Thursday, February 2, 2023

तन बैरागी - मन अनुरागी

आज सुबह के ब्लॉग में जनाब निदा फ़ाज़ली का एक शेर सांझा किया था। 
             मन बैरागी - तन अनुरागी - क़दम क़दम दुश्वारी है 

अभी जब इसे दुबारा पढ़ा - तो ख्याल आया कि कभी कभी इस से उलट भी होता है। 
                        यानी - तन बैरागी - मन अनुरागी 

अर्थात बाहर से तो बैरागी - संसार से विरक्त होने का दिखावा होता है 
लेकिन मन अनुरागी होता है  - हमेशा संसार में ही लिप्त रहता है। 
इससे भी जीवन में आनंद नहीं आ पाएगा। 
मुँह से तो कहते रहें कि जीवन साधारण और सादगी पूर्ण होना चाहिए - लेकिन मन में शानो-शौक़त और ऐशो-इशरत की कामना बनी रहे - मन हमेशा सांसारिक कामनाओं  में ही भटकता रहे - 
अगर ज़ाहिर और बातिन - बाहर और अंदर - शब्द और विचार एक से न हों तो भी जीवन में शांति न आ पाएगी।  
                                                   " राजन सचदेव  "

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