾ ਉਸਦੇ ਗੁਆਉਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ।

ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ, ਜੋ ਸਾਡੇ ਕੌਲ ਹੈ ਅਸੀਂ ਉਸਦੀ ਕਦਰ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ – 
ਅਸੀਂ ਉਸਦਾ ਮੁੱਲ ਨਹੀਂ ਪਾਉਂਦੇ।

ਮਾਂ-ਪਿਉ ਤੇ ਹੋਰ ਬਜ਼ੁਰਗ - ਜਿੰਨਾ ਚਿਰ ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਹਨ - ਅਸੀਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਬਹੁਤੀ ਪਰਵਾਹ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ
ਪਰ ਜਦੋਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਬੰਦ ਹੋਣਗੀਆਂ - ਜਦੋਂ 
ਉਹ ਛੱਡ ਕੇ ਚਲੇ ਜਾਣਗੇ -
ਫਿਰ ਸਾਰੀ ਉਮਰ ਪਛਤਾਵਾ ਤੇ ਗ਼ਮ ਹੀ ਰਹਿ ਜਾਵੇਗਾ।

ਇਹ ਅਫ਼ਸੋਸ ਕਿ - ਕਾਸ਼ ਅਸੀਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਇਹ ਕੀਤਾ ਹੁੰਦਾ - 
 ਉਹ ਕੀਤਾ ਹੁੰਦਾ 
ਕਾਸ਼ 
ਅਸੀਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਕੁਝ ਹੋਰ ਸਮਾਂ ਬਿਤਾਇਆ ਹੁੰਦਾ -
ਕਾਸ਼ - ਅਸੀਂ ਇਹ ਕਰ ਸਕਦੇ ਜਾਂ ਸਾਨੂੰ ਇਸ ਤਰਾਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਸੀ।

ਪਰ ਫਿਰ, ਬਹੁਤ ਦੇਰ ਹੋ ਚੁੱਕੀ ਹੋਵੇਗੀ -
ਫਿਰ ਅਫ਼ਸੋਸ ਤੇ ਪਛਤਾਵੇ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਬਚਣਾ।
ਇਸ ਲਈ, ਸਮੇਂ ਦੇ ਰਹਿੰਦੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਤਿਕਾਰ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਕਰ ਲਉ।
ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜਿਉਂਦੇ ਜੀ ਜਿੰਨੀ ਹੋ ਸਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰ ਲਉ।
                              ' ਰਾਜਨ ਸਚਦੇਵ '

इन्सां को पीर कर दिया Insaan ko Peer kar diya

              इक बात सिखाई हमें आँखों के नीर ने
              इन्सां को पीर कर दिया, इन्सां की पीर ने

Ik baat sikhaayi hamen aankhon kay neer nay
Insaan ko Peer kar diya - insaan ki Peer nay

                                                  (Writer unknown)

What a beautiful use of the same word - 'Peer' - from two different languages with two different meanings.

In the second line, the former 'Peer' is taken from Persian -meaning Wise 
and the latter 'Peer' is the Braj-Bhasha version of Peed or Peedha meaning pain.

Pain and suffering can also become an excellent teacher and make a person wise - 
if one is willing to learn.
Acceptance of adverse circumstances - staying calm and quiet even in unfavorable situations can turn a person into a saint - such as Kabeer ji, Tulasi das, Meera and Ravidas, etc.

Guru Nanak also said:
"Dukh daaru sukh rog bhayaa - Ja sukh taam na hoyi "

That Dukh (sorrow, sufferings) may (sometimes) become remedy and open new doors,
while comforts and luxuries of life may become an ailment- a distortion and a trap - 
which may take one away from God and Moksha - 
away from achieving Nirvaana - the ultimate freedom.
                                                    ' Rajan Sachdeva '

नीर Neer - Water, (Aankhon ka neer - Tears in eyes)
पीर Peer - Wise, Saint, Guru, An elderly person (Persian- Farsi)
पीर Peer - Pain, Suffering (Hindi, Braj-bhasha as Peed, Peedha)

Sunday, October 24, 2021

दो ही सूरतों में होती है क़दर हर चीज़ की

दो ही सूरतों में होती है क़दर हर चीज़ की
इक उसके मिलने से पहले इक उसके खोने के बाद

बुज़ुर्गों की सेवा उनके जीते जी कर लो  'राजन '
वरना पछताओगे उनकी आँखें बंद होने के बाद

                     ~~~         ~~~

दो स्थितियों में हर चीज़ की क़ीमत बढ़ जाती है -
उसके मिलने से पहले - और उसे खोने के बाद

साधारणतया - जो हमारे पास होता है - हम उस की कदर नहीं करते - 
उस की कीमत - उसके महत्त्व का हमें एहसास नहीं होता।

माँ बाप और अन्य बुज़ुर्ग - जब तक हमारे पास हैं - हमें उनका ख़ास ध्यान नहीं रहता 
लेकिन जब उनकी आंखें बंद हो जाएंगी - जब वे चले जाएंगे -
तो जीवन भर केवल अफसोस और दुख ही रह जाएगा।

ये अफसोस - कि काश हमने उनके लिए ये किया होता -
काश उनके साथ कुछ और समय बिताया होता -
काश - हम ऐसा कर सकते थे और हमें ऐसा करना चाहिए था। 

लेकिन तब, बहुत देर हो चुकी होगी - 
तब सिर्फ अफ़सोस और पश्चाताप के सिवा कुछ नहीं हो सकेगा।

इसलिए अभी - समय रहते उनका सम्मान और उनसे प्रेम कर लो। 
उनके जीवित रहते हुए जितनी भी हो सके उनकी सेवा कर लो।
                            ' राजन सचदेव '

In two situations - Everything becomes valuable

Do hee soorton may hoti hai qadar har cheez ki
Ik uskay milnay say pehlay - ik uskay khonay kay baad

Sevaa Buzurgon ki un kay jeetay jee kar lo 'Rajan'
Warna pachhtaogay un ki aankh band honay kay baad


Meaning:
Everything becomes more valuable in two situations.
First, before getting it -
And second, after losing it.
In between, we usually do not appreciate and realize the value of what we have.

Respect - love, help and serve the elders while they are alive.
Once their eyes are closed - when they are gone -
only regret and sorrow will remain with us for the rest of our lives.
A Regret - that we could have and should have done this and that for them - 
But then, it would be too late. 
                           ' Rajan Sachdeva '

Saturday, October 23, 2021

विदाई - एक प्रिय मित्र एवं कलाकार पुरुषोत्तम मेहता


अभी दो दिन पहले, कॉलेज के दिनों के समय से मेरे एक बहुत ही अच्छे प्रिय मित्र - एक कुशल और प्रसिद्ध सितारवादक - आल इंडिया रेडियो और टी वी कलाकार पुरुषोत्तम मेहता - इस नश्वर संसार को छोड़ कर हमसे विदा हो गए।

एक महान कलाकार होने के साथ साथ वे बहुत ही सौम्य और दयालु - सरल हृदय और विनम्र - जमीन से जुड़े हुए - शुद्ध एवं पवित्र हृदय वाले उत्कृष्ट इंसान भी थे।

मेरे दिलो-दिमाग में उभर रही हैं हमारी दीर्घ कालीन मित्रता की मधुर यादें - वो मित्रता जो 1970 में पटियाला में शुरु हुई थीं ।
एक साथ सितार सीखना और बजाना - उनका पटियाला, चंडीगढ़ और जम्मू में मुझसे मिलने आना - और मेरा मलेरकोटला में उनके घर और कॉलेज में जाना - जहाँ वो Lecturer थे । फिर बाद में जम्मू में उनके ससुराल जाने का मौक़ा भी मिला।
और जालंधर में तो अक्सर ही हम दोनों का सितार निर्माता गुरदयाल सिंह जी के साथ दो दो तीन तीन दिन इकठे रहना।
बहुत सारी मीठी और शानदार यादें हैं इस सुखद दोस्ती की जो 50 वर्षों से भी अधिक समय तक क़ायम रही ।

एक बार मैंने एक नए नंबर से फ़ोन किया - 
नमस्ते और कैसे हो" के बाद मैंने पूछा - पहचाना?
तो हंस के कहने लगे -  कैसी बात करते हो यार - हम सुर का ही तो काम करते हैं - नाद और स्वर तो दिल दिमाग़ में बसा है और profession भी यही है तो फिर अपनों की आवाज़ की पहचान क्यों न होगी?

बहुत से लोग हमारे जीवन में आते हैं और चले जाते हैं - बहुत से दोस्त बनते हैं और चले जाते हैं। 
लेकिन कुछ मित्रता - कोई दोस्ती ऐसी होती है जो जीवन भर चलती है।

और साथ ही ऐसी घटनाएं हमें इस संसार की क्षणभंगुर प्रकृति की भी याद दिलाती हैं । 
एक दिन हम हंसते-खेलते हुए एक साथ जीवन का आनंद ले रहे होते हैं, और तभी अचानक, एक दिन उनके जाने का समाचार हमारे हृदय में हमेशा के लिए वियोग और उदासी की भावना भर देता है।
ऐसी घटनाएं हमें असहायता - हमारी दुर्बलता, मज़बूरी और छोटेपन का एहसास करवाती हैं।
हमें यह एहसास दिलाती हैं कि जीवन की कोई गारंटी नहीं है - 
कोई नहीं जानता कि ये संबंध कब तक क़ायम रहेंगे - ये रिश्ते नाते कितने समय तक चलेंगे।
फिर ऐसे सज्जन लोगों के जाने के बाद मन में ख़्याल आता है कि उनके साथ कुछ समय और इकठ्ठे बिताया होता तो अच्छा होता। 
मन में यह पछतावा रह जाता है कि जब समय था - जब अवसर था तो हमने उस मौके का फायदा क्यों नहीं उठाया - लेकिन तब सिर्फ पछतावे के अलावा और कुछ नहीं रहता - क्योंकि गया हुआ समय फिर लौट कर नहीं आ सकता। 

मृत्यु हमारे प्रियजनों को हमसे दूर तो ले जा सकती है, लेकिन वो हमारे दिल से उनका प्रेम और उनकी मधुर यादों को नहीं निकाल सकती। 
उनकी छवि हमारे दिल और दिमाग से मिटा नहीं सकती।

बेशक़ अब हम उन्हें कभी देख नहीं पाएंगे - उनसे मिल कर बात नहीं कर पाएंगे -
लेकिन वो हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे - अपने परिवार, दोस्तों मित्रों और प्रियजनों के मन में सदैव जीवित रहेंगे।
                                    ' राजन सचदेव '


जम्मू - 1981 

चंडीगढ़ - 1982 


 



Farewell to a dear friend - Purshotam Mehta

Two days ago, one of my best friends from college days - an accomplished and well-acclaimed Sitarist - an all-India Radio and TV artist Purshotam Mehta - left this mortal world.

Not only a great artist - he was very gentle and kind, so simple and humble, down-to-earth, and pure at heart - an excellent human being as well.

So many fond memories of our friendship - which started in 1970 in Patiala - are flashing in my mind right now. Learning - Playing Sitar together - him visiting me in Patiala, Chandigarh, and Jammu - and my visits to his home and college in Malerkotla where he taught. Then later, to his in-law's home at Jammu. And as well as spending fun time along with Gurdial Singh ji in Jalandhar - one of the best Sitar makers of North India.
There are so many fabulous memories of a pleasant friendship that continued for more than 50 years.

Once, I called him from a new phone number. 
After the formal hello - I asked - do you recognize me? 
He laughed and said - 
Are yaar - Ham Sur ka hee to kaam kartay hain.
Naad (Sound) is in our ears, hearts, and minds. Sound is our profession. 
Why do you think then that I would not recognize the sound/voice of our own? 

People come into our lives and leave - even friends come and go. 
But there are only a few rare friendships that last a lifetime.

And at the same time, it reminds me of the temporary and transitory nature of this world and its inhabitants.
One day, we are laughing and enjoying life together, and suddenly, another day brings us sadness and a feeling of separation forever.
It makes us feel weak - small and helpless.
It makes us realize that there are no warranties - that no one knows how long the togetherness will last.
It makes us wish that we had spent more time together when it was possible.
It makes us regret the missed possibilities and opportunities we could have availed.
But then it's too late - then it is nothing more than just regret. 

However, although death can take away our loved ones from us, it can not take their love and fond memories from our hearts. 
It can not remove their image from our hearts and minds.

Although we will not be able to see or talk to him anymore, dear Purshotam will always live in our hearts - in the hearts of his family, friends, and loved ones.
                                     ' Rajan Sachdeva '

 

At our home in Chandigarh - 1982



Jammu - 1981


His music on Youtube 



Friday, October 22, 2021

नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं

संत तुलसी दास ने कहा है :

          नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं
          प्रभुता पाइ  जाहि मद नाहीं

                     (राम चरित मानस - बाल कांड)

अर्थात संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे प्रभुता - 
यानी शक्ति, प्रसिद्धि और अधिकार प्राप्त होने के बाद अहंकार न हो।

सच तो ये है कि जिसकी जितनी अधिक प्रसिद्धि हो -
जितनी बड़ी शक्ति और अधिकार हो - 
उसका अहंकार भी उतना ही बड़ा होता है।

No one is without Ego

Ego is present in everyone.
No one is without any ego at all.

As Sant Tulasi Das said:
      Nahin kou as janmaa jag maahin
      Prabhutaa paayi jaahi mad naahin

              (Ram Charit Manas - Bal Kaand)

There is absolutely no one in the world who does not develop ego -
whose ego does not rise after getting some power and authority.

In fact, the bigger the status, power, and authority -  
the greater is their ego.

Thursday, October 21, 2021

ये कमाल Ye Kamaal

​किसी किसी को ख़ुदा ये कमाल देता है
अपने ग़म  
जो  हवा में उछाल देता है

Kisi kisi ko Khuda ye kamaal deta hai
Apnay gham jo hawa mein uchaal deta hai
                                       (Unknown)

Wednesday, October 20, 2021

Ye mera hai - Vo mera hai

Ye meraa hai - Vo meraa hai
Kyon main nay mujhko gheraa hai

Main bhool gaya- tum bhool gaye
Sab chalaa chalee ka pheraa hai

Sab apnaa apnaa kehtay hain
Kya jag mein hai jo apnaa hai ?

Jo apnaa hai - sab sapnaa hai
Ik sapnaa hee bas apnaa hai

Kal waala pal to beet gayaa
Is pal mein kaisee kal kal hai

Kal aanay waala jo pal hai
is pal mein us kee hal chal hai

             By: Dr. Jagdish Sachdeva (Michigan)

ये मेरा है - वो मेरा है

ये मेरा है - वो मेरा है
क्यों मैं ने मुझको घेरा है

मैं भूल गया - तुम भूल गए
सब चला चली का फेरा है

सब अपना अपना कहते हैं
क्या जग में है जो अपना है ?

जो अपना है सब सपना है
इक सपना ही बस अपना है

कल वाला पल तो बीत गया
इस पल में कैसी कल कल है

कल आने वाला जो पल है
इस पल में उसकी हलचल है

                     ~डॉक्टर जगदीश सचदेव ~ (मिशिगन)

Tuesday, October 19, 2021

Life is like a test

Life is like a test.
A test - in which many people fail 
Simply - because they try to copy others - 
without realizing that their situation and circumstances might be different.

Success in life depends upon knowing and understanding own circumstances and problems well - 
finding the right solutions and moving forward 
- Not copying others.

जीवन एक परीक्षा है

जीवन एक परीक्षा है 

एक ऐसी परीक्षा -
एक ऐसा इम्तेहान - 
जिस में अधिकतर लोग इसलिए फेल हो जाते हैं 
क्योंकि वे दूसरों की नकल करते हैं - 
ये देखे और समझे बग़ैर कि सबके प्रश्नपत्र अलग-अलग हो सकते हैं 

जीवन की सफलता अपनी परिस्थितियों और समस्याओं को अच्छी तरह समझ कर 
उनका उचित हल ढूंढ कर आगे बढ़ने में है - 
न कि दूसरों की नक़ल करने में। 

Monday, October 18, 2021

Discussions vs Arguments

Discussions are good -
if the motive is to exchange thoughts -
to share knowledge and to learn new things.

Arguments are simply an exchange of ego -
for the sake of showing off and winning.

Discussions should be encouraged and promoted -
while arguments should be avoided.

Arguments can spoil relationships
and might even create feelings of animosity among friends.

Friday, October 15, 2021

विजय-दशमी के उपलक्ष्य पर

विजय-दशमी के दिन हर साल - हर शहर में - बड़े उत्साह और जोश के साथ रावण का पुतला जलाया जाता है।

रावण जितना ऊंचा होगा, उतना ही भव्य और शानदार माना जाता है। 

और पटाखों के जलने का शोर जितना अधिक होता है  -
दर्शकों को उतना ही अधिक आनंद मिलता है।

लेकिन भीड़ में घिरा  - जलता हुआ रावण पूछता है:
अरे ओ मुझे जलाने वालो .......
तुम में से राम कौन है?

विडंबना यह है कि रावण को जलाने से पहले हम स्वयं ही उसे बनाते और सजाते हैं।
और फिर इसे सबके सामने खड़ा करके बड़े जोश से उसे जलाने का नाटक करते हैं ।
अगले साल फिर एक नया रावण बनाते हैं और फिर उसे जलाते हैं।
और हर साल यह सिलसिला जारी रहता  है।
अगर हम अपने मन में बार-बार एक नया रावण बनाना बंद कर दें….
तो फिर उसे बार-बार जलाने की ज़रुरत भी नहीं पड़ेगी।

आइए इस विजय दशमी - अथवा दशहरा पर ये संकल्प करें:
कि इस बार हम अपने अंदर के रावण को मार कर हमेशा के लिए जला देंगे
और फिर अपने मन में कभी कोई नया रावण पैदा नहीं होने देंगे।

नोट: 
रावण एक व्यक्ति से बढ़ कर एक प्रतीकात्मक आकृति है - जो धन, शक्ति, सौंदर्य, और ज्ञान आदि के झूठे अहंकार और कई अन्य नकारात्मक लक्षणों एवं अवगुणों का प्रतिनिधित्व करता है।



विजय दशमी अथवा दशहरा

विजय दशमी एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है दस (अवगुणों) पर विजय
और दशहरा का अर्थ है - दस (मनुष्य के मन के भीतर के बुरे गुण) को  हराना - नष्ट करना।
              दस अवगुण  - 
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद (अहंकार) मत्सर, स्वार्थ, अन्याय, घृणा  और हिंसा

रावण एक व्यक्ति से अधिक एक व्यक्तित्व है - जो किसी भी मानव मन के भीतर उपरोक्त दोषों की प्रमुखता का प्रतिनिधित्व करता है।
भ्रम, अंध विश्वास, गलत धारणाओं और सभी दोषों का कारण है अज्ञान।

और भगवान राम ज्ञान का प्रतीक हैं। 
                        विजय दशमी का संदेश -
ज्ञान से अज्ञान के आवरण को नष्ट करके मानव मन उपरोक्त दोषों पर विजय प्राप्त करके जीवन में सुख समृद्धि एवं शांति प्राप्त कर सकता है। 

त्योहारों को महज एक धार्मिक अथवा सामाजिक संस्कार या रीति रिवाज़ समझ कर केवल एक उत्सव के तौर पर या सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं - बल्कि उनके अर्थ और उनके पीछे के उद्देश्य को समझ कर मनाया जाना चाहिए।  
                                                ' राजन सचदेव '

What is Vijaya Dashmi or Dashehra

Vijaya Dashmi is a Sanskrit word that means the victory over ten (vices)
and Dashehara means - the removal of ten (bad qualities within human minds)
Such as - Kama, Krodh, Lobh, Moh, Mad, Matsar, Swartha, Anyaaya, Ghrinaa, and Hinsa 
That is Lust, Anger, Attachment, Greed, Ego, Jealousy, Selfishness, Injustice, Hatred, and Cruelty, respectively.

Raavan is more of a personality - rather than a person - it represents the prominence of the above Doshas or vices within any human mind.
 
Lord Ram is a symbol of Gyana - that destroys and eliminates the veil of ignorance which is the cause of delusions, misconceptions, and all vices. 

We should celebrate our festivals with an understanding of their meaning - and the purpose behind them
 - and not just for the sake of fun and entertainment only. 
                         ' Rajan Sachdeva ' 

On Vijay-Dashmi - Dashehra

On Vijay-Dashmi .....
Every year -  in every city - an effigy of Ravan is burnt with great enthusiasm and passion. 

The higher the Ravan, the more spectacular it will be.
And the greater the noise of burning firecrackers -
The more enjoyment the audience will get.

But surrounded by the crowd, the burning Ravan asks:
O’ you all -- who are burning me today …….
Which one is Ram amongst you?

The irony is that before we burn the Ravan - 
We create and build it ourselves.
And then make it stand in front of everyone and pretend to burn him with great enthusiasm and passion.

Next year again, we make a new Ravan and then burn it.
Year after year - and this cycle continues.

If we stop creating a new Ravan in our mind again and again….
Then there will not be a need to burn it again and again.

Let's make a resolution on this Vijay Dashami - Dashehra:
That this time we will kill Ravana inside ourselves and burn it forever
And we will not let any new Ravan get created in our minds ever again.

Note: Ravana is a symbolic figure representing - heightened ego of wealth, power, beauty, knowledge, Gyan, etc.
and the many other negative traits of mankind.



What is Moksha

             Mokshasya na hi vaaso-asti na graamantarmeva va
             Agyaan-hriday-granthi naasho Moksha iti smritah

                                                              ' Shiv Geeta '

Meaning:
Moksha is not located in some other Loka; another planet; another plane of existence - nor it belongs to a specific place - a city or village or a house.
The elimination of the veil of Agyaan; ignorance and false knowledge - that clouds the mind - is known as Moksha.
                          ~~~~~~~~~~~~~~~~~~
According to authentic old scriptures* - it is a delusion, misconception that we will achieve Moksha after death, that we will be living on a different plane of existence.

In fact, the shedding of ignorance, false concepts, and blind faith by lighting the lamp of Gyana in our hearts and minds, and thus attaining the state of enlightenment, is called Moksha.
                               ' Rajan Sachdeva '

* Such as Bhagavad Geeta, Ashtavakra Geeta, Shiv Geeta - Kathopanishad, and Mundak Upanishad, etc

Mokshasya  ----- Moksha's - of Moksha
Na hi  Vaaso-asti     - Location is Not somewhere else
Na  ------ not - nor 
Graamantarmeva va  - another Village, city, place or planet, etc.
Agyaan-Hriday-Granthi   -  The knot of ignorance in heart, mind
Naasho -   Destruction,  elimination
Moksha   -   Liberation
iti smritah -  Is called or known as 

Thursday, October 14, 2021

सवाल और जवाब

एक आदमी ने एक प्रीस्ट (पुजारी) से पूछा -
फादर - क्या मैं ईश्वर से प्रार्थना करते समय धूम्रपान कर सकता हूँ?

प्रीस्ट ने गुस्से से कहा -
नहीं - ये सरासर ग़लत है - आप ऐसा नहीं कर सकते"

एक और आदमी ने पूछा -
फादर -  क्या मैं धूम्रपान करते हुए ईश्वर से प्रार्थना कर सकता हूँ?

फादर ने कहा-
हाँ - हाँ -  ज़रुर कर सकते हो। 
ईश्वर का ध्यान और प्रार्थना किसी समय भी की जा सकती है। 

दोनों स्थितियों में कोई अंतर नहीं है
लेकिन प्रतिक्रिया और जवाब इस बात पर निर्भर करते हैं कि आप किस ढंग से सवाल पूछते हैं। 

Response depends on how you ask

A man asked a priest -
Father! Can I smoke while I pray?

The priest got Angry.
No, you can not do that," he said.

Another man asked,
Father, Can I Pray while I smoke?

The priest said -
Sure ...... You can pray any time.

There is no difference in both scenarios
But the response depends on how you ask

Wednesday, October 13, 2021

अवलोकन एवं मनन

साधारण लोग किसी व्यक्ति के पतन को चर्चा के विषय के रुप में देखते हैं 
उनकी आलोचना एवं निंदा करने और फटकारने के लिए - 
या फिर सिर्फ गपशप करने और अपने मनोरंजन के लिए।

लेकिन बुद्धिमान लोग इसे अपने लिए एक चेतावनी के रुप में देखते हैं।
वे अपनी स्थिति का मूल्यांकन करके यह सीखने और समझने का प्रयास करते हैं 
कि वे स्वयं अपने आप को पतन से कैसे बचा सकते हैं। 

The downfall of a man

                     Observation and Reflection

The ignorant see the downfall of another person as a topic for discussion. 
To criticize and reprimand or simply to gossip - 
just for the sake of entertainment.

But the wise people see it as a warning to themselves.
They try to evaluate their own situation -
and try to learn how to avoid their own downfall.

Tuesday, October 12, 2021

जीवन और मृत्यु

जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

युवावस्था में मिलती है शक्ति एवं ऊर्जा
वृद्धावस्था में आराम
और मृत्यु में शांति

जिसने हमारे जीवन की सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति की -
सभी ज़रुरतों को पूरा किया 
वो निश्चय ही हमें वह भी प्रदान करेगा 
जिसकी ज़रुरत हमें मृत्यु में और मृत्यु के बाद होगी

जो इस बात को जानता है - और मानता है 
वो सदा निश्चिन्त और शांत चित्त रहता है    

Life and Death

Life and death are two sides of the same coin.

In youth, we get the energy to work
Rest in old age
and Peace in death.

The one who supplied what we needed in life 
Will also provide what we need in death.

The one who knows this and remembers it 
stays calm and peaceful.

Monday, October 11, 2021

The Footsteps

Do not just follow in the footsteps of the wise and enlightened ones.
They carved their path according to their conditions and circumstances. 
Our conditions may not be the same.
Our skills and capabilities may not be the same.
Our starting point might be different also. 

The important thing is to seek what they sought -
and to achieve what they achieved.
To experience the unknown and the unexplainable Truth as they did.
The goal is not to compete - 
but to reach the destination.
                        ' Rajan Sachdeva '

Thursday, October 7, 2021

Tadapi na munchati aasha-vaayuh - The storm of desires never dies

Dinyaaminyo Saayam Praatah
Shishir-Vasanto Punaraayaatah
Kaalah kreedati gacchati aayuh -
Tadapi na munchati aasha-vaayuh

        (Bhaj Govindam:12  - By Aadi Shankracharya)

Meaning:
Day and night, dusk and dawn 
winter and spring come and go again and again. 
In this game of Time, the entire life goes away,
yet the storm of desires never dies or declines.
                                 ~~~~~~~~~~~~~~~~~

Day and night - evening and morning - winter and spring repeatedly keep on coming and going - keep on changing.
Gradually, the age keeps increasing - the lifespan keeps on decreasing with this game of time - and eventually, it ends.
But the storm of hope and expectations does not subside - desires never end.

There are two deep meanings hidden in this verse.
Shankaracharya has touched on both - the physical and mental aspects of human beings in this verse- by giving comparative examples from nature.
                            First - the common, popular meaning:
With each day and night - with the change of each season - the human body's age keeps on increasing. 
In other words - the remaining age keeps on decreasing.
But even when the body is old and weak, there is no end to the hopes, expectations, and desires.

                                     The other - Analytical aspect

In nature - day and night - winter, summer, spring seasons keep on changing - they go and come back again and again.
But night after day does not mean that the day is over forever. 
The changing of seasons - summer or winter passing does not mean that there will never be summer or winter again.
It is the cycle of time that will keep on going forever.

Just like the game of time-chakra- goes on - in the same way, the game of hope, expectations, and desires continues in the human mind.
Fulfillment or cessation of one desire does not mean that the hope and expectations have ended.
There is no end to them.

If one hope - one wish is fulfilled - then a new hope - a new desire will be born again.
Like the seasons, desires, hopes, and expectations also keep coming and going. They only change - never end.

Like the game of time continually goes on in nature - the game of hopes and expectations also keeps on going in the mind - throughout life.

Now the question is, what is the importance of this analogy in our personal and spiritual progress?

It is not enough to discard this verse - and other such verses simply as a natural problem.
Everyone knows this.
So, the question is - what is the solution?

The matter of consideration here is - that as we know about changing of the seasons. We know that the night, day, winter, summer has not ended completely - that they come and go and will come back again.
So, we prepare ourselves and make some arrangements to avoid dark, summer, cold, etc.

Similarly, if we can apprehend the mind's games, then we can try to find some ways to control it - and be able to avoid sorrow and despair.
                                  ' Rajan Sachdeva '

Din                   - Day
Yamini            - Night
Saayam          -  Evening
Praatah          -  Morning
Shishir            -  Winter
Vasant             - Spring
Punara             - Again
Ayaatah           - Come
Kaalah             - Time
kreedati           - Plays
Gacchati          - Goes away
Aayuh             -  Age      
Tadapi             - Yet
Na Munchati  - Does not die or decline
Aasha-Vaayu   - Wind (Storm) of hopes and desires

तदपि न मुंचति आशा वायुः

दिनयामिन्यौ सायं प्रातः 
शिशिरवसन्तौ पुनरायातः
कालः क्रीडति गच्छतिआयुः
तदपि न मुंचति आशा वायुः ॥१२॥
               "आदि शंकराचार्य - भज गोविन्दम (१२)

दिन और रात - शाम और सुबह
सर्दी और वसंत बार-बार आते-जाते रहते हैं अर्थात ऋतुएं बदलती रहती हैं - बार-बार आती जाती रहती हैं। 
काल की इस क्रीड़ा - इस खेल के साथ आयु घटती रहती है - धीरे धीरे समाप्त हो जाती है 
पर आशा-मंशा का तूफ़ान कम नहीं होता - इच्छाओं का कभी अंत नहीं होता ॥

आदि शंकराचार्य के इस श्लोक में दो गहन अर्थ छिपे हुए हैं। 
प्रकृति की तुलनात्मक उदाहरण दे कर इस श्लोक में शंकराचार्य ने मानव के शारीरिक और मानसिक - दोनों पहलुओं को छुआ है। 

सुबह शाम - दिन रात और सर्दी गर्मी, वसंत अदि के बदलने के साथ साथ मानव शरीर की उमर भी बढ़ती रहती है 
या दूसरे शब्दों में - शेष बची हुई आयु कम होती रहती है। 
लेकिन शरीर के वृद्ध और जीर्ण होने पर भी आशा-मंशा और इच्छाओं का अंत नहीं होता॥

               दूसरा अथवा मानसिक पहलू 

प्रकृति में दिन रात और सर्दी गर्मी, वसंत अदि ऋतुएं बदलती और बार-बार आती जाती रहती हैं। लेकिन दिन के बाद रात का अर्थ यह नहीं कि दिन हमेशा के लिए समाप्त हो गया। ऋतुओं के बदलने - गर्मी या सर्दी के जाने का ये अर्थ नहीं कि अब कभी दोबारा गर्मी या सर्दी नहीं होगी। 
ये तो काल का चक्र है जो चलता ही रहेगा। 
जैसे काल-चक्र - समय का खेल चलता रहता है उसी तरह मानव मन में भी आशा-मंशा और इच्छाओं का खेल चलता ही रहता है। 
एक इच्छा की पूर्ति या समाप्ति का अर्थ ये नहीं कि आशा-मंशा समाप्त हो गयीं। 
इनका अंत नहीं होता। 
एक आशा - एक इच्छा पूरी हुई तो फिर से एक नई आशा - एक नई इच्छा पैदा हो जाएगी। 
ऋतुओं की तरह ही आशा-मंशा भी आती जाती रहती हैं। सिर्फ बदलती हैं - खत्म नहीं होतीं। 
जैसे प्रकृति का - समय का खेल चलता रहता है वैसे ही मन में इच्छाओं और आशा-मंशा का खेल भी जीवन भर चलता ही रहता है।  

अब प्रश्न ये है कि हमारी व्यक्तिगत और आध्यात्मिक उन्नति में इस बात का क्या महत्त्व है?
इस श्लोक को - और इस जैसी अन्य बातों को केवल समस्या समझ कर ही छोड़ देना काफी नहीं है। 
इस बात को तो सब जानते हैं - लेकिन प्रश्न ये है कि इसका समाधान क्या है?

सोचने की बात तो ये है कि जैसे हमें ऋतुओं के बदलने का ज्ञान है। 
हम जानते हैं कि रात दिन - सर्दी गर्मी इत्यादि समाप्त नहीं हुईं - ये आती जाती रहेंगी 
और हम पहले से ही गर्मी सर्दी इत्यादि से बचने के लिए कोई प्रबंध कर लेते हैं। 

उसी प्रकार अगर हम मन के इस खेल को भी अच्छी तरह समझ लें - तो इसे नियंत्रित रखने और दुःख एवं निराशा से बचने का कोई इंतज़ाम भी कर सकेंगे। 
                                             ' राजन सचदेव '

Wednesday, October 6, 2021

Death is Not the End

Time, according to western thought, runs in a straight line.
However, ancient Indian scholars believed that time runs in a circle.

Consequently, western religions believe in one lifetime.
There is no return since the time moves only forward.
So they believe that when life on earth ends, people go to heaven or hell - and remain there for eternity.

The ancient Indian scholars observed nature and noticed that everything works in cycles.
The sun, moon, stars - day and night - the winter, summer, and rainy seasons - all come and go in set patterns - in fixed cycles.
So, they thought that since everything in nature works in cycles, life must also come and go in a circle.
Hence, they established a theory - not of heaven and hell - but reincarnation.

They also noticed that things or objects - (known as matter) - do not vanish or get destroyed entirely.
They only change the form or shape.
Water evaporates - becomes clouds, and comes back in the form of rain.
When plants and animals die, they eventually turn into ashes or dust and become part of the earth - and ultimately, become a part of the living organisms.

Similarly, they thought, the consciousness may never vanish either - it must also come back in a new body - and life continues afresh - in cycles.

Science now believes in the continuity of DNA from generation to generation - which they did not know a couple of centuries ago.
Similarly, as of now - they do not believe in the continuity of consciousness. However, someone might find its proof in the near future - that just like matter, consciousness also never dies - never disappears.

According to Indian ideologies, life expresses itself in cycles - not in a straight line with a complete dead end.
Nature ends all old and weary life forms and starts them afresh - in a new cycle.

And when a new cycle begins, there is a freshness in it.
There is a new sense of hope. 
New fresh energy to continue from where one had left off in the previous life and move forward - towards the new, higher levels of consciousness.

Death - is not the end of life.
It's a process - for a new beginning.
                                    ' Rajan Sachdeva '

Small Steps or Big?

Small steps in the right direction are better
than big steps in the wrong direction

सही दिशा में लिए गए छोटे छोटे क़दम
ग़लत दिशा में लम्बे क़दमों से बेहतर हैं 

Tuesday, October 5, 2021

There are things we don’t want to happen

Yesterday, I lost one of my beloved uncles, who was like my father to me. 
In fact - I was practically raised by him in my early childhood.

People always talk about mothers - but often forget how significant roles fathers and father-like figures also play in our life - selflessly and silently.
That's how I feel about him. 
Though he did so much for me throughout my life, but he never reminded me or tried to put any obligation on me for what he did for me - not even a single time during his life.

When I saw my cousin's message about his passing, I thought:
There are things that we don’t want to know - but we have to.
There are things that we don’t want to happen -
but they happen, and we have to accept them.
We don't want to lose some people - but we have to let them go.

They say love is stronger than death - yet, even love can not stop death.
But no matter how hard it tries - death can not take love away from the hearts.
It can not take away the memories either.
Memory is a way of holding onto the people you love - people you never want to lose.
Therefore, in the end, love is stronger than death.
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The last time I visited him was in 2019. 
When I was leaving, he said to me: 
Eh aakhri vaari hai - phir milnaa nahin hona"
(This is the last time - won't be able to see you again)

I wanted to see him again, but I could not go back because of the pandemic.
However, my only regret is that I was never able to do anything for him - or serve him in any way.

Nevertheless, he was well-served and well taken care of by his son, daughter-in-law, and grandchildren - who took very good care of him till the end.
And he went very peacefully - within a few minutes - without any suffering. Said bye to his son and daughter-in-law when they left for work. About an hour later - after taking a bath, he called his grandson. By the time he came from the other room, he was gone.

Isn't that the best way to go?
Three weeks ago - his 90th birthday was celebrated.
Just a few days ago - we lost another great saint also - Rev. Bhalla Sahib (Houston) - who was also 90 and also went very peacefully.
But how many people are lucky enough to go like that?

That's what I always like to pray for myself:
         अनायासेन मरणं विना दैन्येन जीवनम् 
         देहान्ते तव सायुज्यं देहि मे परमेश्वरम


Anaayaasena maranam, Vinaa-dainyena jeevanam
Dehaantay tava saayujyam dehi may Parmeshvaram

Meaning:
'Death without affliction;  Life without conflict and exertion; 
Thy remembrance and proximity upon leaving the body 
- grant me these O' Lord'. 

I had seen Bhapa Ram Chand ji and 
 Bhapa Bhagat Ram ji quite often repeating and finishing their Sumiran with a similar phrase in Urdu
Hey Ghareeb-nawaaz, Kisi da mohtaaz na Karin – Be-mohtaaz rakhin'. 
Which means - 
O' Lord – Please do not make me ever become dependent on anyone. Please grant me self-sufficiency.'

First: Not becoming dependent - being able to function and take care of yourself -
and secondly, having a loving family and children - who will take care of you in old age and time of need - are the best things we could ask and pray for ourselves.

Everyone loves their beloved friends and family members and grieves & yearns for them when they leave this world - regardless of their age.

However, memory is a great way - a rather only way to keep them alive in our hearts and our lives.
May we always remember and continue to derive inspiration from them. 
                                                     ' Rajan Sachdeva '

What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...