संसार में कोई भी पूर्णतया सन्तुष्ट नहीं है
परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिलें
'अज्ञात (Unknown)
इन्सां की ख़्वाहिशों की कोई इन्तहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ क़फ़न के बाद
'कैफ़ी आज़मी '
ये जाते हुए पुराने साल की नसीहत भी तुम हो और आने वाले हर इक साल की ज़रुरत भी तुम हो (तुम = निरंकार ईश्वर) कि जो तौफ़ीक़ रखते हैं बना लें...
Agree with you ����
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ReplyDeleteVery touching
ReplyDeleteDhan Nirankar.
ReplyDeleteI guess that is the reality. 🙏🙏🙏