अत्यंत उत्साह के साथ उन्होंने शुरुआत की, और पूरे दिन भर किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा।
अचानक आधी रात को दीपक टिमटिमाने लगा और बुझ गया।
एक भिक्षु अनायास ही बोल उठा - " ओहो ! दीपक तो बुझ गया।
दूसरा भिक्षु बोला - "अरे भाई ! तुम भूल गए कि हमें मौन रहना है - बोलना नहीं है!"
तीसरे भिक्षु ने क्रोधित स्वर में कहा, "तुम लोग क्या कर रहे हो ?
तुम दोनों ने अपना मौन व्रत तो तोड़ा ही और मेरा ध्यान भी भंग कर दिया ?
चौथे भिक्षु ने मुस्कुराते हुए बड़े गर्व से कहा - "तुम सब के सब तो भूल गए।
तुम सब ने ही व्रत तोड़ दिया ! मैं ही अकेला हूँ जिसने कुछ नहीं कहा और मौन रहा।"
~~~~~ ~~~~~~~~~~~~~
विश्लेषण:
हालांकि सभी भिक्षुओं का मौन टूट गया - लेकिन प्रत्येक भिक्षु के मौन व्रत टूटने का कारण अलग अलग था।
पहला भिक्षु एक छोटी सी घटना - दीपक के बुझने से विचलित हो गया और अपना लक्ष्य खो बैठा।
वह भूल गया कि बिना प्रतिक्रिया के साक्षी होने का अभ्यास - दीपक के बुझने से अधिक महत्वपूर्ण था।
दूसरे भिक्षु का ध्यान - स्वयं नियमों का पालन करने की बजाए दूसरों से उन नियमों का पालन करवाने में था।
वह स्वयं को नहीं - बल्कि दूसरों को नियंत्रित रखने का - औरों को कण्ट्रोल में रखने का इच्छुक था।
और चौथे भिक्षु ने अभिमान के कारण अपना लक्ष्य खो दिया।
जब हम किसी भी घटना को बिना किसी आवेग के -
तीसरा भिक्षु - उन दोनों भिक्षुओं के प्रति अपने क्रोध को रोक नहीं पाया और अनायास ही बोल उठा।
और चौथे भिक्षु ने अभिमान के कारण अपना लक्ष्य खो दिया।
जब हम किसी भी घटना को बिना किसी आवेग के -
क्रोध और गर्व के साथ प्रतिक्रिया किए बिना - साक्षी भाव से देखने लगेंगे -
तब ही जीवन के सही अर्थ को समझने और उसका सही आनंद लेने में समर्थ हो सकेंगे।
' राजन सचदेव '
This is great and comprehensible...thank you so much🌸🙏
ReplyDeleteBAHUT HI SUNDER BAT KAHI HAI
ReplyDeleteBAHUT CHETAN KRTE REHTE HO
Very inspiring ji��
ReplyDeleteWow uncle ji
ReplyDeleteThe way you teach us amazing keep showering blessings