हम इंसानों के लिए अपनेऔर अपने प्रियजनों के दुःख दर्द को महसूस करना एक स्वाभाविक बात है।
लेकिन हमारी मानवता का असली मापदंड यह है कि हम उन लोगों के दुःख और पीड़ा को भी महसूस कर सकें जिन्हें हम अपना नहीं मानते।
दूसरों के दुख और पीड़ा के लिए अपना दिल खोलना, उनके साथ सहानुभूति रखना और अपनी क्षमता और सामर्थ्य के अनुसार उनकी सहायता करना ही सच्ची मानवता और वास्तविक करुणा की भावना का प्रतीक है।
यदि दूसरों का दुःख आपको नहीं झकझोरता - यदि उनका दर्द आपको छूता तक नहीं -
तो यह अपने भीतर झाँकने का समय और आह्वान है।
ये एक गंभीरता से सोचने का विषय है — इस पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
ये एक संकेत है कि शायद आपको भी किसी उपचार और सहायता की आवश्यकता है।
शायद आपके भीतर कुछ ऐसे पुराने घाव दबे पड़े होंगे — अतीत के अनुभवों से उपजे — जो आज भी मौन और उपेक्षित पड़े हैं -
जिन्हें पुनर्विचार और उपचार की आवश्यकता है।
" राजन सचदेव "
❤️
ReplyDeletePar hitt saras Dharm nahi bhai
ReplyDeletePar peeda sam nahi adhmaayi
Bitter truth!
ReplyDelete🙏🏿
ReplyDeleteपरहित सरिस धर्म नहिं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई"
ReplyDeleteयह भाव मानव हृदय की नियति है मेरे साहिब। बहुत सुंदर व्याख्या 🌺ऐसे शुभ भाव से शेयर करते रहिए जी
दर्द ए दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को ,
ReplyDeleteवरना हुकूमत के वास्ते फरिश्तों की कमी नहीं थी ...