Wednesday, December 16, 2020

जीवन मरण विधि हाथ

पिछले दो एक महीनों से लगातार कुछ मित्रों, साथियों, एवं सम्बन्धियों के इस संसार से विदा होने के समाचार मिल रहे हैं। 

कल मेरे चचेरे भाई राजीव सचदेव पटिआला, और पांच दिन पहले प्रिय बहन विजय गुप्ता जी (जम्मू) भी इस संसार से विदा हो गए। 
हर प्रकार की सेवा और मेडिकल सहायता के बावजूद भी उन्हें रोका न जा सका। 

ऐसे समय में अक़्सर ही हम स्वयं को असहाय सा पाते हैं - अपनी विवशता - लाचारी और बेबसी  का एहसास होने लगता है। 
मन में दीनता का भाव आ जाता है और सहज ही ये सवाल उठता है कि आख़िर हमारे हाथ में क्या है? 
बड़े से बड़े शक्तिशाली और धनवान भी ऐसे समय में निःसहाय हो जाते हैं और समझ जाते हैं कि कुछ भी तो नहीं है उनके हाथ में। 

                                   कर्म की गति न्यारी  
संत गुरु कबीर जी महाराज कहते हैं :
कर्म गति टारे नहीं टरी 
मुनि वसिष्ठ सों ज्ञानी ध्यानी सोच के लगन धरी 
सीता को हरि लै गयो रावण - सुवर्ण लंक जरी

अर्थात कर्म की गति न्यारी है जिसे कोई भी रोक नहीं पाया है। 
सीता विवाह और राम का राज्याभिषेक - दोनों शुभ मुहूर्त में ही किए गए थे। 
और शुभ मुहूर्त का चयन भी स्वयं उनके गुरुदेव वशिष्ठ मुनि किया था। 
फिर भी न तो उनका वैवाहिक जीवन सफल हुआ न ही राज्याभिषेक। 

जब भरत ने वशिष्ठ मुनि से पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया :
             सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहूं मुनिनाथ।
             हानि लाभ,जीवन मरण, यश,अपयश विधि हाथ || 

अर्थात, जो विधि ने निर्धारित किया है वही होकर रहता है।
न भगवान राम के जीवन को बदला जा सका, न ही भगवान कृष्ण अपने जीवन को बदल सके।   
न ही भगवान शिव अपनी पत्नी सती की मृत्यु को टाल सके - जबकि महा मृत्युंजय मंत्र के द्वारा उन्ही का आवाहन किया जाता है।
न रावण अपने जीवन को बदल पाया और न ही अपनी स्वर्ण लंका को जलने से बचा पाया हालाँकि उसे समस्त शक्तियाँ एवं ऋद्धि सिद्धियां भी प्राप्त थीं।
गुरु पीर पैगंबर भी होनी को न टाल सके।  
रामकृष्ण परमहंस एवं रमन महर्षि जैसे महान संत भी अपने कैंसर को न टाल सके। 

संत तुलसीदास जी के कथनानुसार जन्म के साथ ही जीवन-मरण, यश-अपयश, लाभ-हानि, देह का रंग एवं आकार, परिवार, समाज, देश एवं स्थान इत्यादि सब पहले से ही निर्धारित हो जाते हैं। हर व्यक्ति अपने गुण-धर्म, स्वभाव, और पूर्व जन्म के संस्कार अपने साथ लेकर आता है।

पूर्व कर्मों के फल अर्थात भाग्य को बदलना यदि असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। 
यदि सभी नहीं तो कुछ कर्मों के फल को तो बदला जा सकता है। 
जैसे लोहे को लोहा काटता है इसी तरह कर्म ही कर्म को काट सकते हैं। 
इसलिए यदि अपने जीवन मे परिवर्तन चाहते हैं तो - अपने कर्म बदलें।
आज के शुभ कर्म पिछले कर्मों को समाप्त कर सकते हैं - उनकी तीव्रता को कम कर सकते हैं। 
और इस के इलावाआज के किए हुए शुभ कर्म - प्रार्थना एवं भक्ति भविष्य में अच्छे - सुखदाई एवं शांति प्रदायक फल ले कर आएंगे। 
मन-वचकर्म शुभ हों तो आने वाला समय और जीवन भी शुभ ही होगा। 
इसलिए शुभ कर्म करें - शुभ सोचें और शुभ ही बोलें। 
                                                ' राजन सचदेव '
         

5 comments:

  1. Nice story raised a question that if prophets not in position to change their sufferings Etc then how their followers or preachers claiming that their sufferings are in control of their gurus and prophets stood by them in time of their problems

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  2. Rajanjee. To a certain extent I can relate to your anguish. Myself having lost relatives, friends and acquaintances in recent times. But the way you explain the relationship of these events to our daily karmas today is remarkable. Thanks for such insightful analysis.🙏

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