Monday, August 21, 2023

इंसान और हैवान - मनुष्य एवं पशु

एक गाय को कभी इस बात से ईर्ष्या नहीं होती कि उसके साथ की गाएं उससे ज्यादा दूध क्यों  देती हैं ।
एक बिल्ली ये सोच कर दुखी नहीं होती कि वह कुत्ता क्यों न बनी ।
मुर्गा कभी ये सोच कर उदास नहीं होता कि वह चील की तरह ऊँचा नहीं उड़ सकता।
और खरगोश कभी उड़ने के सपने नहीं देखता।

जानवरों की व्यक्तिगत चेतना बहुत सीमित होती है।
हालाँकि जानवरों को अपनी पहचान तो होती है  - 
लेकिन उन्हें अपने बारे में कोई आलोचनात्मक जागरुकता नहीं होती। 
न तो उनमें अपने जीवन को बेहतर बनाने की कोई इच्छा या क्षमता होती है और न ही दूसरों के जीवन या अपने आसपास के वातावरण को बेहतर बनाने की।
यह प्रावधान तो केवल मनुष्य जाति के पास है।

'स्वयं' का ज्ञान - जागरुकता और बदलाव लाने की इच्छा - अपने और दूसरों के जीवन को एवं आस पास के वातावरण और परिवेश को बेहतर बनाने की इच्छा ही मनुष्य को जानवरों से अलग करती है।

प्राचीन संस्कृत साहित्य की पुस्तक हितोपदेश में एक श्लोक है:
         आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च समानमेतत्पशुभिर्नराणाम्
        धर्मोहि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः

अर्थात - खाना, सोना, डरना और संभोग - ये सभी गतिविधियाँ जानवरों और मनुष्यों के बीच एक समान हैं।
केवल धर्म ही एक अतिरिक्त एवं विशेष तत्व है जो इंसान को पशुओं से अलग करता है। 
धर्म विहीन मनुष्य पशु से भिन्न नहीं है।

लगभग ऐसा ही एक श्लोक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ चाणक्य से भी संबंधित है, जिसमें धर्म शब्द को 'विद्या' से बदल दिया गया है। उनके संस्करण की अंतिम दो पंक्तियाँ हैं:
              “विद्या हि तेषाम् अधिको विशेषो
                विद्या विहीनः पशुभिः समानः”

इस श्लोक का एक हिन्दी संस्करण भी काफी लोकप्रिय है ।
                    निद्रा भोजन भोग भय, एह पशु-पुरख समान
                    ज्ञान अधिक इक नरन महि, ज्ञान बिना पशु जान

बेशक धर्म शब्द को विद्या और हिंदी संस्करण में ज्ञान से बदल दिया गया है लेकिन इन सब का अर्थ एक ही है - संदेश वही है - क्योंकि 'धर्म' और 'ज्ञान' दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
धर्म को जानने और उसका पालन करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। 
और धर्म एवं कर्म के बिना ज्ञान बेकार है।

ज्ञान प्राप्त करना और मानवता के धर्म का पालन करना केवल ग्रंथों का ही नहीं, बल्कि प्रकृति का भी संदेश है - क्योंकि यही एक गुण है जो मनुष्य को अन्य जीवों से अलग करता है।
पशु साम्राज्य में, जो दूसरों से छीन सकता है - जो दूसरों को नियंत्रित कर सकता है वह उनका नेता बन जाता है।
दूसरी ओर - जो दूसरों को देता है - जो दूसरों की खातिर अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और हितों का त्याग कर देता है - वह मनुष्यों के बीच एक सम्मानित नेता बन जाता है।
लोग स्वयंमेव ही सम्मान पूर्वक उसके पीछे चलने लगते हैं। 
                                       ' राजन सचदेव '

4 comments:

The Law of Common Sense

A law professor in Germany once handed his students a case study that looked deceptively simple. Two neighbours, the story went, were locked...