मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्
मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे ॥
(यजुर्वेद ३६/१८)
अर्थात :
सब मुझे मित्रता (प्रेम) की दृष्टि से देखें
मैं सबको मित्रता की दृष्टि से देखूं
हर प्राणी सब को मित्रता एवं प्रेम की दृष्टि से देखे
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
झूठों का है दबदबा - Jhoothon ka hai dabdabaa
अंधे चश्मदीद गवाह - बहरे सुनें दलील झूठों का है दबदबा - सच्चे होत ज़लील Andhay chashmdeed gavaah - Behray sunen daleel Jhoothon ka hai dabdab...
-
मध्यकालीन युग के भारत के महान संत कवियों में से एक थे कवि रहीम सैन - जिनकी विचारधारा आज भी उतनी ही प्रभावशाली है जितनी उनके समय में थी। कव...
-
Kaise bataoon main tumhe Mere liye tum kaun ho Kaise bataoon main tumhe Tum dhadkanon ka geet ho Jeevan ka tum sangeet ho Tum zindagi...
-
वृक्ष कबहुँ न फल भखै, नदी न संचय नीर परमार्थ के कारने साधुन धरा शरीर ...
No comments:
Post a Comment