Thursday, April 11, 2019

बुरा तू भी नहीं मैं भी नहीं

लग़्ज़िशों से मावरा तू भी नहीं मैं भी नहीं 
दोनों इंसाँ हैं ख़ुदा तू भी नहीं मैं भी नहीं 

तू मुझे और मैं तुझे इल्ज़ाम देता हूँ मगर 
अपने अंदर झाँकता तू भी नहीं मैं भी नहीं 

मस्लहत ने कर दिया दोनों में पैदा इख़्तिलाफ़   
वर्ना फ़ितरत का बुरा तू भी नहीं मैं भी नहीं 

चाहते दोनों बहुत इक दूसरे को हैं मगर 
ये हक़ीक़त मानता तू भी नहीं मैं भी नहीं 

जुर्म की नौइय्यतों में कुछ तफ़ावुत हो तो हो 
दर-हक़ीक़त पारसा तू भी नहीं मैं भी नहीं 

रात भी वीराँ - फ़सील-ए-शहर भी टूटी हुई 
और सितम ये, जागता तू भी नहीं मैं भी नहीं 

जान-ए-'आरिफ़' तू भी ज़िद्दी था अना मुझ में भी थी 
दोनों ख़ुद-सर थे - झुका तू भी नहीं मैं भी नहीं 
                           ' सय्यद आरिफ़ '

लग़्ज़िश                     ग़लतियाँ , पतन , पथ से गिरना ,भूल      
मावरा                       अलग, फ़ारिग,  Free 
मस्लहत                    सलाह - भले बुरे की सोच
इख़्तिलाफ़                विचार-भेद 
नौइय्यतों                   विशेषता, ख़ासियत  (Types or Kinds )
तफ़ावुत                    फ़ासला , फ़र्क़ 
पारसा                       पवित्र 
फ़सील-ए-शहर         शहर की चारदीवारी 
अना                         घमंड, ग़रूर 
ख़ुद-सर                   अपने आप में मस्त - मग़रूर 

No comments:

Post a Comment

फ़ासला यारो है बस इक सांस का The distance is just a single breath

इस जहां और उस जहां के दरमियां - फ़ासला यारो है बस इक सांस का  ये अगर चलती रहे तो ये जहां ---- और अगर रुक जाए तो फिर वो जहां  Is jahaan aur us...