Thursday, February 16, 2023

कालिदास और वृद्ध महिला

आज सुबह, मुझे एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान और कवि कालिदास के बारे में एक दिलचस्प पुरानी कहानी मिली। 

एक जंगल में काफी समय तक चलने के बाद कालिदास एक गाँव में पहुँचे। 
उन्हें बहुत प्यास लगी थी। चारों ओर पानी की तलाश की तो देखा कि एक वृद्ध महिला कुएं से पानी खींच रही थीं। 
वह उसके पास गए और बोले - 
"माता - मुझे प्यास लगी है - कृपया थोड़ा पानी दीजिए।"
वृद्धा ने कहा - 
"आप कौन हैं? पहले अपना परिचय दीजिए "

कालिदास अपने समय के एक प्रसिद्ध और श्रद्धेय विद्वान थे - उन्हों ने सोचा कि गाँव की एक साधारण अनपढ़ महिला को क्या पता होगा कि कालिदास कौन हैं और कितने महान हैं। इसने तो कभी मेरा नाम भी नहीं सुना होगा। 
इसलिए उन्हों ने कहा, "माता - मैं एक यात्री हूँ।"

वृद्ध माता ने जवाब दिया, "नहीं, तुम यात्री तो नहीं हो सकते।
इस संसार में केवल दो ही यात्री हैं -  एक सूर्य और दूसरा चन्द्रमा। 
दोनों प्रतिदिन उदय और अस्त होते हैं और निरंतर यात्रा करते रहते हैं।
केवल यही दोनों यात्री कहलाने के अधिकारी हैं। 
तुम बताओ कि तुम कौन हो?

कालिदास ने कहा, "तो ठीक है - मुझे एक अतिथि - एक मेहमान समझ लो।"
माता ने तुरंत उत्तर दिया, "नहीं, बेटा - तुम अतिथि नहीं हो सकते। 
इस संसार में दो ही अतिथि अथवा मेहमान हैं - युवावस्था और धन (जवानी और दौलत)  
दोनों अस्थाई हैं और लाख मिन्नत करने पर भी नहीं ठहरते। 
इसलिए, केवल उन्हें ही मेहमान कहा जा सकता है।
आप कौन हैं?

उस वृद्ध महिला की बातों में छुपे प्रगाढ़ ज्ञान को देखकर कालिदास आश्चर्यचकित रह गए। 
हालाँकि वे प्यास से बेहाल हो रहे थे - फिर भी धैर्यपूर्वक बोले - 
 ''माता - मैं सहिष्णु हूं, (सहनशील व्यक्ति)। कृपया पानी दीजिए। 

माता ने उत्तर दिया, “हे नवयुवक, तुम सहिष्णु नहीं हो सकते।
सहिष्णुता का सही अर्थ तो केवल ये दो ही जानते हैं - भूमि (धरती ) और वृक्ष।
धरती को चाहे कितना ही कुरेदो - काटो, पीटो - उस पर पैर पटको और उसकी छाती पर हल चलाओ - 
और फल तोड़ने के लिए वृक्षों को चाहे कितने भी पत्थर मारो -
फिर भी ये दोनों हमेशा हमें संभालते और पालते हैं। 
इसलिए केवल यही दोनों ही सही मायने में सहिष्णु कहे जा सकते हैं। 
अब आप बताओ कि आप कौन हो?

प्यास की तीव्रता से कालिदास अब कुछ चिड़चिड़े से हो गए। 
क्षुब्ध हो कर बोले -  "तो ठीक है, मुझे हठवादी - एक हठी - जिद्दी व्यक्ति समझ लो ।

माता मुस्कुराई और बोली, नहीं  पुत्र - तुम हठी नहीं हो सकते।
केवल दो ही व्यक्तित्व हठवादी हैं - हमारे नाखून और हमारे बाल। 
हम उन्हें काटते रहते हैं, लेकिन वे फिर भी हठपूर्वक बढ़ते ही रहते हैं।”
तुम कहो कि तुम कौन हो? 

कालिदास अब तक तो सब्र करते रहे, पर अब क्रोध में आकर बोले, 
“अच्छा तो ठीक है -  मैं वास्तव में एक मूर्ख हूँ।

महिला हँसते हुए कहने लगीं - " संसार में केवल दो ही प्रकार के मूर्ख हैं। 
एक ऐसा राजा जो बिना किसी योग्यता या ज्ञान के शासन करता है - 
और एक ऐसा मंत्री जो ऐसे राजा का चापलूस है और हर समय ऐसे अयोग्य राजा की प्रशंसा करता रहता है - उसके गुण गायन करता रहता है।
आप कौन हो?"

कालिदास समझ गए कि गाँव की एक वृद्ध अनपढ़ महिला ने उन्हें मात दे दी है।
पूर्ण विस्मय और विनम्रता से वह उस महिला के चरणों में गिर पड़े और बोले - 
 "माँ!  मैं कितना अज्ञानी हूँ - लेकिन अभिमानवश सोचता था कि मैं सब कुछ जानता हूँ  - कि मैं स्वयं को भी जानता हूँ । 
मैं बहुत शर्मिंदा हूँ और आप से विनती करता हूं कि आप कृपा करें - मेरी अज्ञानता और धृष्टता को क्षमा करें।
ऐसा कह कर वह वृद्ध महिला के चरणों में झुक गए। 

जब कालिदास उनके पाँव छू कर ऊपर उठे, तो उन्होंने उस वृद्ध महिला की जगह स्वयं विद्या और बुद्धि की देवी माता सरस्वती को अपने सामने खड़े देखा।  

माता सरस्वती ने कहा, "कालिदास - तुम ज्ञानी हो - विद्वान हो लेकिन तुम्हारी उपलब्धियों पर तुम्हारा अहंकार भारी पड़ गया है। 
ज्ञान बढ़ने के साथ साथ तुम्हारा अहंकार भी बढ़ गया है। 
इसलिए तुम्हारा मार्गदर्शन करने के लिए मुझे आना पड़ा।
याद रखो कि मनुष्य की पहचान उसका ज्ञान नहीं बल्कि उसकी विनम्रता है।
यदि ज्ञान और विद्वता केवल अहंकार को जन्म देती है तो वह विद्वता किसी काम की नहीं।
इसलिए अहंकार से बचें और इसे हमेशा हमेशा नियंत्रण में रखें।

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