Thursday, September 23, 2021

शुभकामनाओं और आशीर्वचनों के लिए धन्यवाद

आज सुबह से ही जन्मदिन के उपलक्ष्य में दर्जनों Students और शुभचिंतकों के  शुभकामनाओं, अभिनन्दन एवं दुआओं से भरे कल्याणमयी संदेश मिल रहे हैं।  
सोचा कि इस ब्लॉग के ज़रिये से ही सब का धन्यवाद कर लूँ। 

जहाँ एक तरफ मन में प्रसन्नता और सब के लिए धन्यवाद, आभार और कृतज्ञता का भाव उठता है - वहीं  दूसरी तरफ मन में  यह विचार भी आता है कि हम लोग अक़्सर इतने वर्ष पुरानी एक घटना को याद करके खुश होते हैं और उसे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं लेकिन भविष्य की  एक उतनी ही महत्वपूर्ण घटना की तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता। 

जैसा कि कल के ब्लॉग में लिखा था - अब पीछे की बजाए आगे देखना और उसके लिए तैयारी करना ही बेहतर है। 
और साहिर लुध्यानवी साहिब की यह नज़्म भी याद आती है :

             मैं पल दो पल का शायर हूँ पल दो पल मेरी कहानी है
             पल दो पल मेरी हस्ती है, पल दो पल मेरी जवानी है 

            मुझसे पहले कितने शायर आए और आ कर चले गए
           कुछ आहेँ भर कर लौट गए कुछ नग़मे गा कर चले गए

          वो भी इक पल का किस्सा थे मैं भी इक पल का किस्सा हूँ
          कल तुम से जुदा हो जाऊँगा गो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ
                  ~~~~~~~~~~~~~~~~~~

मगर फिर ख़्याल आता है कि  
हर शख़्स अपनी निशानी, अपने संस्कार - अपनी संतान - अपने बच्चों में छोड़ जाता है। अगली नस्ल बेशक़ चाहे या न चाहे - पुरानी नस्ल के कुछ न कुछ कुछ विचार और संस्कार जाने या अनजाने में नई नस्ल में भी रह जाते हैं।  

हम तो एक दिन चले जाएंगे लेकिन हमारे विचार एवं संस्कार हमारे बच्चों और हमारे चाहने और मानने वालों में ज़िंदा रहेंगे। 
हमारे जाने के बाद भी हमारे विचार उनमें ज़िंदा रहेंगे। 

     इक फूल में तेरा रुप बसा, इक फूल में मेरी जवानी है
      इक चेहरा तेरी निशानी है, इक चेहरा मेरी निशानी है

    मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
    हर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है
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                      ब्लॉग पढ़ने वाले औरअन्य शुभचनितकों के लिए 

मुझे खुशी है कि मैं अपने कुछ विचार दूसरों तक पहुंचाने में सक्षम रहा -
और मैं उन सभी का आभारी हूं जिन्होंने मेरे विचारों का स्वागत किया और उन्हें सुधारने में मदद की।
साहिर साहिब के शब्दों में :

पल दो पल मैं कुछ कह पाया इतनी ही सआदत काफी है
पल दो पल तुमने मुझको सुना इतनी ही इनायत काफी है

कल और आएँगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले तुम से बेहतर सुनने वाले

हर नस्ल इक फ़स्ल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महंगी मदिरा है जो क़तरा क़तरा बटती है

सागर से उभरी लहर हूँ मै सागर में फिर खो जाऊँगा
मिट्टी की रुह का पसीना हूँ फिर मिट्टी में सो जाऊँगा

कल कोई मुझको याद करे क्यों कोई मुझको याद करे
मसरुफ़ ज़माना मेरे लिए क्यों वक़्त अपना बरबाद करे

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इक फूल में तेरा रुप बसा, इक फूल में मेरी जवानी है
इक चेहरा तेरी निशानी है, इक चेहरा मेरी निशानी है

तुझको मुझको जीवन अमृत अब इन हाथों से पीना है
इनकी धड़कन में बसना है, इनकी साँसों में जीना है

तू अपनी अदाएं बख़श इन्हें, मैं अपनी वफ़ाएं देता हूँ
जो अपने लिए सोचीं थी कभी, वो सारी दुआएं देता हूँ

मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
हर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है

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