वतन ज़मीन ही रही - मैं सरहदों में बंट गया
हज़ार नाम थे मेरे - मगर मैं सिर्फ एक था
न जाने कब मैं मंदिरों में मस्जिदों में बंट गया
सफ़र के आख़री क़दम पे ये खुला कि घर मेरा
बचा लिया था रहज़नों से - रहबरों में बंट गया
ख़्याल तू है, ख़्वाब तू - सवाल तू , जवाब तू
मैं तेरी खोज में निकल के रास्तों में बंट गया
मैं लख़्त लख़्त आदमी के दुख समेटता रहा
ख़ुदा जो मस्जिदों में था नमाज़ियों में बंट गया
" फ़रहत शहज़ाद "
हिजरत = स्थानान्तरण , अपना घर छोड़ कर दूसरी जगह जा बसना
रहज़न = लुटेरे , जो राह चलते लूट ले
रहबर - रास्ता दिखाने वाले
लख़्त -लख़्त -- टुकड़े टुकड़े , टुकड़ों में , एक एक करके
One of the nicest collection that touches your heart.
ReplyDeleteAmazing. Very True
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteBeautiful shayari with perfect message
ReplyDeleteVery deep
ReplyDeleteBeautiful shayari 🌺🙏🌸
ReplyDelete🙏
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