जब मन शांत और स्थिर होता है, तो वहां कोई प्रश्न नहीं उठते।
लेकिन जब मन अशांत होता है, तो कोई उत्तर नहीं मिलते।
जब मन स्पष्ट होता है, तो प्रश्न स्वयंमेव ही मिट जाते हैं।
क्योंकि स्पष्टता संदेह को समाप्त कर के विवेक को जन्म देती है।
एक शांत - स्थिर और केंद्रित मन वास्तविकता को बिना किसी विकृति के देखता है।
वो हर वस्तु और परिस्थिति को उसी रुप में देखता है, जैसी कि वे वास्तव में हैं—बिना किसी भ्रम या संदेह के।
इसके विपरीत, जब मन अशांत होता है, तो कोई भी उत्तर संतोषजनक नहीं लगता।
क्योंकि उत्तेजना - व्याकुलता और अशांति हमारी सोच को धुंधला कर देती है।
जीवन में कई अनिश्चितताएँ और उलझनें तो ज़्यादा सोचने या अनावश्यक चिंता से पैदा होती हैं।
चिंता, भय और संदेह का कोहरा हमारे दृष्टिकोण को बिगाड़ देता है, जिससे छोटी छोटी समस्याएं भी बहुत बड़े संकट के समान लगने लगते हैं।
कोई भी समाधान पर्याप्त नहीं लगता, और अच्छी से अच्छी सलाह भी व्यर्थ प्रतीत होती है।
व्याकुल और अस्थिर मन किसी ऐसे समाधान को भी नहीं देख पाता, जो सामने ही होते हैं।
अंततः, हमारी मानसिक स्थिति ही हमारी दृष्टि, और अवधारणा को निर्धारित करती है।
हमारी समझ और विवेक को तय करती है।
शांति का अर्थ केवल समस्याओं और संघर्षों का न होना नहीं है।
शांति संघर्षों की अनुपस्थिति पर नहीं बल्कि मन की अवस्था पर निर्भर करती है।
एक शांत और स्थिर मन सही उत्तर सहजता से खोज लेता है,
जबकि एक अशांत मन को सरल से सरल सत्य को समझने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।
इसलिए मन में स्थिरता, स्पष्टता और संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
" राजन सचदेव "
Bahut hee Uttam shikhsha .🙏
ReplyDeleteतन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई। सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।
ReplyDeleteA stable mind is the mind of an accomplished Jogi or Yogi
Kirpa bani rahe
ReplyDeleteshaant raha jaa sakke
yahi ardaas hai
bahut hi sunder .ati sunder vivechna ki h apji ne Shant aur Sthir MN ki ji 🌹🌹🌹🌹
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