Tuesday, February 3, 2015

चार दिन के दुनिया में मेहमान हैं

चार दिन के  सब यहाँ मेहमान हैं 
दिल में लेकिन सैंकड़ों अरमान हैं  

है नहीं कल का भरोसा भी मगर 
सौ बरस का चाहते सामान हैं 

दूसरों को तो  समझते कुछ नहीं 
ख़ुद को लेकिन मानते भगवान हैं 

कहते थे जो हम से दुनिया चलती है 
उनकी लाशों से भरे शमशान  हैं 

जान दे देते हैं औरों के लिए 
ऐसे भी दुनिया में कुछ इन्सान हैं       

दूसरों का दर्द जिनके दिल में है 
दरअसल  'राजन' वही इन्सान हैं  

                         ' राजन सचदेव '






No comments:

Post a Comment

नदी और सागर

युगों युगों से पर्वतों से नदियाँ बहती आई हैं चट्टानें भी  रास्ता  उनका  न रोक पाई हैं  नाचती उछलती और शोर मचाती हुई  अपना रास्ता वो ख़ुद-ब-ख़ु...