Wednesday, September 8, 2021

अङ्गम गलितं पलितं मुण्डम - अंग सब ढ़ीले

अङ्गम गलितं पलितं मुण्डम - दशन विहीनं जातम तुण्डं
वृद्धोयाती गृहीत्वा दण्डं - तदपि न मुंचति आशा पिण्डम
                                                       'आदि शंकराचार्य '

अंग सब ढ़ीले  -  बाल झड़ गए  -  टूट गए सब दन्त
लाठी बिन चल पाए न 'राजन '- आशा का पर हुआ न अंत

अर्थात:
शरीर के सब अंग गल गए - अर्थात ढीले, कमज़ोर और निष्क्रिय हो गए 
सिर के बाल पक गए - और झड़ गए 
मुख दंतविहीन - अर्थात सारे दांत टूट गए और मुँह दांतों से ख़ाली हो गया -
बुढ़ापा आ गया - चलने के लिए हाथ में लाठी पकड़ ली - बिना सहारे के चलने में असमर्थ हो गया -
लेकिन तब भी आशा नहीं छूटती -
इतना सब होने के बाद भी इंसान आशा - मन्शा एवं तृष्णा में उलझा रहता है - इन्हें छोड़ नहीं पाता।
                                                ------------------------
                     गलित गात्र झाले, टक्कल पडले, दातही झडले सारे।
                     काठी घेऊनी म्हातारा चाले, परि आशा जात 
न कारे ॥

4 comments:

  1. संस्कृत मराठी हिन्दी का इस्तेमाल कर बजुरगी का जो चित्रण किया है आपने अत्यंत ही सुन्दर है ������

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  2. Dhan Nirankar.
    Sad but true.🙏🙏🙏

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