Tuesday, December 28, 2021

हज़ार नाम थे मेरे - मगर मैं सिर्फ एक था

सफ़र हयात का तमाम हिजरतों में बंट गया
वतन ज़मीन ही रही - मैं सरहदों में बंट गया

हज़ार नाम थे मेरे  - मगर मैं सिर्फ एक था
न जाने कब मैं मंदिरों में मस्जिदों में बंट गया

सफ़र के आख़री क़दम पे ये खुला कि घर मेरा
बचा लिया था रहज़नों से - रहबरों में बंट गया

ख़्याल तू है,  ख़्वाब तू - सवाल तू , जवाब तू
मैं तेरी खोज में निकल के रास्तों में बंट गया

मैं लख़्त लख़्त आदमी के दुख समेटता रहा
ख़ुदा जो मस्जिदों में था नमाज़ियों में बंट गया
                                  " फ़रहत शहज़ाद  "

हिजरत    = स्थानान्तरण , अपना घर छोड़ कर दूसरी जगह जा बसना 
रहज़न     =  लुटेरे , जो राह चलते लूट ले 
रहबर      -  रास्ता दिखाने वाले 
लख़्त -लख़्त  -- टुकड़े टुकड़े , टुकड़ों में , एक एक करके 

7 comments:

आईना ये मुझसे रोज़ कहता है

आईना ये मुझसे रोज़ कहता है अक़्स तेरा क्यों बदलता रहता है उम्र है कि रोज़ ढ़लती जाती है रोज़ ही चेहरा बदलता रहता है इक मुकाम पे कहाँ ये रुकता ह...