मैं अक्सर रेलगाड़ी में एक general कंपार्टमेंट में यात्रा करता था - बिना आरक्षण के - जहाँ आमने सामने की बर्थ पर दस से पंद्रह लोग एक-दूसरे के सामने बैठे होते थे।
लंबी यात्राओं के दौरान अक़्सर लोग आपस में बातचीत करने लगते थे।
अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने पर, बहुत से लोग ट्रेन से उतर जाते।
हर स्टेशन पर 20 - 30 या कभी कभी 100 लोग उतरते चढ़ते होंगे लेकिन किसी को भी किसी की याद नहीं रहती।
लेकिन दो तरह के लोग सबको याद रहते हैं -
एक अच्छे और एक बुरे।
जिन लोगों का बर्ताव अच्छा न हो - जो अशिष्ट - असभ्य, रुखे और असहयोगी हों - उनके जाने पर सब को राहत सी महसूस होती -
लेकिन ऐसे लोग जो नेक और दयालु - मित्रतापूर्ण एवं मददगार होते हैं वो हमेशा याद रहते हैं और इच्छा होती है कि वो कुछ देर और साथ रहते तो अच्छा था।
जीवन भी एक यात्रा ही है।
हमारे जीवन में कई सुखद और अविस्मरणीय घड़ियां आती हैं और कभी-कभी ऐसी घटनाओं का सामना भी होता है जो इतनी सुखद नहीं होती - कुछ भाग-दौड़ वाली और कुछ दम घुटने वाली - दुखद।
जीवन नामक इस यात्रा के दौरान हम कई लोगों से मिलते हैं
अपने जीवन में सैकड़ों - हजारों लोगों को आते और चले जाते देखते हैं - लेकिन उनमें से कोई भी हमें याद नहीं रहते।
लेकिन ऐसे लोग हमेशा याद रहते हैं जिनके साथ हमारे कुछ अच्छे या बुरे अनुभव हुए हों।
एक तरफ - जिन्हें हम अपने विरोधी या द्वेषी मानते हैं, उन लोगों के जाने से शायद कुछ राहत सी महसूस हो - वहीं जब कुछ अच्छे - नेक और दयालु लोग चले जाते हैं तो हमें बहुत दुःख होता है - खासकर वे, जिनके साथ हमारा काफी करीबी नाता रहा हो।
और ऐसे प्रियजन तो बहुत ही याद आते हैं जो हमारे जीवन में एक रिक्तता - एक ख़ालीपन छोड़ जाते हैं।
लेकिन, कभी कभी एक अजीब सा सवाल मन में उठता है जिसका कोई उत्तर नहीं मिल पाता -
कि वो सह-यात्री - जो हमें हमारी जीवन यात्रा के बीच में छोड़ कर चले जाते हैं, क्या वे भी संसार से प्रस्थान करने के बाद हमें याद करते होंगे?
' राजन सचदेव '